बिहार पंचमी
श्री बाँकेबिहारीजी का प्राकट्य दिवस”


(मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी) ब्रज में प्रकटे हैं बिहारी, जय बोलो श्री हरिदास की। भक्ति ज्ञान मिले जिनसे, जय बोलो गुरु महाराज की॥ मार्गशीर्ष, शुक्ल पक्ष, पंचमी को ही श्री धाम वृन्दावन में बिहारी श्री बांके बिहारी जी का प्राकट्य उत्सव मनाया जाता है। इसी दिन अप्रकट रहने वाले प्रभु साक्षात् नित्य वृन्दावन में निधिवन में प्रकट हुए थे। तीनो लोकों के स्वामी को इस दिन रसिक सम्राट स्वामी श्री हरिदास जी महाराज ने अपनी भक्ति से जीत लिया था और वो अपने सभी भक्तों को दर्शन देने के लिए उनके सामने आ गए। स्वामी श्री हरिदास जी निधिवन के कुंजो में प्रतिदिन नित्य रास और नित्य विहार का दर्शन किया करते थे, और अत्यंत सुंदर पद भी गाया करते थे। वो कोई साधारण मनुष्य नहीं थे, भगवान की प्रमुख सखी श्री ललिता सखी जी के अवतार थे। जब तक वो धरती पर रहे, उन्होंने नित्य रास में भाग लिया और प्रभु के साथ अपनी नजदीकियों का हमेशा आनन्द उन्हें प्राप्त हुआ। उनके दो प्रमुख शिष्य थे। सबसे पहले थे उनके अनुज गोस्वामी जगन्नाथ जी जिनको स्वामी जी ने ठाकुर जी की सेवा के अधिकार दिए और आज भी वृन्दावन में बांके बिहारी मन्दिर के सभी गोस्वामी जगन्नाथ जी के ही कुल के हैं। उनके दूसरे शिष्य थे उनके भतीजे श्री विठ्ठल विपुल देव जी। बिहार पंचमी के दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन भी होता है। स्वामी जी के सब शिष्य उनसे रोज आग्रह किया करते थे कि वो खुद तो हर दिन नित्य विहार का आनन्द उठाते है कभी उन्हें भी यह सौभाग्य दें जिससे वो भी इस नित्य रास का हिस्सा बन सके। पर स्वामी जी ने कहा की सही समय आने पर उन्हें स्वतः ही इस रास का दर्शन हो जायेगा क्योंकि रास का कभी भी वर्णन नहीं किया जा सकता। इसका तो केवल दर्शन ही किया जा सकता है और वो दर्शन आपको भगवान के अलावा कोई नहीं करा सकता।

स्वामी जी का एक कुञ्ज था वो जहाँ वे रोज साधना किया करते थे। उनके सभी शिष्य इस बात को जानने के लिए काफी व्याकुल थे कि ऐसा क्या खास है उस कुञ्ज में। एक दिन जिस दिन विठ्ठल विपुल देव जी का जन्मदिन था, स्वामी जी ने सबको उस कुञ्ज में बुलाया। जब सब विठ्ठल विपुल देव जी के साथ उस कुञ्ज में गए तो सब एक दिव्या प्रकाश से अन्धे हो गए और कुछ नजर नहीं आया। फिर स्वामी जी सबको अपने साथ वह लेकर आये और सबको बिठाया। स्वामी जी प्रभु का स्मरण कर रहे थे, उनके सभी शिष्य उन का अनुसरण कर रहे थे, और सबकी नजरे उस कुञ्ज पर अटकी हुई थी और सब देखना चाहते थे कि क्या है इस कुञ्ज का राज। तो सबके साथ स्वामी जी यह पद गाने लगे।

