प्रत्येक साधक की कुछ दिन ध्यान साधना करने के बाद यह जानने की इच्छा होती हैं
की मेरी कुछ आध्यात्मिक प्रगति हुई या नहीं और आध्यात्मिक प्रगति को नापने का मापदंड है आपका अपना चित्त,आपका अपना चित्त कितना शुद्ध और पवित्र हुआ है वही आपकी आध्यात्मिक स्थिति को दर्शाता हैं ।अब आपको भी अपनी आध्यात्मिक प्रगति जानने की इच्छा हैं तो आप भी इन निम्नलिखित चित्त के स्तर से अपनी स्वयम की आध्यात्मिक स्थिति को जान सकते हैं ,बस अपने चित्त का प्रामाणिकता के साथ ही अवलोकन करें यह अत्यंत आवश्यक हैं ।
1 ) दूषित चित्त –: चित्त का सबसे निचला स्तर हैं दूषित चित्त इस स्तर पर साधक सभी के दोष ही खोजते रहता हैं दूसरा सदैव सबका बुरा कैसे किया जाए सदैव इसी का विचार करते रहता है दूसरों की प्रगति से सदैव ईर्ष्या करते रहता हैं नित्य नए-नए उपाय खोजते रहता हैं की किस उपाय से हम दुसरे को नुकसान पहुँचा सकते हैं सदैव नकारात्मक बातों से नकारात्मक घटनाओं से नकारात्मक व्यक्तिओं से यह चित्त सदैव भरा ही रहता हैं
2 ) भूतकाल में खोया चित्त –:
एक चित्त एसा होता हैं
वः सदैव भूतकाल में ही खोया हुआ होता हैं | वह सदैव भूतकाल के व्यक्ति और भूतकाल की घटनाओं में ही लिप्त रहता हैं जो भूतकाल की घटनाओं में रहने का इतना आधी हो जाता हैं की उसे भूतकाल में रहने में आनंद का अनुभव होता हैं
3 नकारात्मक चित्त–: इस प्रकार का चित्त सदैव बुरी संभावनाओं से ही भरा रहता हैं सदैव कुछ-न कुछ बुरा ही होगा यह वह चित्त चित्तवाला मनुष्य सोचते रहता हैं यह अति भूतकाल में रहने के कारण होता हैं क्योंकि अति भूतकाल में रहने से वर्त्तमान काल खराब हो जाता हैं
4 ) सामान्य चित्त:
यह चित्त एक सामान्य प्रकृत्ति का होता हैं इस चित्त में अच्छे बुरे दोनों ही प्रकार के विचार आते हैं यह जब अच्छी संगत में होता हैं तो इसे अच्छे विचार आते हैं और जब यह बुरी संगत में रहता हैं तब उसे बुरे विचार आते हैं यानी इस चित्त के अपने कोई विचार नहीं होते जैसी अन्य चित्त की संगत मिलती हैं वैसे ही उसे विचार आते हैं वास्तव में वैचारिक प्रदुषण के कारण नकारात्मक विचारों के प्रभाव में ही यह ‘सामान्य चित्त’ आता हैं
5 ) निर्विचार चित्त :
साधक जब कुछ साल तक ध्यान साधना करता हैं तब यह निर्विचार चित्त की स्थिति साधक को प्राप्त होती है यानी उसे अच्छे भी विचार नहीं आते और बुरे भी विचार नहीं आते उसे कोई भी विचार ही नहीं आते वर्त्तमान की किसी परिस्थितिवश अगर चित्त कहीं गया तो भी वह क्षणिकभर ही होता हैं जिस प्रकार से बरसात के दिनों में एक पानी का बबुला एक क्षण ही रहता हैं बाद में फुट जाता हैं वैसे ही इनका चित्त कहीं भी गया तो एक क्षण के लिए जाता हैं बाद में फिर अपने स्थान पर आ जाता हैं यह आध्यात्मिक स्थिति की प्रथम पादान हैं होती हैं क्योकि फिर कुछ साल तक अगर इसी स्थिति में रहता हैं तो चित्त का सशक्तिकरण होना प्रारंभ हो जाता हैं और साधक एक सशक्त चित्त का धनि हो जाता हैं
6 ) दुर्भावनारहित चित्त :
चित्त के सशक्तिकरण के साथ-साथ चित्त में निर्मलता आ जाती हैं और बाद में चित्त इतना निर्मल और पवित्र हो जाता हैं कि चित्त में किसी के भी प्रति बुरा भाव ही नहीं आता हैं चाहे सामनेवाला का व्यवहार उसके प्रति कैसा भी हो यह चित्त की एक अच्छी दशा होती हैं
7 ) सद्भावना भरा चित्त :
ऐसा चित्त बहुत ही कम लोगों को प्राप्त होता हैं इनके चित्त में सदैव विश्व के सभी प्राणिमात्र के लिए सदैव सद्भावना ही भरी रहती हैं ऐसे चित्तवाले मनुष्य संत प्रकृत्ति के होते हैं वे सदैव सभी के लिए अच्छा भला ही सोचते हैं ये सदैव अपनी ही मस्ती में मस्त रहते हैं इनका चित्त कहीं भी जाता ही नहीं हैं ये साधना में लीन रहते हैं
8 ) शून्य चित्त-:
यह चित्त की सर्वोत्तम दशा हैं इस स्थिति में चित्त को एक शून्यता प्राप्त हो जाती हैं यह चित्त एक पाइप जैसा होता हैं जिसमें साक्षात परमात्मा का चैतन्य सदैव बहते ही रहता हैं परमात्मा की करूणा की शक्ति सदैव ऐसे शून्य चित्त से बहते ही रहती हैं यह चित्त कल्याणकारी होता हैं यह चित्त किसी भी कारण से किसी के भी ऊपर आ जाए तो भी उसका कल्याण हो जाता हैं इसीलिए ऐसे चित्त को कल्याणकारी चित्त कहते हैं ऐसे चित्त से कल्याणकारी शक्तियाँ सदैव बहते ही रहती हैं यह चित्त जो भी संकल्प करता हैं वह पूर्ण हो जाता हैं यह सदैव सबके मंगल के ही कामनाएँ करता हैं मंगलमय प्रकाश ऐसे चित्त से सदैव निरंतर निकलते ही रहता हैं
अब आप अपना स्वयम का अवलोकनार्थ करें और जानें की आपकी आध्यात्मिक स्थिति कैसी हैं आत्मा की पवित्रता का और चित्त हा बड़ा ही निकट का संबंध होता हैं अब तो यह समझ लो की चित्तरूपी धन लेकर हम जन्मे हैं और जीवनभर हमारे आसपास सभी चित्तचोर जो चित्त को दूषित करने वाले ही रहते हैं उनके बीच रहकर भी हमें अपने चित्तरूपी धन को संभालना हैं अब कैसे सभी प्रबुध्द सूझवान और समझदार लोग है
