*भक्ति में प्रणाम का भाव *

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भक्त जितना भगवान के नजदीक होगा भक्त भगवान को बार बार मन ही मन प्रणाम करता है। भक्त का प्रणाम भाव भगवान के प्रति सच्ची निष्ठा समर्पित भाव को दर्शाता है।

प्रभु प्राण नाथ को प्रणाम करते हुए भक्त अपने शीश को प्रभु चरणों में समर्पित करना चाहता है। शीश के नवाने से हमारे अन्तर्मन का अहम मिटता है। हमारे विकार जल जाते हैं। भक अपने प्रेम को समर्पित करता है।

प्रणाम एक साधना है जिसमें हम भगवान को क्षण क्षण में प्रणाम करतें हैं हमारे मन में दिल में कुछ भी इच्छा नहीं बस अपने स्वामी भगवान् नाथ को प्रणाम करते रहेगे। एक एक घंटे परम पिता परमात्मा के सामने हाथ जोड़ कर अन्तर्मन से प्रणाम और वन्दना करते रहना।हे प्रभु हे स्वामी भगवान् नाथ दशों इन्द्रियों के स्वामी आप है इन इन्द्रियों रूपी घोङे की लगाम को कस कर पकङे रखना यह मुझ अधम के बस की नहीं है।

भक्त अपने दिल के प्रेम को भगवान के चरणो में समर्पित करता है भक्त भगवान को दिल मे बिठा लेता है। तब भक्त की आंखों में भगवान बस जाते हैं। जैसे एक प्रेमी के दिल में प्रेम उत्पन्न होता है। तब दिल में प्रेम के भाव बनने लगते हैं ऐसे ही भक्त भगवान के भाव मे झुमता है। अन्तर्मन से भाव प्रकट होते हैं ।

भक्त बाहरी पुजा से भगवान की वन्दना न करके दिल में प्रकट प्रेम प्रार्थना बन जाती है।दिल की धड़कन प्रभु नाम ध्वनि बन जाती है। भक्त के दिल का भाव प्रार्थना होती है। खुली और बन्द आंखों में प्रभु समा जाते हैं। अन्तर्मन के भाव से ही प्रभु प्राण नाथ का नमन वन्दन और पुकार करता है ।जय श्री राम अनीता गर्ग

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