आत्मा की आवाज सुनना और उसका अनुसरण करना ही अध्यात्म है ।
जीवन में भक्ति एवं दिव्य कर्मों के विषय में सब कुछ जानने का प्रयत्न ही अध्यात्म है ।
ब्रह्म ही यथार्थ वस्तु है जो सर्वत्र व्याप्त निर्गुण निरामय निर्विशेष और उपाधि रहित है।ब्रह्म निर्विकार -सर्वव्यापक सत्ता है, उसका विधान सर्वथा निर्दोष कल्याणकारी एवं सतत् पारमार्थिक है । इस सत्य को अनुभूत करना ही अध्यात्म है ।
जो भूत,भविष्य में व्यापक है, जो दिव्य लोक का भी अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म (परमेश्वर) को अपने भीतर अनुभूत करना ही अध्यात्म है ।
Spirituality is listening and following the voice of the soul. Spirituality is the effort to know everything about devotion and divine deeds in life. Brahm is the real thing which is omnipresent, impersonal, impersonal and without title. Brahma is nirvikar – omnipresent being, his law is absolutely flawless, beneficent and eternally transcendent. Spirituality is the realization of this truth. Spirituality is to realize that Brahma (God) within oneself, which is pervasive in the past, future, who is also the presiding officer of the divine world.