मनुष्य जीवन का सार भगवद्भक्ति है, और भक्ति का मूल आधार सत्संग है ।सत्संग सर्वोच्च चेतना प्रदान करता है ।
सत्संग जीवन को देखने का सही दृष्टिकोण प्रदान करता है ।सत्संग ही मानव जीवन की सिद्धि व
सर्वोत्तम गति प्रदान करता है ।
सत्संग का अभाव मतलब मोह और भ्रम का विस्तार है ।
सत्संग स्थान, समय और जीवन के अन्य कार्यों के बाद करने वाला विषय नहीं है, अपितु मूलभूत प्राधान्यता है।सत्संग से
बढकर जीवन का आधार कुछ नही है।”
सत्संग का वास्तविक अर्थ हुआ भक्तों कि संगति में कृष्ण के नाम, रूप, गुण, लीलाओं का श्रवण, किर्तन, स्मरणादि करना। मनुष्य के अंतिम समय साथ जाने वाली वस्तु केवल सत्संग ही है,सत्संग के ही कारण मनुष्य मोह,लोभ,माया के प्रभाव से बचा रहता है।और उसमे सदैव सतगुण का ही प्रभाव बना रहता है। स्वयं से प्रश्न करें कितने घंटे और जीवन के कुल कितने दिन हमारे सत्संग में सार्थक हो रहे है ??? पढ़िए।
एक व्यक्ति एक गांव में गया। वहां की श्मशान भूमि से जब वह गुजरा तो उसने एक विचित्र बात देखी। वहां पत्थर की पट्टियों पर मृतक की आयु लिखी थी। किसी पर छह महीने, तो किसी पर दस वर्ष तो किसी पर इक्कीस वर्ष लिखा था। वह सोचने लगाकि इस गांव के लोग जरूर अल्पायु होते हैं। सबकी अकाल मृत्यु ही होती है।
जब वह गांव के भीतर गया तो लोगों ने उसका खूब स्वागत सत्कार किया। वह वहीं रहने लगा लेकिन उसके भीतर यह डर भी समा गया कि यहां रहने पर उसकी भी जल्दी ही मौत हो जाएगी क्योंकि यहां के लोग कम जीते हैं। इसलिए उसने वहां से जाने का फैसला किया।
जब गांव वालों को पता चला तो वे दुखी हुए। उन्हें लगा कि जरूर उन लोगों से कोई गलती हो गई है। जब उस व्यक्ति ने उन्हें अपने मन की बात बताई तो सब हंस पड़े। उन्होंने कहा- लगता है आपने केवल किताबी ज्ञान पढ़ा है, व्यावहारिक ज्ञान नहीं हासिल किया । आप देख नहीं रहे कि हमारे बीच ही साठ से अस्सी साल तक के लोग हैं, फिर आपने कैसे सोच लिया कि यहां लोग जल्दी मर जाते हैं। तब उस व्यक्ति ने श्मशान भूमि की पट्टियों के बारे में बताया।
इस पर एक गांव वासी ने कहा, “हमारे गांव में एक नियम है। जब कोई व्यक्ति सोने के लिए जाता है तो सबसे पहले वह हिसाब लगाता है कि उसने कितना समय सत्संग में बिताया ।
उसे वह प्रतिदिन एक डायरी में लिख लेता है। गांव में किसी भी मरने वाले की वह डायरी निकाली जाती है फिर उसके जीवन के उन सभी घंटों को जोड़ा जाता है। उन घंटों के आधार पर ही उसकी उम्र निकाली जाती है और उसे पट्टे पर अंकित किया जाता है।
व्यक्ति का जितना समय सत्संग में बीता, वही तो उसका सार्थक समय है। वही उसकी उम्र है !!
यह भाव पढ कर छोड़ने वाला नहीं है यह प्रतिदिन याद करने का भाव है एक दिन मेरी मृत्यु होगी तब मेरे जीवन का भी ऐसे ही हिसाब लगाया जाएगा मैंने सच्चे तोर पर कितना परम सत्य स्वरूप परमात्मा का चिन्तन किया है। मुझे जीतेजी यह ध्यान कर लेना चाहिए कि मै अन्तर्मन से परमात्मा को भजता हुं या मेरा जपन जीव्हा का जपन है। मेरे जपन में घर संसार का सुख छुपा हुआ है मेरे भजन कीर्तन में मान बढ़ाई है या मेरी अन्तर हृदय की पुकार में समर्पण भाव है
जय जय श्री राधे कृष्णा जी।श्री हरि आपका कल्याण करें।जय श्री राम अनीता गर्ग
The essence of human life is devotion to the Lord, and the basic basis of devotion is satsang. Satsang bestows the highest consciousness. Satsang gives the right perspective to look at life. Provides best speed. Absence of satsang means extension of attachment and illusion. Satsang is not a matter to be followed by place, time and other functions of life, but is a fundamental priority. From satsang Nothing is more important than life.” The real meaning of satsang is hearing, chanting, remembering the names, forms, qualities, pastimes of Krishna in the company of devotees. The only thing that accompanies a human being at the last moment is Satsang, due to Satsang a person is saved from the effects of attachment, greed and Maya. Ask yourself how many hours and how many days of life are being meaningful in our satsang??? Read it.
A man went to a village. When he passed through the cremation ground there, he saw a strange thing. There the age of the deceased was written on the stone plates. Some were written six months, some ten years and some twenty one years. He started thinking that the people of this village must be short lived. Everyone has a premature death. When he went inside the village, people gave him a warm welcome. He started living there, but there was a fear in him that he too would die soon after staying here because the people here live less. So he decided to leave from there. When the villagers came to know about it, they were sad. They felt that they must have made a mistake. When that person told them what was on his mind, everyone laughed. He said- It seems that you have only read bookish knowledge, not acquired practical knowledge. You don’t see that there are people in our midst of sixty to eighty years, then how did you think that people die early here. Then the man told about the strips of cremation ground. To this a villager said, “There is a rule in our village. When a person goes to sleep, he first calculates how much time he spent in satsang. He writes it down in a diary every day. The diary of any person who died in the village is taken out and then all those hours of his life are added. On the basis of those hours his age is worked out and it is recorded on the lease. The amount of time a person spends in satsang is his meaningful time. That’s his age!!
Reading this feeling is not going to leave it, it is the feeling of remembering every day that one day I will die, then my life will also be calculated in the same way. I should meditate while I am alive whether I am worshiping God from within or my chanting is the chanting of the soul. In my chanting, the happiness of the world is hidden in my hymn, or is there a feeling of surrender in the call of my inner heart. Jai Jai Shri Radhe Krishna Ji. May Shri Hari bless you. Jai Shri Ram Anita Garg