रुद्रयामलतन्त्रोक्त कालिकाकवचम् ।।

इस कवच के पाठ से शत्रुओं का नाश, सभी प्राणिमात्र का वशीकरण अति ऐश्वर्य को प्रदत्त करनेवाला पुत्र पौत्रादि की वृद्धि करनेवाला और सम्पूर्ण सिद्धियाँ को प्राप्त करनेवाला है। ।। कालिकाकवचम् ।।

कैलास-शिखरासीनं देव-देवं जगद्गुरुम्।
शङ्करं परिपप्रच्छ पार्वती परमेश्वरम्।।१।।

एक समय कैलास पर्वत के शिखर पर देवाधिदेव संसार के गुरु महादेवजी विराजमान थे। उस समय पार्वती ने उनसे (यह) प्रश्न किया।

पार्वती उवाच।
भगवन् देवदेवेश! देवानां भोगद प्रभो!।
प्रब्रूहि मे महादेव! गोप्यं चेद् यदि हे प्रभो!।।२।।

पार्वती बोलीं- हे देवताओं के देवता! सम्पूर्ण देवताओं के भोग को प्रदान करनेवाले प्रभु! हे महादेवजी! यदि वह प्रश्न सम्पूर्ण देवताओं के लिए गोप्य हो, तो मुझे बतलाइए।

शत्रूणां येन नाश: स्यादात्मनो रक्षणं भवेत्।
परमैश्वर्यमातुलं लभेद् येन हि तद् वद?।।३।।

ऐसा कोई उपाय बताइए जिससे शत्रुओं का नाश और साथ ही साथ अपनी रक्षा एवं अतुल ऐश्वर्य की प्राप्ति हो।

भैरव उवाच।
वक्ष्यामि ते महादेवि! सर्वधर्मविदां वरे।
अद्भुतं कवचं देव्याः सर्वकामप्रसाधकम्।।४।।

भैरवजी बोले- हे महादेवि! आप तो सम्पूर्ण धर्मों की जानकार हैं, इसलिए अब मैं सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करनेवाला कालिकादेवी के अदभुत कवच का वर्णन करता हूँ।

विशेषतः शत्रुनाशं सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
सर्वारिष्टप्रशमनं सर्वाभद्रविनाशनम्।।५।।

यह (कालिका) कवच प्राणिमात्र की रक्षा करता है और सभी अरिष्ट नाशक, आधि-व्याधि का नाश करता है और विशेष रूप से शत्रुओं का मर्दन करनेवाला है।

सुखदं भोगदं चैव वशीकरणमुत्तमम्।
शत्रुसङ्घाः क्षयं यान्ति भवन्ति व्याधिपीडिताः।।६।।

यह कालिका कवच सुख एवं ऐश्वर्य को प्रदान करनेवाला वशीकरणकारक और शत्रुओं को नष्ट करनेवाला और शत्रुओं को (नाना प्रकार) की व्याधि से पीड़ित करने वाला है।

दुःखिनो ज्वरिणश्चैव स्वाभीष्ट-द्रोहिणस्तथा।
भोग-मोक्षप्रदं चैव कालिकाकवचं पठेत्।।७।।

(इस) कालिका कवच का पाठ करनेवाले साधक के लिए सभी सुख और मोक्ष प्रदायक है। क्योंकि यह (कालिका कवच) शत्रुओं को दु:ख तथा ज्वर से कष्ट प्रदत्त करनेवाला है।

कालिका कवचम् विनियोग
ॐ अस्य श्रीकालिकाकवचस्य भैरव ऋषि:, अनुष्टप् छन्द:, श्रीकालिका देवता, शत्रुसंहारार्थं जपे विनियोगः।

विनियोग-कर्ता को चाहिए कि अपने दायें हाथ में जल लेकर ‘ॐ अस्य श्राकालिकाकवचस्य’ से ‘जपे विनियोगः’ तक का उच्चारण करके पृथ्वी पर जल छोड़ दें।

