आप एकांत में कभी अपने आप से प्रेमपूर्ण होने का प्रयोग करें, खोजें, टटोलें अपने भीतर। हो जाएगा, होता है, हो सकता है। जरा भी कठिनाई नहीं है। कभी प्रयोग ही नहीं किया उस दिशा में, इसलिए ख्याल में बात नहीं आई।निर्जन में भी फूल खिलते हैं और सुगंध फैला देते हैं। एकांत में प्रेम की सुगंध को पकड़ें।
जब एक बार एकांत में प्रेम की सुगंध पकड़ में आ जाएगी, तो आपको ख्याल आ जाएगा कि प्रेम कोई संबंध नहीं है। चेतना की एक अवस्था है।
जिसे परमात्मा की लौ लगी जिसके भीतर प्रकाश जगा जिसने परमात्मा की आवाज़ सुनी वह सहसा बढ़ जाता है परमात्मा की ओर..रुक नहीं पाता। वह नाचता गाता प्रवेश कर जाता है।आप चकित रह जाएंगे सोच भी नहीं पाएंगे कि क्या हो रहा है। सारे भ्रम टूट जाएंगे।ऐसा है परमात्मा का अनुभव इसे आप जीत कहें.. तो ठीक हार कहें.. तो ठीक एक तरह से हार है कि आप मिट गए पर वास्तव में यह जीत है कि आप बूँद से सागर हो गए।
जब आप नया-नया तैरना शुरू करते है मन घबराता है, बेचैनी होती है। और जब तैरना सीख जाते हैं तो इसी तैरने में आनंद आने लगता है फिर कोई चेष्टा नहीं करनी होती। इसी प्रकार अगर परमात्मा के प्रेम में डूबना है,तो पहले-पहले घबराहट होगी;सांस रुकेगी ,ऐसे लगेगा कि अभी जान निकली, डर के मारे कहीं भाग मत खड़े होना। आहिस्ता-आहिस्ता अभ्यास गहरा होता जायेगा और डर का स्थान आनंद ले लेगा।