यदि नाथ का नाम दयानिधि है,

अब हम भगवान के हो गए, भगवान हमारे हैं।

यदि नाथ का नाम दयानिधि है,
तो दया भी करेंगे कभी न कभी।
अघ हारि हरी दुखिया जनों के,
दुःख क्लेश हरेंगे कभी न कभी।। विश्वास रखें। यही डोली में बैठना है। भक्ति की डोली में बैठो, तो विश्वासपूर्वक बैठो। कहाँ ले जा रहे हैं, वह पहुंचा देंगे। जिनके कंधे पर बोझ है डोली का, उन्हीं पर बोझ है हमारा। भगवान की शरणागति, भगवान के नाम रूप का जो आश्रय लिया है, यही पहुंचा देंगे। भगवान का विरद ही हमें भगवान से मिला देगा। लेकिन श्री भरत जी काहे से जा रहे हैं? हाथी पर बैठकर, घोड़े पर बैठकर, रथ में बैठकर या डोली में बैठकर? ना, किसी साधन से नहीं जा रहे हैं भरत जी

सानुज भरत पयादेहिं जाहीं।
वन सियराम समुझि मन माहीं।। भरत जी पैदल जा रहे हैं। न हाथी पर बैठे, न घोड़े पर बैठे, न रथ में बैठे, न डोली में, पैदल। अच्छा ये पैदल चलने वाले कौन हैं? ये न ज्ञानी हैं, न योगी हैं, न धर्मात्मा हैं, न भक्त हैं, ये कौन हैं? अच्छा व्यक्ति जब पैदल चलेगा तो दो पांव से ही तो चलेगा? एक पांव आगे, एक पांव पीछे, फिर एक पांव आगे, फिर एक पांव पीछे। यह दो पांव से चलने वाले लोग पैदल हैं और मुझे लगता है जीवन में ज्ञान की निष्ठा धारण न कर सकें, योगी न हो सकें, भक्त न हो सकें, धर्मात्मा न हो सकें, तो कोई चिंता मत करो। यह दो पांव से ही चलो, अर्थात् दो पद से चलो, और दो पद का अर्थ है  राम नाम के दो अक्षर इन्हीं के सहारे चलो।

रे मन तू दो अक्षर पढ़ ले।
दो अक्षर के राम नाम से,
जीवन अपना गढ़ ले। राम, राम, राम  बस यही है। भरत जी से सेवकों ने कहा

होइहि तात अश्व असवारा। घोड़े पर बैठ जाइये। आप पैदल चल रहे हैं, यह ठीक नहीं है। श्री भरत के तो आंखों से आंसू बरस रहे थे। भरत जी ने सेवकों से कहा  ठीक कहते हो । हम पैदल चल रहे हैं, यह सचमुच ठीक नहीं है, हमें पैदल नहीं जाना चाहिए। फिर?

सिर धरि जाऊं उचित अस मोरा।
सब ते सेवक धर्म कठोरा।
राम पयादेहिं पायं सिधाए।
हम कहं रथ गज बाजि बनाए।।
बैठि अश्व पर जाउं मैं
पैदल गे रघुनाथ।
जहँ स्वामी के पग परे
तहँ सेवक को माथ।। भरत जी कहते हैं  राम, माता जानकी, लक्ष्मण भैया के संग इसी मार्ग से पैदल-पैदल गये हैं। जिस रास्ते पर हमारे जीवन सर्वस्व श्री सीताराम बिना पदत्राण के निरावरण चरण विचरण करते हुए गये हों, उसी रास्ते पर मैं घोड़े पर बैठकर जाऊँ, क्या यही भक्त का लक्षण है? यही सेवक का व्यवहार होना चाहिए? सब ते सेवक धर्म कठोरा। सेवक का धर्म सबसे अधिक कठोर है। सेवक सुख चह  सेवक और सुख चाहे, सम्भव नहीं है, क्योंकि सेवक सुख देने के लिए होता है,सुख लेने के लिए नहीं। बहुत बार सेवक लोग शिकायत करते हैं। जबसे उनकी सेवा में हैं, बड़े परेशान हैं। थोड़ा सा आराम भी नहीं मिलता है। तो हमने कहा  फिर आये काहे को थे? घर में रहते। हाँ! एक बात है। सेवक को आराम भले ही न मिले, पर उसकी तपस्या बेकार नहीं जाती। उसे आराम न मिले, पर राम मिल जाते हैं।