ध्यानम्।
ध्यायेत् कालीं महामायां त्रिनेत्रां बहुरूपिणीम्।
चतुर्भुजां ललजिह्वां पूर्णचन्द्रनिभाननाम्।।८।।

ध्यान-तीन नेत्रों से युक्त, विविध रूप धारण करनेवाली, चार भुजाओं से युक्त, चन्द्रमा के समान मुखवाली, लपलपाती जिसकी जिह्वा है। ऐसी महामाया काली का ध्यान करें।

नीलोत्पलदलश्यामां शत्रुसङ्घ-विदारिणीम्।
नरमुण्डं तथा खड्गं कमलं च वरं तथा।।९।।

निर्भयां रक्तवदनां दंष्ट्रालीघोररूपिणीम्।
साट्टहासाननां देवीं सर्वदा च दिगम्बरीम्।।१०।।

शवासनस्थितां कालीं मुण्ड-मालाविभूषिताम्।
इति ध्यात्वा महाकालीं ततस्तु कवचं पठेत्।।११।।

नीले रंग के कमल के तुल्य, कृष्ण वर्णवाली, शत्रुओं का विनाश करनेवाली, नरमुण्ड धारण करनेवाली, एवं खड्ग, कमल और मुद्रा धारण करनेवाली, निर्भय, रक्त से लिप्त मुखवाली, बड़े-बड़े दाँतोंवाली, सदैव हँसनेवाली, नग्नस्वरूपिणी, शव के आसन पर बैठनेवाली, मुण्ड-मालाओं से सुशोभित ऐसी महाकाली का ध्यान साधक को करना चाहिए। उसके पश्चात् कवच का पाठ करें।

कालिका कवचम्
ॐ कालिका घोररूपा सर्वकामप्रदा शुभा।
सर्वदेवस्तुता देवी शत्रुनाशं करोतु मे।।१२।।

घनघोर रूपवाली, सम्पूर्ण ऐश्वर्य को प्रदत्त करनेवाली एवं सभी देवों से स्तुत्य कालिकादेवी आप मेरे शत्रुओं का मर्दन करें।

ॐ ह्रीं ह्रीं रूपिणीं चैव ह्रां ह्रीं ह्रां रूपिणीं तथा।
ह्रां ह्रीं क्षों क्षौं स्वरूपा सा सदा शत्रून विदारयेत्।।

ह्रीं ह्रीं और ह्रां, ह्रीं, ह्रां एवं ह्रां, ह्रीं, क्षों, क्षौं बीजरूपिणी कालिका आप सदैव मेरे शत्रुओं का संहार (विनाश) करें।।१३।।

श्रीं ह्रीं ऐंरूपिणी देवी भवबन्धविमोचिनी।
हुँरूपिणी महाकाली रक्षास्मान् देवि सर्वदा।।१४।।

उसी प्रकार श्रीं, ह्रीं, ऐं, बीजरूपिणी भवबन्धविनाशिता तथा हुं बीजवाली महाकाली आप मेरी निरन्तर रक्षा करें।

यया शुम्भो हतो दैत्यो निशुम्भश्च महासुरः।
वैरिनाशाय वंदे तां कालिकां शंकरप्रियाम।।१५।।

आपने ही शुम्भ नामक दैत्य और महा असुर निशुम्भ का वध किया था। इस प्रकार की भगवान शिव की प्रिया कालिका को अपने शत्रुओं का विनाश करने के लिए मैं प्रणाम करता हूँ।

ब्राह्मी शैवी वैष्णवी च वाराही नारसिंहिका।
कौमार्यैर्न्द्री च चामुण्डा खादन्तु मम विदिवषः।।१६।।

(क्योंकि) आप ही ब्राह्मी, शैवी, वैष्णवी, वाराही, नारसिंही, कौमारी ऐन्द्री और चामुण्डा रूपिणी हैं, इसलिए आप मेरे शत्रुओं का भक्षण कर लीजिए।

सुरेश्वरी घोर रूपा चण्ड मुण्ड विनाशिनी।
मुण्डमालावृतांगी च सर्वतः पातु मां सदा।।१७।।

