एक भक्त की भगवान से कैसे जुड़ता है। यह भक्त के जीवन की कथा है। भक्त के घर की दिवार पर हनुमान जी का रूप विराजमान हैं।
हनुमान जी के हृदय में राम जी बैठे हैं। भक्त भगवान राम को निहारता है भक्त बाबा हनुमान जी को प्रणाम करता है
हनुमान जी से प्रार्थना करता है कि हे हनुमान जी महाराज जैसे आप के दिल में भगवान राम विराजमान हैं। क्या कभी इस दिल में भी भगवान आएंगे भक्त दो दो घंटे बाबा हनुमान जी को और ह्दय में बैठें भगवान राम को निहारता रहता है बार बार मौन प्रणाम करता जैसे भी टुटे फुटे शब्दों से जो मन में आते हैं उन्ही से वन्दन करता है।
हनुमान जी का संजीवनी बुटी लेकर आते हुए कांधे पर पर्वत धारण का रूप ह्दय मे भगवान राम को निहारते हुए वन्दन करता है। एक दिन मन्दिर जाता है वहां पर मन्दिर में रुप के तीन साइड दर्पण में भगवान राम के अनेक रूप भक्त के हृदय को छु जाते हैं।
भक्त भाव को अपने अन्दर समेट कर ले आती हू। मन्दिर से आकर सैल्फ पर तीन दर्पण लगाकर भगवान के अनेकों रूप को घंटों निहारती रहती भगवान राम को बाबा हनुमान जी को बार बार प्रणाम करती दिल का एक अरमान कैसे भगवान हदय में आ जाए हनुमान चालीसा पढती।
घर के कार्य करते हुए हनुमान चालीसा का पाठ करते हुए एक एक पंक्ति का अर्थ सहीत व्याख्या कर लेती। भगवान राम को निहारते निहारते घर की सफाई करती तब दिल कहता यह अयोध्या धाम है मै भगवान राम के महल की सफाई कर रही हूँ। पोचा लगाते लगाते राम लिख देती हृदय में राम को बिठा लेती।
कमल का पुष्प बनाती पुष्प में राम सजाती धरती पर पुष्प बना कर धरती माता पर राम लिख देती। प्रत्येक कार्य में राम की खोज कर लेती हाथ पर राम लिखती। बच्चों को पढाती notebook पर राम आज हाथ पर मेहन्दी से कमल पुष्प बनाने पर मन ने कहा पुष्प अधुरा है
पुष्प को राम से सजा ले दिल ने कहा भगवान राम हृदय में विराजमान कर ले नैनो में राम, दिल की धड़कन में राम, सांस सांस में राम की झंकार हो, कान में राम, प्राण मे राम, ध्वनि में राम, राम प्रेम हो, राम पुजा हो राम प्रार्थना हो, राम अराध्य और अराधना हो,राम शान्ति हैं,
राम प्रेम हो, राम की पुजा राम की प्रार्थना हो, राम अराध्य और अराधना हो, राम आत्मा राम है। राम निर्गुण निराकार हैं राम सत्य है।राम ध्यान में है राम। भक्त भगवान राम को भजते हुए भगवान राम को दिल की आंखों से निहारता है
जब तक मैं और तु में प्राणी फसा हुआ है तब तक ऐसे ही चलता है भगवान हमे घङते है तब बाहर से चोट करते हैं अन्दर से खरे बनते हैं बाहर की चोट का आत्म तत्व पर कोई प्रभाव नहीं पङता है
भगवान कहते हैं तु थोड़ा सा सिमरण करके सोचता है मै तो बहुत कुछ करता हूँ मै तुझे बाहर की चोट से दिखाता हूं कि अभी मार्ग कच्चा हैं। तु और मै मे न फस कर आत्म तत्व का चिन्तन कर आत्म तत्व के चिन्तन के बाद तेरी पुकार में गहराई होगी
तब तु भगवान को भजते हुए भी भगवान को न भजने वाला होगा तु चलते हुए सोते भोजन करते हुए भी तु कोई किरया न करने वाला होगा क्योंकि जिस मै के साथ तु जुङा हुआ था वह मै की मृत्यु हो गई तब दृष्टि से जगत निकल गया। जय जय श्री राम अनीता गर्ग