आत्मचिंतन करते हुए अपना निरिक्षण करते रहे

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आत्म चिन्तन क्या है भगवान के एक भाव का चिन्तन करना।एक शब्द एक पंकती का अध्ययन करना उठते बैठते हुए उस पंक्ति को स्मरण करते रहना अन्य सबकुछ परम पिता परमात्मा पर छोड़ देना चाहिए। भक्त भगवान को नमन करता है। भगवान के एक भाव को वर्षों तक करता रहता है। भक्त अपना दिल परमात्मा पर टिका देता है। परमात्मा को प्रणाम है, प्रभु प्राण नाथ दीनानाथ दीनबंधु ।भगवान राम, आत्मा राम, आत्मा, अजर और अमर हैं ।आत्मा निर्विकार, आत्मा प्रकाश रुप हैं गुरुदेव को प्रणाम है ।सांवरे, राधे कृष्ण तुम अन्तर्मन मे विराजमान हो फिर दिल पुछता है खाना किस के लिए कोन बना रहा है दिल से आवाज आती भगवान के लिए बना रहे है। कोन बना रहा है भगवान बना रहे हैं। भगवान भोग लगा रहे हैं भगवान भोग कर रहे हैं। जो खङा है उसके रोम रोम से नाम ध्वनि निकल रही है। तेज का स्वरूप है। मै था तब तक भक्त कहता है कि मैं भगवान को भोजन बनाते हुए भजता हूं। मै की मै मर जाती है तब सब कुछ प्रभु भगवान नाथ है। भक्त हजार बार अपने अन्तर्मन मे झांक कर देखता है। भगवान के भाव मे कितनी गहराई हैं। नाम ध्वनि बज रही है। मै भगवान मे कितनी डुबकी लगाता हूं। ऐसे भगवान को भजते हुए भक्त का कोई नियम नहीं है।भक्त ने भगवान राम पर दिल को टिका दिया है। भक्त घङी घङी अन्दर झांकता है कि तेरा अन्तर्मन प्रभु में कितना लीन है। कि मैं भगवान के भाव मे खो जाऊं ।भगवान की करते हुए भक्त अपना निरिक्षण करता रहता है कि मुझमें वास्तव में पवित्रता हैं या फिर मै ऐसे ही लिख रही हूं। पवित्रता किसी अन्य को दिखाने के लिए नहीं है यह अन्तर्मन की परिक्षा है विचार की पवित्रता सहनशीलता के बैगर भगवान का चिन्तन और मन्न नहीं किया जा सकता है। जितने हम अपने आप में स्पष्टता भरेंगे उतने ही हम भगवान के भाव मे होगे। क्योंकि उधेङबुन से ऊपर उठना भक्ति है कर्तव्य कर्म की शुद्धता भक्ती हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग



What is self-contemplation, to contemplate one feeling of God. Studying one word, one line, while sitting up and sitting, remembering that line, everything else should be left to the Supreme Father, the Supreme Soul. The devotee bows to the Lord. Keeps doing one gesture of God for years. The devotee places his heart on the divine. Salutations to God, Lord Pran Nath Dinanath Deenbandhu. Lord Ram, soul Ram, soul, ajar and immortal. Soul is formless, soul is the form of light. Salutations to Gurudev. Who is making the voice for whom, the voice coming from the heart is being made for God. Who is making what God is making. God is enjoying God is enjoying. The sound of name is coming out of the rome of the one who is standing. The form of fast. I was there till then the devotee says that I worship God while preparing food. If I die then everything is Lord Bhagwan Nath. The devotee looks into his conscience a thousand times and sees it. How deep is the feeling of God. The name sound is playing. How many dips do I take in God? There is no rule of the devotee while worshiping such a God. The devotee has fixed his heart on Lord Rama. The devotee looks inside the clock to see how much your conscience is absorbed in the Lord. That I should get lost in the spirit of God. While doing God, the devotee keeps on observing whether I am really pure or whether I am writing like this. Purity is not to be shown to others, it is a test of the inner being, purity of thought, without tolerance God cannot be contemplated and contemplated. The more we fill ourselves with clarity, the more we will be in the spirit of God. Because to rise above unhappiness is devotion, duty, purity of action is devotion. Jai Shri Ram Anita Garg

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