माई री सहज जोरी प्रगट भई जू रंग कि गौर श्याम घन दामिनी जैसे।
प्रथम हूँ हुती अब हूँ आगे हूँ रही है न तरिहहिं जैसें॥
अंग अंग कि उजराई सुघराई चतुराई सुंदरता ऐसें।
श्री हरिदास के स्वामी श्यामा कुंजबिहारी सम वस् वैसें॥ स्वामी जी कि साधना शक्ति से उन दिन उन सबके सामने बांके बिहारी जी अपनी परम अह्लादनी शक्ति श्री राधा रानी के साथ प्रकट हो गए। चेहरे पे मंद मंद मुस्कान, घुंघराले केश, हाथों में मुरली, पीताम्बर धारण किया हुआ जब प्रभु कि उस मूरत का दर्शन सब ने किया तो सबका क्या हाल हुआ उसका वर्णन नहीं किया जा सकता।

वे अपनी पलक झपकाना भी भूल गए हुए हैं। और ऐसे बैठे मानो कोई शरीर नहीं बल्कि एक मूर्ति हैं। स्वामी जी कहते है कि देखो प्रभु प्रकट हो गए हैं। प्रभु कि शोभा ऐसी ही है जैसी घनघोर घटा कि होती है।

यह युगल जोड़ी हमेशा विद्यमान रहती है। प्रकृति के कण-कण में युगल सरकार विराजमान है। और ये हमेशा किशोर अवस्था में ही रहते हैं। स्वामी जी के आग्रह से प्रिय और प्रीतम एक दूसरे के अन्दर लीन हो गए और फिर वही धरती से स्वामी जी को एक दिव्या विग्रह प्राप्त हुआ जिसमे राधा और कृष्ण दोनों का रूप है और इसी विग्रह के माध्यम से ठाकुर जी हमें श्री धाम वृन्दावन में दर्शन देते हैं।

यही कारण है कि ठाकुर जी का आधा श्रृंगार पुरुष का होता है और आधा श्रृंगार स्त्री का होता है। यह त्यौहार श्री धाम वृन्दावन में आज भी बहुत धूम धाम से मनाया जाता है। सुबह सबसे पहले निधिवन में प्रभु के प्राकट्य स्थल में जो भगवन में प्रतीक चरण चिन्ह है उनका पंचामृत अभिषेक किया जाता है। फिर एक विशाल सवारी स्वामी जी की वृन्दावन के प्रमुख बाजारों से होती हुई ठाकुर जी के मन्दिर में पहुँचती हैं। स्वामी जी की सवारी में हाथी, घोड़े, कीर्तन मंडली इत्यादि सब भाग लेते हैं। सवारी के सबसे आगे तीन रथ चलते हैं। इनमे से एक रथ में स्वामी श्री हरिदास जी, एक में गोस्वामी जगन्नाथजी और एक रथ में विठ्ठल विपुल देव जी के चित्र विराजमान होते हैं।

ये रथ राज भोग के समय ठाकुर जी के मन्दिर में पहुँचते हैं और फिर तीनो रसिकों के चित्र मन्दिर के अन्दर ले जाये जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन ठाकुर जी हरिदास जी महाराज कि गोद में बैठकर उनके हाथों से भोग लगाते हैं। यदि आपको किशोरी जी इस दिन अपने धाम वृन्दावन में बुला ले तो आपका सौभाग्य है परन्तु यदि किशोरी जी नहीं भी बुलाती हैं तो आप सुबह अपने घर पे ही बिहारी जी को भोग लगाये और संध्या के समय प्रभु की आरती करिये और उनके भजन में झूमते रहिये। आप पर कृपा जरूर बरसेगी। और आपको यह जानकार बहुत खुशी होगी कि इसी दिन भगवन श्री राम का जानकी जी के साथ विवाह भी हुआ था। इसलिए बिहार पंचमी को विवाह पंचमी भी कहा जाता है। "जय जय श्री राधे"

