ये सब लिला तभी सम्भव है। जब भक्त भगवान् को ध्याते हुए ध्यान की अवस्था में आ जाता है।समाधि में भगवान भक्त से खेलने आते हैं। भक्त का शरीर उस समय गोण है। भक्त भगवान् की लिला का कुछ अंश ही शब्द रुप दे पाता है। भक्त भगवान् की याद में लिखने बैठता है। भक्त परम पिता परमात्मा के प्रेम में समा जाता है। भक्त के दिल में प्रेम है तो साथ में कर्तव्य निष्ठा सच्चाई और त्याग भी है।हे परमात्मा ये आत्मा तुम्हारे चरणों की दासी है इसको आप कब स्वीकार करोगे।
भक्त के प्रत्येक कार्य में समय सीमा अपना पन लगन और सत्यता भी निहीत हैं। भगवान् दिल की गहराई और पवित्रता पर आते हैं। भक्त के दिल में परमात्मा आनंद भर जाते है। भक्त का भगवान् मन मंदिर में बैठा है। हर क्षण भक्त भगवान् को निहारता भगवान् भक्त को निहारते हैं।
भक्त कहता है कि हे परमात्मा मेरा काम तुम्हें पुकारना है। इस संसार के सब सम्बन्ध तुमने बनाए हैं तुम ही जानो। मै तो तुम्हें जानना चाहता हूं। मैं तुम्हें जान जाऊगा जगत के सब व्यवहार अपने आप नीभ जाएगे। वैसे भी परमात्मा जब भी विपती आई है। मैंने जीवन में तुम्हें ही पढा हैं। मैंने तुमसे हर बार यही कहा। तु जानता है मै तुम्हे सुबह शाम हर क्षण क्यो ध्या रही हुं। हे परमात्मा तुम्हे दिल की बात बताने की जरूरत नहीं तुम दिल में ही बैठे हो दिल का हाल तुम से अच्छा कौन जान सकता है।हे परमात्मा जी मैने तुमसे कभी कुछ मांगा भी नहीं मांगने की जरूरत ही नहीं रही। हे परमात्मा जी तुमने मुझे बहुत कुछ दिया है ह
इस दिल में तुमने प्रेम जगा दिया। ये प्रभु भगवान नाथ आपकी मेहरबानी। त्याग और समर्पण का नाम प्रेम है ।प्रेम देना जानता है। मेरे लेख में बाहर का कुछ भी नहीं है ये सब मेरे भगवान् ने मुझे जैसा दिखाया है वैसे ही मैंने कुछ शब्द अशं रूप दिया है। अनीता गर्ग