हमारा पति सिर्फ परमात्मा है
जिसे स्वयं हमने भूला दिया है
विधवायें बन हम सब रह रही
जीवन अपना बर्बाद किया है
हमारे दिल में रहे जीवित सदा वो,
उसके लिए नही कभी व्रत रखा
न उसे कभी प्रेम किया,
न उसे कभी याद किया
शुभ गुणों के गहनों से हमने,
अपने अन्तःकर्ण को सजाना था
भक्ति प्रेम की सुगिन्ध से,
भीतर कमरे को सजाना था
विरह की अग्नि से अन्दर
प्रेम का दीपक जलाना था
श्रद्धा विश्वास की मेहंदी को
अपने अन्तकर्ण पर लगाना था
खुद ही बेवफाई करके हमने
पति परमात्मा को खोया है
जो परमात्मा पति को भूल गई है
वो शादीशुदा भी विधवा है
जो अपने दिल में बसा पाई उसको,
वो विधवा भी सुहागन है
Our husband is only divine that we ourselves have forgotten We are all living as widows life wasted He is always alive in our heart, never fasted for him never loved her, never missed him With ornaments of auspicious qualities, had to decorate his heart With the fragrance of devotional love, had to decorate the room inside inside the fire of separation was to light the lamp of love Shraddha Vishwas’s Mehndi had to put on his heart by infidelity ourselves lost husband god The one who has forgotten the divine husband she is also married widow The one who could settle in his heart, That widow is also sweet