🌹🌹🙏🙏जय सियाराम जी की 🌹🌹🙏🙏



(Margashirsha Shukla Panchami) Bihari has appeared in Braj, say Jai to Shri Haridas. From whom you get devotional knowledge, say Jai Guru Maharaj. The festival of appearance of Bihari Shri Banke Bihari ji is celebrated in Shri Dham Vrindavan on Margashirsha, Shukla Paksha and Panchami. On this day, the Lord, who remained invisible, appeared daily in Nidhivan in Vrindavan. On this day, the Lord of the three worlds was won over by Rasik Samrat Swami Shri Haridas Ji Maharaj with his devotion and he came in front of him to give darshan to all his devotees. Swami Shri Haridas ji used to have darshan of Nitya Raas and Nitya Vihar every day in the Kunjo of Nidhivan, and also used to sing very beautiful verses. He was not an ordinary human being, he was the incarnation of Lord Shri Lalita Sakhi Ji. As long as he lived on earth, he participated in Raas daily and always enjoyed his closeness to the Lord. He had two main disciples. The first was his younger brother Goswami Jagannath ji, to whom Swami ji gave the rights to serve Thakur ji and even today all the Goswami of Banke Bihari temple in Vrindavan belong to the same clan of Jagannath ji. His second disciple was his nephew Shri Vitthal Vipul Dev Ji. Vitthal Vipul Dev Ji’s birthday is also on the day of Bihar Panchami. All the disciples of Swami ji used to request him every day that he himself enjoys Nitya Vihar every day, so that sometime he should give them this good fortune so that they too can become a part of this Nitya Raas. But Swamiji said that when the right time comes, he will automatically see this Raas because Raas can never be described. It can only be seen and no one can give you that sight except God.

Swamiji had a garden where he used to meditate daily. All his disciples were very anxious to know what was so special about that grove. One day when it was Vitthal Vipul Dev ji’s birthday, Swami ji called everyone in that grove. When everyone went to that grove with Vitthal Vipul Dev Ji, everyone became blinded by a single divine light and could not see anything. Then Swamiji brought everyone with him and made everyone sit. Swamiji was remembering the Lord, all his disciples were following him, and everyone’s eyes were fixed on that key and everyone wanted to see what was the secret of this key. So Swami ji started singing this verse along with everyone.

My mother’s light is easily revealed, my color is as bright as black and white. I used to be the first, now I am ahead, I am like that. The beauty of body parts is improved, cleverness and beauty are like this. Lord Shyama Kunjbihari of Shri Haridas is the same. That day, due to the power of Swami ji’s spiritual practice, Banke Bihari ji appeared in front of them all with his supreme ahladani power Shri Radha Rani. When everyone saw that idol of the Lord with a slow smile on his face, curly hair, flute in his hands, wearing a yellow flag, what happened to everyone cannot be described.

He has even forgotten to blink his eyelids. And sat as if he was not a body but a statue. Swami ji says that look the Lord has appeared. The beauty of God is like that of heavy rain.

This couple always exists. Couple government is present in every particle of nature. And they always remain in adolescence. Due to Swami ji’s insistence, Priya and Preetam got absorbed in each other and then from the same earth, Swami ji received a divine idol which has the form of both Radha and Krishna and through this idol, Thakur ji gave us darshan in Shri Dham Vrindavan. Let’s give.

This is the reason why half of Thakur ji’s makeup is of a man and the other half is of a woman. This festival is celebrated with great pomp even today in Shri Dham Vrindavan. First of all in the morning, Panchamrit Abhishek is performed at the place of Lord’s appearance in Nidhivan, which is the symbolic footprint of God. Then a huge procession of Swami ji passes through the major markets of Vrindavan and reaches Thakur ji’s temple. Elephants, horses, kirtan troupes etc. all take part in Swamiji’s ride. Three chariots move at the forefront of the ride. Of these, the pictures of Swami Shri Haridas ji, Goswami Jagannath ji and Vitthal Vipul Dev ji are present in one chariot.

These chariots reach Thakur ji’s temple at the time of Raj Bhog and then the pictures of the three Rasikas are taken inside the temple. It is believed that on this day Thakur Ji sits in the lap of Haridas Ji Maharaj and offers Bhog with his hands. If Kishori ji calls you to her abode Vrindavan on this day, then it is your good fortune, but even if Kishori ji does not call you, then you should offer food to Bihari ji at your home in the morning and perform aarti of the Lord in the evening and keep dancing in his hymns. . Blessings will definitely shower on you. And you will be very happy to know that on this day Lord Shri Ram was also married to Janaki ji. Therefore Bihar Panchami is also called Vivah Panchami. “Hail Hail Lord Radhe”

🌹🌹🙏🙏Jai Siyaram ji 🌹🌹🙏🙏

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