पितृ पक्ष का प्रारंभ इस वर्ष २९ सितंबर दिन शुक्रवार भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से हो रहा है, जो १४ अक्टूबर शनिवार तक चलेगा। पितृपक्ष में पितरों की प्रसन्नता के लिए श्राद्ध कर्म किया जाता है, जिसमें तर्पण महत्वपूर्ण होता है।
श्राद्ध पक्ष में आप अपने माता-पिता के अतिरिक्त दादा (पितामह), परदादा (प्रपितामह), दादी, परदादी, चाचा, ताऊ, भाई-बहन, बहनोई, मौसा-मौसी, नाना (मातामह), नानी (मातामही), मामा-मामी, गुरु, गुरुमाता आदि सभी का तर्पण कर सकते हैं।
तर्पण विधि-
सर्वप्रथम पूरब दिशा की ओर मुँह करके कुशा का मोटक बनाकर चावल (अक्षत्) से देव तर्पण करना चाहिए। देव तर्पण के समय यज्ञोपवीत सब्य अर्थात् बाएँ कन्धे पर ही होता है। देव-तर्पण के बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके ‘कण्ठम भूत्वा’ जनेऊ गले में माला की तरह करके कुश के साथ जल में जौ डालकर ऋषि-मनुष्य तर्पण करना चाहिए। अन्त में अपसव्य अवस्था (जनेऊ दाहिने कन्धे पर करके) में दक्षिण दिशा की ओर मुख कर अपना बायाँ पैर मोड़कर कुश-मोटक के साथ जल में काला तिल डालकर पितर तर्पण करें।
पुरुष-पक्ष के लिए ‘तस्मै स्वधा’ तथा स्त्रियों के लिए ‘तस्यै स्वधा’ का उच्चारण करना चाहिए।
इस प्रकार देव- ऋषि- पितर- तर्पण करने के बाद कुल (परिवार), समाज में भूले-भटके या जिनके वंश में कोई न हो, तो ऐसी आत्मा के लिए भी तर्पण का विधान बताते हुए शास्त्र में उल्लिखित है कि अपने कन्धे पर रखे हुए गमछे के कोने में काला तिल रखकर उसे जल में भिंगोकर अपने बाईं तरफ निचोड़ देना चाहिए। इस प्रक्रिया का मन्त्र इस प्रकार है- ‘ये के चास्मत्कूले कुले जाता, अपुत्रा गोत्रिणो मृता। ते तृप्यन्तु मया दत्तम वस्त्र निष्पीडनोदकम।।’ तत्पश्चात् ‘भीष्म:शान्तनवो वीर:…..’ इस मन्त्र से आदि पितर भीष्म पितामह को जल देना चाहिए।
इस तरह से विधि पूर्वक तर्पण करने का शास्त्रीय विधान है।
।। समस्त पुरखों को सादर नमन ।।
Pitru Paksha is starting this year on Friday, 29th September, from Bhadrapada Shukla Purnima, which will continue till Saturday, 14th October. During Pitru Paksha, Shraddha rituals are performed to please the ancestors, in which Tarpan is important.
In Shraddha Paksha, apart from your parents, you can include grandfather (Pitamah), great grandfather (Prapitamah), grandmother, great grandmother, uncle, paternal uncle, brother-sister, brother-in-law, paternal aunt (aunt), maternal grandfather (Matamah), maternal grandmother (Matamahi), maternal uncle- Aunt, guru, gurumata etc. can offer tarpan to everyone.
Tarpan method- First of all, facing towards the east, one should make a bowl of Kusha and offer it to God with rice (Akshat). At the time of offering to God, the sacred thread is worn on Sabya i.e. the left shoulder only. After the offering to the gods, one should face the north direction and tie the ‘Kantham Bhootva’ sacred thread around the neck like a garland and put barley in water along with Kush and offer it to the sages. Finally, in the Apasavya state (with the sacred thread placed on the right shoulder), face towards the south, bend your left leg and put black sesame seeds in water along with Kush-Motak and offer it to your ancestors.
‘Tasmai Swadha’ should be chanted for the male side and ‘Tasyai Swadha’ for the female side.
In this way, after offering tarpan to the gods, sages and ancestors, if the soul is lost in the family or society or has no one in its lineage, then it is mentioned in the scriptures that it should be kept on one’s shoulder. Place black sesame seeds in the corner of the pot, soak it in water and squeeze it on your left side. The mantra of this process is as follows – ‘Ye ke chasmatkule kule jaata, aputra gotrino mrita. ‘Te trpyantu maya datam vashtra nispadnodakam.’ After that, water should be given to Adi Pitra Bhishma Pitamah with this mantra ‘Bhishma: Shantanvo Veer:…’.
There is a classical tradition of performing tarpan in this manner.
, Respectful tribute to all the ancestors.