आप सुरेश्वरी घनघोर रूपधारिणी, चण्ड-मुण्ड का विनाश करनेवाली और नरमुण्ड की माला धारण करनेवाली हैं। इसलिए (हे माता) आप सम्पूर्ण विपत्तियों से मेरी (निरन्तर) रक्षा करें।

ह्रीं ह्रीं ह्रीं कालिके घोरे दंष्ट्र व रुधिरप्रिये।
रुधिरापूर्णवक्त्रे च रुधिरेणावृतस्तनी।।१८।।

हे ह्रीं ह्रीं ह्रीं रूपिणी कालिके! घनघोर रूपवाली, रक्त से जिनका दाँत, मुख और स्तन सना हुआ है, ऐसी हे कालिके ! मैं अपने शत्रुओं को आपके (भक्षण) के लिए समर्पित करता हूँ।

मंत्र:-
“ मम शत्रून् खादय खादय हिंस हिंस मारय मारय भिन्धि भिन्धि छिन्धि छिन्धि उच्चाटय उच्चाटय द्रावय द्रावय शोषय शोषय स्वाहा।ह्रां ह्रीं कालीकायै मदीय शत्रून् समर्पयामि स्वाहा।
ऊँ जय जय किरि किरि किटी किटी कट कट मदं मदं मोहयय मोहय हर हर मम रिपून् ध्वंस ध्वंस भक्षय भक्षय त्रोटय त्रोटय यातुधानान् चामुण्डे सर्वजनान् राज्ञो राजपुरुषान् स्त्रियो मम वश्यान् कुरु कुरु तनु तनु धान्यं धनं मेsश्वान गजान् रत्नानि दिव्यकामिनी: पुत्रान् राजश्रियं देहि यच्छ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः स्वाहा।”

(मन्त्र- मम शत्रून् खादय खादय हिंस हिंस’ से ‘क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः स्वाहा पर्यंत कालिका मन्त्र का स्वरूप है।)

इत्येतत् कवचं दिव्यं कथितं शम्भुना पुरा।
ये पठन्ति सदा तेषां ध्रुवं नश्यन्ति शत्रव:।।१९।।

जो भी मनुष्य इस दिव्य कवच का (पतिदिन) पाठ करते है, बिना किसी संदेह के उनके शत्रु स्वयं नष्ट हो जाते है, क्योंकि इस दिव्य कवच का निरुपण महादेवजी ने पूर्व में ही किया था।

वैरणि: प्रलयं यान्ति व्याधिता वा भवन्ति हि।
बलहीना: पुत्रहीना: शत्रवस्तस्य सर्वदा।।२०।।

(इस स्तोत्र का पाठ करने से) पाठकर्ता के शत्रु रोगी होते हैं, उनका बल अनायास ही समाप्त हो जाता है। वे इस पृथ्वीलोक में पुत्रहीन होते हैं और अपने आप नष्ट हो जाते हैं।

सह्रस्त्रपठनात् सिद्धि: कवचस्य भवेत्तदा।
तत् कार्याणि च सिद्धयन्ति यथा शंकरभाषितम्।।२१।।

भगवान शिव के कथन के अनुसार जो साधक एक हजार बार इस (काली) कवच का पाठ करता है, उसके सम्पूर्ण कार्य अनायास अर्थात् अपने आप पूर्ण हो जाती है।

श्मशानांग-र्-मादाय चूर्ण कृत्वा प्रयत्नत:।
पादोदकेन पिष्ट्वा तल्लिखेल्लोहशलाकया।।२२।।

भूमौ शत्रून् हीनरूपानुत्तराशिरसस्तथा।
हस्तं दत्तवा तु हृदये कवचं तुं स्वयं पठेत्।।२३।।

शत्रो: प्राणप्रतिष्ठां तु कुर्यान् मन्त्रेण मन्त्रवित्।
हन्यादस्त्रं प्रहारेण शत्रो ! गच्छ यमक्षयम्।।२४।।

