अब ये दिल आनन्द प्राप्त करना नहीं चाहता है एक दिन आनंद का त्याग करना ही पड़ता है खोज कर रही हूँ आत्मा का परमात्मा से कैसे मिलन होता है उसके लिए मोन जरूरी है। अन्तर्मन को पढना कैसे विचार बन रहे हैं।
प्रभु प्राण नाथ की तङफ में आनन्द से अधिक मजा है। हमे एक समय अपने अन्दर को पढना होता है आनंद आत्मा नन्द नही है। आनन्द कुछ समय प्रकट होता है। हम सम में स्थित हो जाए। बाहर जो आनंद दिखाई देता है वह पुरण प्रेम नही है। कई बार साधना में हम कुछ भी प्राप्त करना नहीं चाहते है प्राप्त करने की चाहत मार्ग में रूकावट हैं। अधिकतर क्या होता है कि एक बार नाम लेते ही आनन्द की लहर आने लगती है हम समझते हैं मै बहुत खुश हूं आनंदीत हूं लेकिन इसमें साधना आगे नहीं बढ़ती है।ठाकुर और भक्तो का ये झगड़ा पुराना है नहीं चाहिए तेरी माया रे रिझु तो तुझसे रिझु रे ।
मै थोङे दिन ध्यान लगाना चाहती हूँ ध्यान बैठकर घण्टे दो घंटे लगाया जाता है लेकिन मेरा ध्यान करने मे ये विचार है कि हम कुछ समय अपने अन्तर्मन मे अधिक विचार न आने दे।अपने अन्तर्मन के विचार पढु और मौन रहु क्योंकि मन पवित्र नहीं है। पवित्र मन दिल में दस्तक देता है। दिल की पुकार प्रभु प्राण नाथ तक पहुंचती है। बात हो तो प्रभु प्राण प्यारे से हो भुल जाऊं मैं भी हूं। हर समय चिन्तन और मनन हो मन्दिर जाऊ तब दिल से आवाज आऐ कहा जा रही है। धङकन कहे भगवान से साक्षात्कार करने जा रही हूँ। इन भावो में खो जाऊं । जय श्री राम
अनीता गर्ग