भक्ति में बहुत शक्ति होती है। भक्ति का तात्पर्य है- स्वयं के अंतस को ईश्वर के साथ जोड़ देना। ईश्वर से जुड़ने की प्रवृत्ति ही भक्ति है।
दुनियादारी के रिश्तों में जुट जाना भक्ति नहीं है। भक्ति का मतलब है पूर्ण समर्पण। सरल शब्दों में हम कहते हैं कि हमारी आत्मा परमात्मा की डोर से बंध गई।
ईश्वर के प्रति निष्ठापूर्वक समर्पित होने वाला सच्चा साधक ही भक्त है। जिसके विचारों में शुचिता (पवित्रता) हो, जो अहंकार से दूर हो, जो किसी वर्ग-विशेष में न बंधा हो, जो सबके प्रति सम भाव वाला हो, सदा सेवा भाव मन में रखता हो, ऐसे व्यक्ति विशेष को हम भक्त का दर्जा दे सकते हैं।
नर सेवा में नारायण सेवा की अनुभूति होने लगे, ऐसी अनुभूति ही सच्ची भक्ति कहलाती है। भक्त के लिए समस्त सृष्टि प्रभुमय होती है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-
‘जो पुरुष आकांक्षा से रहित, पवित्र, दक्ष और पक्षपातरहित है, वह सुखों का त्यागी मेरा भक्त मुझे प्रिय है।’
परंतु अफसोस यह कि इस दौड़ती-भागती और तनावभरी जिंदगी में हम कई बार प्रार्थना में भगवान से भगवान को नहीं मांगते, बल्कि भोग-विलास के कुछ संसाधनों से ही तृप्त हो जाते हैं।
जब व्यक्ति दुनियादारी से दूर हटकर अपनी महत्वाकांक्षाओं को नियंत्रित करता है, तभी उसकी चेतना झंकृत होती है और परमात्म चिंतन में ईश्वरीय भक्ति साकार होने लगती है। भक्ति थी मीरा की, भक्ति थी चैतन्य महाप्रभु की, बुद्ध की, नानक की और महावीर की।
जब सब लोग रात में सो जाएं और उस समय भी जिसके मन में परमपिता को पाने की हुंकार उठे, तो समझें वही सच्चा भक्त है।
भक्त सही मायने में सुख और आनंद का पर्याय है। जब आपकी कामना या प्रार्थना राममय हो जाए, तो समझें कि यही भक्ति है।
भक्त ही एकमात्र ऐसा है जो हृदय से यदि भगवान को याद करे तो परमपिता भी स्वयं को उसके अधीन कर देते हैं। इसलिए कहा भी गया है कि सच्ची भक्ति से भगवान भी भक्त के वश में हो जाते हैं।
भक्तिभाव का आधार प्रेम, श्रद्धा और समर्पण है। भगवान राम ने शबरी के जूठे किए बेर भी प्रेम और भक्तिभाव के कारण खाए थे।
मन में भक्ति भाव के उठने के बाद भक्त के व्यक्तित्व के नकारात्मक गुण दूर हो जाते हैं और उसके व्यक्तित्व का उन्नयन होने लगता है। भक्त अहंकार से मुक्त होकर अपनी अंतस चेतना में ईश्वर की अनुभूति करने लगता है। ।। श्री परमात्मने नमः ।।
There is a lot of power in devotion. Devotion means connecting one’s inner self with God. Devotion is the tendency to connect with God.
Getting involved in worldly relationships is not devotion. Bhakti means complete dedication. In simple words we say that our soul is tied to the thread of God.
Only a true seeker who is dedicated to God is a devotee. We should give the status of a devotee to the one who has purity in his thoughts, who is away from ego, who is not bound to any particular class, who has equal feelings towards everyone, who always keeps the spirit of service in mind. Can.
One starts experiencing service to Narayan while serving man, such experience is called true devotion. The entire creation is divine for the devotee. Lord Shri Krishna says in Geeta-
‘The man who is free from desires, pure, efficient and free from bias, that devotee of mine who has renounced pleasures is dear to me.’
But the sad thing is that in this fast-paced and stressful life, many times we do not seek God from God in prayer, but get satisfied only with some resources of luxury.
When a person moves away from worldly matters and controls his ambitions, only then his consciousness becomes alert and devotion to God begins to be realized in the contemplation of God. There was devotion to Meera, devotion to Chaitanya Mahaprabhu, Buddha, Nanak and Mahavir.
When everyone goes to sleep at night and even at that time, the one who cries out to find the Supreme Father, then understand that he is a true devotee.
Devotee is truly synonymous with happiness and joy. When your wish or prayer is fulfilled, then understand that this is devotion.
The devotee is the only one who remembers God from his heart, then even the Supreme Father subordinates himself to him. That is why it is also said that with true devotion even God comes under the control of the devotee.
The basis of devotion is love, devotion and dedication. Lord Ram also ate Shabari’s plucked berries out of love and devotion.
After the feeling of devotion arises in the mind, the negative qualities of the devotee’s personality go away and his personality starts upgrading. The devotee becomes free from ego and starts experiencing God in his inner consciousness. , Shri Paramatmane Namah.