भगवान नाम की ध्वनि के उजागर करने के लिए हमे प्रातः काल जैसे ही नींद से जागे। ध्यान अन्तर्मन की और ले जाओ। भगवान ने हमें दो कान दिए हैं एक कान हमारा अन्तर्मन की ध्वनि पर टिका दे। दुसरे कान से आप जगत की सुने। परम पिता परमात्मा ने हमे दो मन दिए हैं । हमे भगवान ने नैन दिए हैं कान अन्तर्मन का सुनने लगते तब नयन बाहरी संसार को देखना नहीं चाहते हैं।दृष्टि आत्म तत्व के चिन्तन पर टिक जाती है। नैन अन्दर की ओर होंगे तब संसार की रंगीनता से आकर्षित नहीं होओगे। में सम भाव होगा।
हम भगवान को मन्दिर और मुर्ति में खोजना छोड़ देंगे। बस सम भाव से नमन करेंगे। मन और अन्तर्मन एक मन को नाम ध्वनि में स्थित कर दे।
अन्तर्मन की स्थिरता में गहराई हैं। अन्तर्मन की स्थिरता की तरफ दृष्टि टिका कर रखे। बाहर का कितना ही प्राप्त करो पुरण नहीं हो सकते हैं। तृप्ति और त्याग अन्तर्मन से प्रकट होगा। बाहर से भजते हुए हम प्राप्त करना चाहते हैं। अन्तर्मन का अध्यात्म कहता है किसको प्राप्त करोगे।प्रभु अन्दर बैठे है
अन्दर की नाम ध्वनि प्रात काल स्थिर हो जाती है। नाम ध्वनि मे भगवान नाम बोल कर नहीं लेते हैं यह sound अन्तर्मन मे अपने आप बजती है। तब दिन भर बजती रहती है। भक्त के अन्दर सम भाव का समावेश समाने लगता है। अन्तर्मन की नाम ध्वनि जितनी दृढ होती जाएगी। उतनी ही भक्त के अन्दर का संसार शान्त होता जाएगा। कोई कुछ भी कहे मौन रहोगे।नाम ध्वनि की गहराई से आत्म विश्वास strong होता है।
यह स्थिर आनंद है।आनन्द हैं इसे ग्रहण कोन करे इन्द्रिया आनंद ग्रहण करती है। यहां भक्त धीरे-धीरे शरीर रूप से अलग होने लगता है तब समरूप होने लगता है। जय श्री राम अनीता गर्ग