सेवक सुख चह मान भिखारी। सेवक सुख चह, और मान भिखारी  भिखारी चाहे कि लोग हमारा सम्मान करें। सम्भव नहीं है। व्यसनी धन  जो व्यसनी स्वभाव का है, वह चाहे कि धन का संग्रह हो जाय, वह धनी हो जाय। शुभ गति व्यभिचारी  चरित्रहीन व्यक्ति, शील विहीन व्यक्ति अपनी शुभ गति की कल्पना करें, सम्भव नहीं है। लोभी जस चह और लोभी आदमी चाहे कि हमारी जय-जयकार हो, यश हो। हो नहीं सकता, और चार गुमानी  और अभिमानी आदमी चाहे कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष हमें मिल जायेंगे। नभ दुहि दूध चहत यह प्रानी। ये लोग ऐसे समझो, जैसे कोई आकाश को निचोड़कर दूध पीना चाहता है, सम्भव नहीं है।

सेवक सुख चह मान भिखारी।
व्यसनी धन शुभ गति व्यभिचारी।।
लोभी जस चह चार गुमानी।
नभ दुहि दूध चहति यह प्रानी।।



Now we belong to God, God is ours.

If Nath’s name is Dayanidhi, So we will show mercy some day or the other. Agh Hari Hari of the unhappy people, Sorrows and troubles will be defeated someday. Have faith. This is to sit in the doli. If you sit in the cart of devotion, then sit with faith. Wherever you are taking him, he will take you there. Those who have the burden of the doli on their shoulders, our burden is on them. Surrender to God, taking shelter in the name and form of God, will give you this. Only the enemy of God will unite us with God. But where is Shri Bharat ji going from? Sitting on an elephant, on a horse, in a chariot or in a cart? No, Bharat ji is not going by any means.

Sanuj Bharat is walking on foot. One siyaram samujhi man mahi. Bharat ji is going on foot. Neither sitting on an elephant, nor on a horse, nor in a chariot, nor in a cart, but on foot. Well, who are these pedestrians? He is neither a knowledgeable person, nor a yogi, nor a religious person, nor a devotee, who is he? When a good person walks, he will walk with only two feet. One foot forward, one foot back, then one foot forward, then one foot back. These people who walk on two legs are pedestrians and I think that if you cannot maintain the devotion to knowledge in life, if you cannot be a yogi, if you cannot be a devotee, if you cannot be a religious person, then do not worry. Walk with two feet only, that is, walk with two feet, and two feet means the two letters of the name Ram, walk with the support of these.

Hey man, read two letters. With the name Ram of two letters, Take life as your fortress. Ram, Ram, Ram that’s all. The servants said to Bharatji

Hoihi tat ashwa aswara. Sit on the horse. You are walking, it is not right. Tears were flowing from Shri Bharat’s eyes. Bharat ji said to the servants, you are right. We are walking, this is really not right, we should not be walking. Then?

I should hold my head as I see fit. The strictest servile religion of all. Ram has straightened his feet. Where should we make chariots and music? I will go on horseback Raghunath on foot. where beyond the master’s footsteps There head the servant. Bharat ji says that Ram has gone on foot along this route with mother Janaki and Laxman bhaiya. Is this the sign of a devotee, should I go on a horse on the same path on which Shri Sitaram has walked all his life, walking bare feet, without walking on foot? This should be the behavior of a servant? The strictest servile religion of all. The duty of a servant is the most strict. It is not possible for a servant to want happiness, because a servant is meant to give happiness, not to take happiness. Many times servants complain. Since being in his service, he is in great trouble. Don’t get even a little rest. So we said then why did you come? Live at home. Yes! There is one matter. The servant may not get rest, but his penance does not go in vain. He may not get any rest, but he finds Ram.

Servant happiness, beggar cheering. A servant wants happiness, and a beggar of respect wants people to respect him. Not possible. A person who is addicted to money may want to accumulate wealth and become rich. Auspicious pace: It is not possible for an adulterous characterless person, a person without modesty to imagine his auspicious pace. Greedy as it may be and a greedy man wants our praise and fame. This is not possible, and if four arrogant and proud men want, we will get religion, artha, kama, moksha. This creature loves milk. These people consider it as if someone wants to squeeze the sky and drink milk, it is not possible.

Servant happiness, beggar cheering. Addicted to wealth, good fortune, adulterer. Greedy and arrogant. This creature loves milk.

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