श्मशान के चिता की जलती हुई अग्नि लेकर उसका चूरा बना लें, फिर अपने पैर के जल से उसे पीसकर भूमि पर अपने शत्रु के हीन-स्वरूप को, लोहे से निर्मित लेखनी से लिखें । फिर उसका मस्तक उत्तर दिशा की ओर रखकर तथा उस शत्रु के हृदय-स्थल पर अपना हाथ रख, स्वयं इस कालिका कवच का पाठ करें तथा मंत्र द्वारा अपने शत्रु की प्राण-प्रतिष्ठा कर अस्त्र-प्रहार करता हुआ (साधक) यह उच्चारण करेहै मेरे शत्रु! तुम यम के गृह में जाओ।

ज्वलदंग-र्-तापेन भवन्ति ज्वरिता भृशम्।
प्रोञ्छनैर्वामपादेन दरिद्रो भवति ध्रुवम्।।२५।।

यदि उस अवस्था में अपने शत्रु को जलती अग्नि में तपाया जाय, तो वह शत्रु निसन्देह) रोगी हो जाता है एवं उसका बायाँ पैर पोंछने पर वह शत्रु निःसन्देह दरिद्रता को प्राप्त होता है।

कालिका कवचम् फलश्रुति:
वैरिनाश करं प्रोक्तं कवचं वश्यकारकम्।
परमैश्वर्यदं चैव पुत्र-पुत्रादिवृद्धिदम्।।२६।।

यह (काली) कवच विशेषरूप से शत्रुओं का नाश करनेवाला और सभी प्राणिमात्र को अपने वशीभूत करनेवाला है। (यह कालीकवच) अति ऐश्वर्य को प्रदत्त करनेवाला और पुत्र-पौत्रादि की वृद्धि करनेवाला है।

प्रभातसमये चैव पूजाकाले च यत्नत:।
सायंकाले तथा पाठात् सर्वसिद्धिर्भवेद् ध्रुवम्।।२७।।

प्रातःकाल और पूजन के समय एवं सायंकाल इस कवच का पाठ करने से सम्पूर्ण सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

शत्रूरूच्चाटनं याति देशाद वा विच्यतो भवेत्।
प्रश्चात् किं-ग्-करतामेति सत्यं-सत्यं न संशय:।।२८।।

इस कालीकवच का पाठ करने से निश्चय ही शत्रु का उच्चाटन अथवा जिस देश वह शत्रु रहता है, उस देश से उसका निष्कासन होता है और वह शत्रु साधक का दास बन जाता है।

शत्रुनाशकरे देवि सर्वसम्पत्करे शुभे।
सर्वदेवस्तुते देवि कालिके त्वां नमाम्यहम्।।२९।।

हे शत्रुविनाशिनी! सम्पूर्ण सौभाग्य को प्रदत्त करनेवाली! सम्पूर्ण देवताओं का प्रार्थित हे कालिके! आपको मैं अनेकानेक बार प्रणाम करता हूँ।

।। इति रूद्रयामल तन्त्रोक्तं कालिका कवचम् समाप्त:।।

  • श्री महाकालिकायै नमो नमः *


Recitation of this Kavach leads to the destruction of enemies, subjugation of all living beings, bestows immense wealth, increases the number of sons and grandchildren and attains complete attainments. , Kalikakavacham.

Sitting on the peak of Kailas, the God of gods, the Guru of the universe. Parvati inquired of Lord Śiva.

Once upon a time, Guru Mahadevji of Devadhidev world was sitting on the peak of Mount Kailash. At that time Parvati asked him (this) question.

Parvati said. Lord of the gods and goddesses! Lord of the gods, enjoyer!. Tell me, O Lord! If it is a secret, if it is, O Lord!

Parvati said- O Lord of gods! Lord who provides food to all the gods! Hey Mahadevji! If that question is a secret to all the gods, then tell me.

By which the enemies may be destroyed and the self may be protected. Tell me by what means he may attain the supreme wealth of his uncle?.

