प्रेम दिवाने सभी भये , बदल गए सब रूप l
सहज समझ न आ सके , कौन रंक को भूप ll प्रेम के सात रंग:
1 सबसे पहला मोह :-
वस्तुओं के प्रति प्रेम, प्रेम का स्थुल रूप है
2 देह के प्रति प्रेम वासना का रूप है
2 तीसरा प्रेम है विचारों का, मन का प्रेम :-
जिसे हम कहते हैं मैत्री भाव। यहाँ देह का सवाल नहीं है। वस्तु का भी सवाल नहीं है। मन आपस में मिल गए तो मित्रता हो जाती है। मन के तल का प्रेम, विचार के तल का प्रेम दोस्ती है।
4 चौथा है हृदय के तल पर, जिसे हम कहते हैं- प्रीति :-
सामान्यतः हम इसे ही भावनात्मक प्रेम कहते हैं। इसे यहाँ बीच में रख सकते हैं, यह चौथे सोपान पर है क्योंकि तीन रंग उसके नीचे हैं, तीन रंग उसके ऊपर हैं।
तो चौथा है हृदय के तल पर प्रीति का भाव; अपने बराबर वालों के साथ हृदय का जो संबंध है , भाई-भाई के बीच, पति-पत्नी के बीच, पड़ोसियों के बीच ,
इसके दो प्रकार और हैं – अपने से छोटों के प्रति वात्सल्य भाव है, स्नेह है। अपने से बड़ों के प्रति आदर का भाव है , ये भी प्रीति के ही रूप हैं।
5 पांचवें प्रकार का प्रेम आत्मा के तल का प्रेम :-
इसमें भी दो प्रकार हो सकते हैं। जब हमारी चेतना का प्रेम स्वकेंद्रित होता है तो उसका नाम ध्यान है। और जब हमारी चेतना परकेंद्रित होती है, उसका नाम श्रद्धा है।
गुरु के प्रति प्रेम श्रद्धा है।
6 चेतना के बाद छठवें तल का प्रेम घटता है :-
जब हम ब्रह्म से, परमात्मा से परिचित होते हैं। वहाँ समाधि घटित होती है।
वह भी प्रेम का एक रूप है। अतिशुद्ध रूप। अब वहाँ वस्तुएं न रहीं, देह न रही। विचारों के पार, भावनाओं के भी पार पहुंच गए। तो समाधि को कहें पराभक्ति, परमात्मा के प्रति अनुरक्ति।
7 अंतिम एवं सातवां प्रेम है- अद्वैत की अनुभूति :-
कबीर कहते हैं :-
प्रेम गली अति सांकरी ता में दो न समाई। जब अद्वैत घटता है तो न मैं रहा, न तू रहा; न भगवान रहा, न भक्त बचा। कोई भी न बचा। वह प्रेम की पराकाष्ठा है।
ये सात रंग हैं प्रेम के इंद्रधनुष के समान ऐसा समझें।
प्रेम-प्रेम सब कोइ कहैं, प्रेम न चीन्है कोय।
जा मारग साहिब मिलै, प्रेम कहावै सोय॥
संत महात्मा कहते हैं कि प्रेम करने की बात तो सभी करते हैं पर उसके वास्तविक रूप को कोई समझ नहीं पाता। प्रेम का सच्चा मार्ग तो वही है जहां परमात्मा की भक्ति और ज्ञान प्राप्त हो सके।
Love crazy everyone got scared, all the forms changed. Couldn’t understand easily, who is the earth for the pauper ll Seven colors of love:
1 First attraction :-
Love for things is a physical form of love 2 Love of the body is a form of lust
2 The third love is the love of thoughts, the love of the mind: –
Which we call friendship. There is no question of body here. There is no question of any object. When minds come together, friendship is formed. Love at the level of mind, love at the level of thought is friendship.
4 The fourth one is at the bottom of the heart, which we call- Preeti:-
Generally we call this emotional love. It can be placed here in the middle, it is on the fourth step because three colors are below it, three colors are above it. So the fourth is the feeling of love at the bottom of the heart; The relationship of the heart with its equals, between brothers, between husband and wife, between neighbors, There are two more types of it – there is a feeling of affection and affection towards the younger ones. There is a feeling of respect towards one’s elders, these are also forms of love.
5 The fifth type of love is love from the level of the soul:-
There can be two types in this also. When the love of our consciousness is self-centered, its name is meditation. And when our consciousness is focused, its name is faith. Love is devotion towards the Guru.
After 6 consciousness, the love of the sixth plane decreases: –
When we become acquainted with Brahma, God. Samadhi occurs there. That is also a form of love. Very pure form. Now there are no more objects, no more body. Reached beyond thoughts, even beyond emotions. So Samadhi should be called parabhakti, devotion towards God.
7 The last and seventh love is – the feeling of Advaita: –
Kabir says:- The street of love is too narrow to accommodate two. When Advaita decreases, neither I nor you remain; Neither God is left, nor the devotee is left. No one was left. That is the pinnacle of love.
These seven colors are like the rainbow of love.
Everyone says love, love, but no one understands love. Go and find Marg Sahib, where love lies.
Saint Mahatma says that everyone talks about love but no one understands its real form. The true path of love is the one where devotion and knowledge of God can be attained.