सत्संग यानी सत् के साथ हों जाना सत् का संग हों जाना याने कि सत् ख़ुद हों जाना सत्संग कोई दें नहीं सकते हैं सत् होना है, अपने स्व स्वरुप पाना है वो सत् है ओर-सब जुठ भ्रम कल्पनाएं हैं
ओर-भजन का अर्थ मतलब है, अभ्यास भजन करना मतलब अपने स्व स्वरुप को भजना याद करना उसका सतत् सदैव स्मरण करना,उसकी स्मृति सदेव बनी रहें, आत्मदर्शन आत्म भाव आत्मनिष्ठा आत्म वर्तन निर्दोष निर्मल शुद्ध यह भजन है, ओर-सब आंखों बंधकर के बेठ जाना कीसी शब्द को सुनना या सत्संग में शब्दों को सुनना ऐ बाहरी सत्संग केवल जानकारियां हैं माहिती है, शाब्दिक ज्ञान है,न तों वो सत्संग है न बेठना भजन है,
भजना मतलब अपने स्व स्वरुप की याद स्मरण सूरति करना सूरति मतलब स्मृति मैं लाना याद करना मैं कौन हूं कहां से आया किसलिए आया आने का फ़ल क्या हैं,
ऐसी स्मृति सूरति भजन भजना मथना मतलब चिंतन मंथन करना वह भजन कहलाता है
हार्मोनियम ढोलक बजाना नाचना कुदना गाना बजाना ऐ भजन नहीं है,या आंखें बंद करके बेठ जाना वो भजन नहीं है,
लेकिन ऐसे याद स्मरण भजते भजते सत् के साथ हों जाना सत् हों जाना ऐ सत्संग हैं, ओर-सब जानकारी शाब्दिक माहिती है,
नुर जोतो जाव छु नुर थातो जाव छु नुर साथे भलतो जाव छु अतः तहा नुर बनी जाव छु
Satsang means to be with the truth. To be with the truth means to become the truth itself. No one can give satsang. To be the truth is to attain one’s own form. That is the truth and all these are lies, illusions and imaginations. The meaning of bhajan is to practice bhajan, to remember one’s self, to remember it continuously, to remember it forever, to introspect, to have self-confidence, to conduct oneself innocent, pure, this bhajan is, and with all eyes closed. Sitting to listen to any word or listening to words in satsang, external satsang is only information, it is verbal knowledge, neither is it satsang nor sitting is bhajan, To bhajana means to remember one’s own form, to remember one’s form, to remember one’s own self, to remember one’s own self, to remember one’s own self, to remember one’s self, who am I, where did I come from, why did I come, what is the result of coming, Such Smriti Surti Bhajan Bhajana Mathna meaning churning of thoughts is called Bhajan. Playing harmonium, dancing, jumping, singing is not a bhajan, or sitting with closed eyes is not a bhajan, But in such a way, by remembering and worshiping, becoming one with the truth, becoming the truth, this is satsang, and all the information is literal information, Nur Joto Jaav Chu Nur Thato Jaav Chu Nur Sathe Bhalto Jaav Chu So Taha Nur Bani Jaav Chu