Suggest some solution which can destroy the enemies and at the same time protect oneself and attain immense wealth.

Bhairava said. I will tell you, O great goddess! O best of all religious scholars. This wonderful shield of the goddess fulfills all desires.

Bhairavji said- Oh Mahadevi! You are knowledgeable about all religions, so now I will describe the amazing armor of Kalikadevi which fulfills all the wishes.

Especially the destruction of enemies is the protection of all men. It relieves all evils and destroys all evils.

This (Kalika) armor protects the living beings and destroys all the ill effects, diseases and especially kills the enemies.

It is pleasant and enjoyable and the best of subjugation. Hosts of enemies are destroyed and they are afflicted with disease.

This Kalika Kavach is a vashikaran agent that bestows happiness and wealth, destroys the enemies and makes the enemies suffer from (various types of) diseases.

They are miserable and feverish and betray their own desires One should recite the Kalika Kavacham which bestows pleasure and liberation.

(This) Kalika Kavach provides all happiness and salvation to the devotee who recites it. Because this (Kalika Kavach) is going to cause pain and fever to the enemies.

Kalika Kavacham Application ॐ The sage of this Sri Kalika Kavacha is Bhairava, the chant is Anushtap, the deity is Sri Kalika, and the victory for destroying enemies is the chanting.

The person doing the Viniyoga should take water in his right hand and chant ‘Om Asya Shrakalikakavachasya’ to ‘Jape Viniyoga’ and release the water on the earth.

Meditation. One should meditate on Kali, the great illusion, with three eyes and many forms. She had four arms and a red tongue and a face like the full moon.

Dhyana – She has three eyes, takes various forms, has four arms, has a mouth like the moon, has a tongue. Meditate on such Mahamaya Kali.

The blue lotus petals are dark and tear apart the hosts of enemies. Narmunda and the sword and the lotus and the best.

She was fearless with a red face and a terrible appearance with fangs The goddess with a sattahasana and always digambari.

She was seated on a corpse seat and adorned with a garland of skulls Thus meditating on Mahakali one should then recite this Kavacham.

Like a blue lotus, dark complexioned, destroyer of enemies, wearing Narmund, and carrying a sword, lotus and mudra, fearless, face smeared with blood, with big teeth, always laughing, naked in form, sitting on the seat of a dead body. The seeker should meditate on such Mahakali adorned with garlands. After that recite Kavach.

Kalika Kavacham ॐ Kalika is terrible and auspicious and bestows all desires. May goddess praised by all the gods destroy my enemies.

O Kalikadevi, who has a dense form, who bestows complete opulence and is praised by all the gods, please kill my enemies.

Om Hrim Hrim Rupinim and Hram Hrim Hram Rupinim. That form of Hram Hrim Kshom Kshom should always tear apart the enemies.

Hrim Hrim and Hram, Hrim, Hram and Hram, Hrim, Kshon, Kshaun seed-forming Kalika, may you always destroy (destroy) my enemies.

Sri Hri Aimrupani Devi Bhavabandha Vimochini. O Goddess Mahakali in the form of Hum protect us always.

In the same way, Sri, Hrim, Aim, seed-forming, destroyer of the bondage of death and Hum, seed-bearing Mahakali, may you constantly protect me.

She killed the demon Shumbha and the great demon Nishumbha. I worship that Kalika dear to Lord Shiva for the destruction of enemies.

It was you who killed the demon named Shumbha and the great demon Nishumbha. I bow to Kalika, the beloved of Lord Shiva, for destroying her enemies.

Brahma, Shaiva, Vaishnava, Varaha and Narasimha. May Indra and Chamunda eat me with their virginity.

(Because) you are Brahmi, Shaivite, Vaishnavi, Varahi, Narasimhi, Kumari Aindri and Chamunda Rupini, hence you eat my enemies.

Sureshwari is a terrible form and destroys the fierce head. May she whose body is covered with a garland of heads always protect me from all sides.