सिध्दयोग का अभ्यास किया नही जा सकता यह अपने आप स्वचलित-स्वघटित होता है सिद्ध योग के अभ्यास का मतलब है,हमेशा, धैर्य समभाव- कृतज्ञता और आनंद के राज्य में रहना।
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Every seeker has a desire to know this after doing meditation for a few days. Whether I have made some spiritual progress or not and the measure of spiritual progress is your own mind, how pure and pure your own mind has become, that shows your spiritual condition. From these following levels of mind, one can know his own spiritual state, it is very important to just observe your mind with authenticity.
1) Corrupted mind -: The lowest level of the mind is the corrupted mind, at this level the seeker keeps searching for the faults of all; Keeps searching for new ways, by which way we can harm others, this mind is always filled with negative people, negative incidents, negative things.
2) Mind lost in the past –:
such a mind He is always lost in the past. He is always involved in the past person and the events of the past, which becomes so much of living in the events of the past that he feels pleasure in living in the past.
3 Negative mind–: This type of mind is always filled with bad possibilities, always something bad will happen, this mind-minded person keeps thinking that it is due to living in the very past, because living in the very past causes the present times go bad
4 ) General Mind:
This mind is of a normal nature, both good and bad thoughts come in this mind, when it is in good company it gets good thoughts and when it is in bad company then it gets bad thoughts i.e. this mind He does not have any thoughts of his own, as he gets the company of other minds, in the same way he gets thoughts, in fact this ‘normal mind’ comes only under the influence of negative thoughts due to ideological pollution.
5) Thoughtless mind:
When a seeker meditates for a few years, then this state of mindless mind is attained by the seeker, that is, he does not get good thoughts and bad thoughts, he does not get any thoughts, even if the mind has gone somewhere due to any current situation. It is only for a moment, just as a water bubble lasts only a moment in rainy days, later it bursts, in the same way, wherever their mind goes, it goes for a moment, later it comes back to its place. It is the first step of the spiritual condition because then if one stays in this state for a few years, then the empowerment of the mind starts and the seeker becomes rich in a strong mind.
6) A malicious mind:
With the empowerment of the mind comes purity in the mind and later the mind becomes so pure and pure that there is no bad feeling towards anyone in the mind, no matter what the behavior of the other person is towards him. have good condition
7) A heart full of goodwill:
Very few people get such a mind, their mind is always full of goodwill for all the creatures of the world They remain cool, their mind does not go anywhere, they are absorbed in spiritual practice.
8) Zero Chitta-:
This is the best state of the mind, in this state the mind attains a void, this mind is like a pipe in which the consciousness of the Supreme God is always flowing, the power of the compassion of God always flows through such an empty mind. This mind is benevolent, even if it comes on anyone for any reason, it gets its welfare, that’s why such a mind is called a welfare mind; It is known that he always wishes for everyone’s happiness, the auspicious light always keeps coming out of such a mind.
Now take your own observation and know that how is your spiritual condition. Purity of soul and mind are very closely related. Only those who pollute remain, even after living among them, we have to take care of our wealth in the form of mind, now how are all enlightened, intelligent and intelligent people Siddha Yoga cannot be practiced, it happens automatically. The practice of Siddha Yoga means, always, patience, equanimity – living in a state of gratitude and bliss.
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