परमात्मा ह्दय के भाव और प्रेम में छुपा हुआ है। आज हम पुजा भी करते हैं तो दिखा कर करते हैं। परम प्रकाश रुप के सामने दिखावा नहीं चलता। उसे तो प्रेम से सिंचा जाता है। आज सभी पढने की दोङ में लगे हैं। अध्ययन और चिंतन का मार्ग गोण होता जा रहा है। हम कुछ स्तुति पढते एक दो पाठ करते कुछ भजन गाते थे। भगवान् के आगे हाथ जोड़ कर शिश झुकाते थे। और दिन भर काम करते जाते ओर इन्हीं सबको मनही मन में अध्यन चिन्तन और मन्न करते रहते थे। हमे ज्ञात ही नहीं कि हमारे अन्दर भाव की दर्ढीता इतनी गहरी है। कि हम कब भाव विभोर हो दिल में भगवान् को बिठा बैठे। कब वन्दन करते और कब नमन कर देते। यह भारतीय संस्कृति थी। घर पर विपत्ति आतीं और टल जाती। घर के बङे भगवान् की प्रार्थना सुबह से शाम तक करते और सब कुछ ठीक हो जाता था।घर में बङे आने वाली परिस्थिति से पहले ही अवगत करा देते। यह उनका अध्यात्मवाद था
God is hidden in the feeling and love of the heart. Even when we do puja today, we do it by showing it. There is no pretense in front of the Supreme Light. He is watered with love. Today everyone is busy in the task of studying. The path of study and contemplation is becoming more and more common. We used to read some praises and sing some hymns while doing a couple of lessons. They used to bow their heads with folded hands in front of the Lord. And while working throughout the day, he used to study, contemplate and meditate on all these in his mind. We do not even know that the intensity of emotion is so deep inside us. That when we get engrossed, let God sit in our heart. When do you bow down and when do you bow down? This was Indian culture. The calamity would come at home and be averted. The elders of the house would have prayed to God from morning till evening and everything would have been fine. it was his spiritualism