You, Sureshwari, are the one with a fierce form, the one who destroys Chand-Mund and wears the garland of Narmund. Therefore (O Mother) please protect me (continuously) from all troubles.

Hrim hrim hrim black, terrible fangs and blood-loving. Her mouth was full of blood and her breasts were covered with blood.

Hey Hreem Hreem Hreem Rupini Kalike! O Kalika, with fierce appearance, whose teeth, mouth and breasts are stained with blood! I dedicate my enemies to you (devouring).

Mantra:- “ Eat my enemies eat violence violence kill kill break break break break break high high high dissolve dissolve dry dry Svaha.Hram Hrim I offer my enemies to Kalika Svaha. ऊँ Jai Jai Kiri Kiri Kiti Kiti Kat Kat Madam Madam Mohaya Mohaya Har Har My enemies destroy destroy devour devour destroy destroy demons Chamunde all people king royal men women make me submissive make thin thin grain wealth messwan elephants gems divine lover: give me sons royal wealth give ks ks ks ks ks s Xaun Xah Svaha.”

(Mantra- Eat my enemies eat violence violence’ to ‘Ksham Kshim Kshum Ksham Ksham Ksah Svaha is the form of the Kalika Mantra.)

This divine shield was recited by Lord Shiva in the past. Those who recite it always their enemies are surely destroyed.

Whoever recites this divine armor (Patidin), without any doubt, his enemies themselves are destroyed, because this divine armor was already formulated by Mahadevji in the past.

The enemies go to destruction or become sick Without strength and without sons they are always his enemies.

(By reciting this stotra) the enemies of the reciter become sick, their strength suddenly disappears. They are sonless in this earth and are automatically destroyed.

By reciting a thousand weapons, the shield will then attain perfection. That and the works are accomplished as stated by Lord Shiva.

According to the statement of Lord Shiva, the devotee who recites this (black) armor a thousand times, his entire work gets completed spontaneously i.e. on its own.

He took the body parts of the graveyard and crushed them with great effort Grind with foot water and write on it with an iron bar.

The enemies on the ground were inferior in appearance and had northern heads Placing his hand on his heart he should recite this kavacham himself.

The mantra-wise person should chant the mantra to establish the life of the enemy. The enemy kills the weapon with a blow! Go to the abode of Yama.

Take the burning fire of the cremation pyre and turn it into powder, then grind it with the water of your feet and write the inferior image of your enemy on the ground with a pen made of iron. Then keeping his head towards the north and placing his hand on the heart of that enemy, recite this Kalika Kavach yourself and after consecrating the life of your enemy through the mantra, while attacking with the weapon (the seeker) should pronounce this, ‘My enemy.’ ! You go to Yama’s house.

They are severely feverish with the heat of the burning fire. With the left foot sprinkled he is sure to become poor.

If one’s enemy is heated in a burning fire in that state, that enemy undoubtedly) becomes ill and on wiping his left foot, that enemy undoubtedly attains poverty.

Kalika Kavacham Phalashruti: The shield is said to destroy enemies and subdue. It also gives supreme wealth and the increase of sons and daughters.

This (black) armor especially destroys the enemies and subdues all living beings. (This Kalikavach) bestows great wealth and increases the number of sons and grandchildren.

At dawn and at the time of worship with great care By reciting it in the evening in this way all perfection is sure to be attained.

By reciting this Kavach in the morning, at the time of worship and in the evening, one attains complete success.

He goes to the enemy’s head or may be displaced from the country. There is no doubt that what-g-to do afterwards is true-true.

By reciting this Kalikavach, the enemy is definitely exalted or expelled from the country where that enemy lives and that enemy becomes the slave of the seeker.

O auspicious goddess destroyer of enemies and bestower of all wealth O goddess Kalika worshiped by all the gods I bow to you.

O destroyer of enemies! The one who bestows complete good fortune! O Kalike, the prayer of all the gods! I salute you many times.

।। This is the complete Kalika Kavacham described in the Rudrayamala Tantra. Sri Mahakalikayai Namo Namah *

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