एक दिन श्रीराधा अत्यधिक रूष्ट हो गईं।
श्रीकृष्ण बहुत प्रकार के उपायों द्वारा भी उन्हें प्रसन्न करने में असमर्थ हुए।
तब वे कुन्दलता जी के पास गए और श्रीराधाजी का मान भंग करने एक मन्त्रणा किए।
वस्त्र, भूषणादि परिधानों से सुसज्जित होकर उन्हाने सुंदर नर्तकी का वेश धारण किया। कोयल जैसी मधुर वाणी से वार्तालाप करते हुए कुन्दलताजी के साथ श्रीराधारानी जी से मिलने चल पड़े।
जब वे सुललित मन्थर गति से चल रहे थे, तब श्रीचरण युगल में पहने हुए मणि नूपुर मधुर झंकार कर रहे थे। ऐसी रूप लावण्यवती नारी को मार्ग में जिन गोपियों ने देखा, वो चमत्कृत हो ठगी सी खड़ी रह गईं।
श्रीराधा साखियों के संग बैठी थी, दूर से ही उन्हें राधारानी ने आते देखा। ऐसा रूप लावण्य देखकर वो विस्मित हो गईं।
श्रीराधा बोलीं- कहो कुंदलते! आज यहां इस समय किस कारण आना हुआ और यह नवयौवना कौन है तुम्हारे संग ?
कुंदलताजी बोलीं-राधे! ये मेरी सखी है। ये मथुरा से तुमसे मिलने आई है। इसने तुम्हारा बड़ा नाम सुना है, तुम्हारा यश तो त्रिभुवन में फैला है। तुम नृत्य संगीत कला में गन्धर्वो की भी गुरुरूपा हो। मेरी यह सखी गीत वाद्य नृत्य इन तीन विद्याओं में परम प्रवीण है, देव मनुष्यादि में कोई नही जो इसके समान नृत्य कर सके। इसका नृत्य पशु, पक्षी, मनुष्य, देवता आदि का भी चित्त हरण कर लेता है, इसके नृत्य कला गुरु श्रीसंगीतदामोदर जी हैं !
इतनी प्रशंसा सुन श्रीराधा भी कौतुकी हो उठीं। सखियाँ भी सब उन्हें घेरकर खड़ीं हो गईं।
श्रीराधा बोलीं- ऐसा है तो सखी क्या तुम हमे अपना नृत्य दिखाओगी ? मेरी सखियाँ वाद्य संभालेंगी !
श्याम सुंदर को और क्या चाहिए था, वे सहर्ष तैयार हो गए।
सखियों के मधुर वाद्य और संगीत ने दिशाओं को झंकृत कर दिया। अब नटवर ने नृत्य शुरू किया, नर्तकी वेश में अद्भुत ताल,लय के साथ नृत्य करने लगे। भाव भंगिमा, अंगो के संचालन में अद्भुत लास्य है, नृत्य की गति कभी मद्धिम कभी द्रुत हो रही थी, श्रीराधा सह सखियाँ भी चकित हो गईं, ऐसा नृत्य न कभी देखा और ना ही सुना।
जब श्याम सुंदर श्रीराधा को रिझाने नृत्य करें तो उससे सुंदर नृत्य क्या कुछ हो सकता है ? वन के मृग, पशु, पक्षी, मोर भी स्तम्भित हो नृत्य देख रहे थे, और ऐसा अद्भुत नृत्य देख श्रीराधा का चित्त भी द्रवित हो गया।
श्रीराधा भी खुद को रोक नही पाई। अद्भुत सम्मोहन श्याम सुंदर के नृत्य में, श्रीराधा भी उनके साथ नाच उठीं। क्या अप्रतिम सौंदर्य। नील और सुवर्ण वर्ण दो सौंदर्य मूर्ति कैसे ताल मिलाकर नाच रहे। सखियाँ देखकर परमानंद में मग्न हुई जा रही हैं।
नृत्य का विश्राम हुआ, अति प्रसन्न श्रीराधा बोलीं- हे सखी! तुमने मुझे अति आनंद प्रदान किया। मैं तुम्हे कुछ उपहार देना चाहती हूँ। बोलो सखी ! तुम्हे क्या चाहिये ?
श्री श्याम सुंदर इसी की तो प्रतीक्षा कर रहे थे, ऐसा उद्दाम सुललित नृत्य इसी एक पल के लिए ही तो था।
श्याम सुंदर बोले सखी! मेरी केवल एक इच्छा है। तुम मुझे अपना आलिंगन रूप उपहार दो !
श्रीराधारानी ने प्रसन्न हो उन्हें गले लगा लिया। गले लगते ही अपने चित्त में होने वाले परिवर्तन से वो अपने प्रियतम को पहचान गईं।
श्रीराधा मुस्कुरा दीं। सखियाँ भी मुस्कुराने लगीं, श्रीराधा का दुर्जय मान जाता रहा।
उन्होंने पुन श्याम सुंदर का आलिंगन कर लिया।
श्याम सुंदर ने कृतज्ञता पूर्वक मुस्कुरा कर कुन्दलता जी की ओर देखा कुंदलते! आज भी तुमने बचा लिया !
श्याम सुंदर श्रीराधा के मान भंजन के लिए ना जाने कितने रूप धरते हैं।
अद्भुत नृत्यांगना रूपधारी श्याम सुंदर की जय हो।
जय जय श्री राधे राधे