मै भगवान को भजता हुं मैं भगवान की पुजा करता हूँ मे मै तत्व का समावेश है मै शरीर हूँ। जिस दिन मै मर जाता है तब सबकुछ करते हुए भी हम कुछ नहीं करते हैं। क्योंकि अन्दर से मै और मेरापन मिट गया। सबकुछ आत्म तत्व दिखाई देने लगता है। सम्बन्ध के बनने और टुटने से प्राणी ऊपर उठ जाता है। प्राणी क्षण क्षण में सम्बन्ध स्थापित करता है क्षण भर मे जब सम्बन्ध बिखरता है तब अन्दर से टुटा हुआ महसूस करता है। लेकिन जब सब सम हो गया तब एक रूप हो जाता है आत्म चिन्तन मे ऐसा नहीं है क्योंकि आत्मचिंतन में प्राणी स्वयं भी नहीं है शरीर से ऊपर उठ जाता है। उसे यह भी महसूस नहीं होता है कि तु भगवान को भज रहा है अपने अन्तर्मन के सब भाव को अपने अन्दर समेट लेता है प्राणी कहता है कि हे नाथ अब ये आत्मा तुम मे समर्पित हो जाना चाहती है।
आत्म चिन्तन अन्तर्मन से करते रहेंगे तभी अन्तर्मन शान्त होगा ।धीरे धीरे आत्म चिन्तन करते रहे ओर देखते रहे मै कितना शांत हूँ
भक्त भक्ति करता है भक्ती करते हुए उसे बस इसी बात का ध्यान रखना होता है कि भक्त की भक्ति का स्वरूप अन्तर्मन का हो अन्तर्मन की भक्ति को सम्भालने के लिए भक्त कुछ समय के लिए मौन होता है जिस से प्रभु प्राण नाथ प्यारे के साथ सम्बन्ध गहरा हो सके। बस भगवान के भाव में खो जाना।आत्म चिन्तन में भक्त अपने आप को भुल जाता है उसे ऐसा अह्सास होने लगता है जैसे सबकुछ परम पिता परमात्मा ही है जय श्री राम अनीता गर्ग
I worship God, I worship God, I am a part of the element, I am the body. The day I die, we do nothing even after doing everything. Because from inside I and my self have vanished. Everything seems to be self element. With the formation and breaking of the relationship, the creature rises up. A creature establishes a relationship in a moment, when the relationship breaks up in a moment, then it feels broken from inside. But when everything is equal, then it becomes one form. He does not even realize that you are worshiping God, he absorbs all the feelings of his conscience in himself, the creature says that now this soul wants to be surrendered to you.
If you continue to do self-contemplation, then your inner mind will be peaceful. Slowly keep on contemplating your self and keep seeing how calm I am. The devotee does devotion, while doing devotion, he just has to keep in mind that the nature of the devotee’s devotion is of the inner soul, to handle the devotion of the inner soul, the devotee is silent for some time, due to which the relationship with Prabhu Pran Nath Pyare deepens. May be Just getting lost in the spirit of God. In self-contemplation, the devotee forgets himself, he starts to feel as if everything is the Supreme Father, the Supreme Soul. Jai Shri Ram Anita Garg