बड़े भाग मानुष तनु पावा

बड़े भाग मानुष तनु पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा॥
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा।
पाइ न जेहिं परलोक सँवारा॥

सो परत्र दुख पावइ,
सिर धुनि धुनि पछिताइ।
कालहि कर्महि ईस्वरहि
मिथ्या दोस लगाइ ॥ –मानस , उत्तरकाण्ड दोहा, 43

“बड़े ही भाग्य से हमें यह मनुष्य शरीर मिला है। सब ग्रंथों ने यही कहा है कि यह शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है। अर्थात् यह शरीर देवताओं के लिए भी कठिन है। यह साधन(भक्ति आदि) का धाम और मोक्ष का द्वार है। इसे पाकर जिसने अपना परलोक न बना लिया, वह परलोक में दुःख पाता है, सिर पीट-पीटकर पछताता है तथा (अपना दोष न समझकर) काल पर, कर्म पर और ईश्वर पर मिथ्या दोष लगाता है।

मनुष्य जन्म अत्यन्त ही दुर्लभ है, मनुष्य जीवन का केवल एक ही उद्देश्य और एक ही लक्ष्य होता है, और वह है भगवान की अनन्य-भक्ति प्राप्त करना, अनन्य-भक्ति को प्राप्त करके मनुष्य सुख और दुखों से मुक्त होकर कभी न समाप्त होनेवाले आनन्द को प्राप्त हो जाता है। मनुष्य जन्म कुछ अच्छा करने के लिए मिला है। इसलिए हमें सावधान हो है चाहिए कि यह कहीं व्यर्थ न चला जाए। परमात्मा भी तभी प्रसन्न होता है, जब हम प्रयत्न-पुरुषार्थ और श्रम को एक साथ लेकर जीवन में सद्कार्य करते हैं। जीव, जगत और ब्रह्म के भेद को समझने का प्रयास करते हैं।

इस संसार में सभी सांसारिक संबंध स्वार्थ से प्रेरित होते हैं, हम सभी शक्ति , धन-सम्पदा , शारीरिक बल , पद , बुद्धि को चाहते हैं, अर्थात् हम लौकिक सुख-सुविधा चाहते हैं। जब कि हमें भगवत्प्राप्ति के साधनों की ओर उन्मुख होकर अपने परलोक को सुधारना चाहिए। फलतः हमें बाद (शरीर त्यागने के बाद) में पछताना पड़ता है।

हम जानते हैं कि संसार में हमारा कोई नहीं है, सभी किसी-न-किसी स्वार्थ सिद्धि के लिये ही हम से जुड़े हुए हैं, सभी एक दूसरे से अपना ही मतलब सिद्ध करना चाहते हैं, जीवात्मारूपी हम, संसाररूपी माया से अपना मतलब सिद्ध करना चाहते हैं और मायारूपी संसार हम से अपना मतलब सिद्ध करना चाहता है। अज्ञानतावश हम माया को ठगने में लगे रहते हैं और माया हमें ठगने में लगी रहती है, इस प्रकार दोनों ठग एक दूसरे को ठगते रहते हैं। भ्रम के कारण हम समझते हैं कि हम माया को भोग रहें है, जबकि माया जन्म-जन्मान्तर से हमारा भोग कर रही है। किन्तु हमें अपनी शक्ति को पहचान कर संसार से किसी प्रकार की अपेक्षा न रखते हुये अपनी सामर्थ्य के अनुसार ही संसार की इच्छा को पूरा करना चाहिये, इस प्रकार से कार्य करने से ही हम कर्म-बंधन से मुक्त हो सकतें हैं। सामर्थ्य से अधिक सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति करने से हम पुन: कर्म बंधन में बंध जाते हैं। हमें कर्म- बंधन से मुक्त होने के लिये ही कर्म करना चाहिए। कर्म-बंधन से मुक्त होना ही मोक्ष है। मनुष्य कर्म-बंधन से मुक्त होने पर ही जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर परम-लक्ष्य स्वरूप परमात्मा को प्राप्त कर पाता है। हम सब सुख चाहते हैं लेकिन जीवन में दुख ही पाते हैं। ऐसे में अगले जन्म में और भविष्य के जीवन में सर्वोच्च तथा चिरंतन सुख प्राप्त होना निश्‍चित नहीं है, केवल आध्यात्मिक उन्नति और ईश्‍वर से एकरूपता ही हमें निरंतर और स्थायी सुख दे सकती है इसलिये हमें आध्यात्मिक सुख की अपेक्षा करनी चाहिए और उसी के अनुरूप अपना परलोक सँवारना चाहिए।

हमारे पिछले जन्मों के बोए हुए बीज हमारा पूछा नहीं छोड़ते । आज हम जो बोएंगे, उसे ही कल काटेंगे। किए हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल अवश्य भुगतना पड़ता है। जो इस संसार में आया है, उसका जाना भी निश्चित है। यहाँ कुछ भी शाश्वत नहीं है, सब कुछ क्षणभंगुर है, परिवर्तनशील है। इसलिए इसकी अनित्यता को समझें। यह संसार भोर के टिमटिमाते हुए तारे की तरह है, देखते-देखते नष्ट हो जाता है। मानव जीवन की भी यही स्थिति है। यदि मनुष्य कालरूपी मृत्यु को समझें भगवत्प्राप्ति के साधनों में प्रवृत्त हो जाँय, तो मुझे विश्वास है कि हमारा परलोक अवश्य सुधर जायेगा। हम भगवान् की कृपा के पात्र अवश्य बन पायेंगे।

!! जय श्री राम !!
ईश्वर से है प्रार्थना, हरे चोट की पीर।
अनुकंपा हो राम की, और पवनसुत वीर।
!! जय श्री राम जी !!



Big part manush tanu pava. Sur rare sab granthanhi gava॥ By means of Mochhakar. If you don’t find the afterlife, it will be decorated.

So let’s face sorrow, Sir dhuni dhuni pachitai. Kaalahi Karmahi Ishwarhi Make false accusations. -Manas, Uttarkand Doha, 43

“It is with great fortune that we have got this human body. All the scriptures have said that this body is rare even for the gods. That is, this body is difficult even for the gods. It is the abode of means (devotion etc.) and the door to salvation. The one who has not made this his afterlife, experiences sorrow in the afterlife, beats his head in remorse and (not understanding his fault) puts false blame on time, karma and God.

Human birth is very rare, there is only one aim and one goal of human life, and that is to attain unalloyed devotion to God, by attaining unalloyed devotion man becomes free from happiness and sorrow and enjoys never-ending joy. is received. Man is born to do something good. Therefore, we should be careful that it does not go waste. God is also pleased only when we do good work in life by taking efforts and hard work together. The living beings try to understand the difference between the world and Brahma.

All worldly relations in this world are motivated by selfishness, we all want power, wealth, physical strength, position, intelligence, that is, we want worldly comforts. Whereas we should improve our afterlife by turning towards the means of attaining God. As a result, we have to repent later (after leaving the body).

We know that we have no one in this world, everyone is connected to us only to achieve some selfishness, everyone wants to prove their meaning to each other, we in the form of soul, to prove their meaning to Maya in the form of the world. We want and the illusory world wants to prove its meaning with us. Due to ignorance, we keep on deceiving Maya and Maya keeps deceiving us, thus both the dupes keep deceiving each other. Due to illusion, we think that we are suffering from Maya, whereas Maya has been suffering from us for many births. But we should recognize our power and fulfill the wishes of the world as per our capacity and not have any expectations from the world, only by working in this way we can be free from the bondage of karma. By fulfilling worldly desires beyond our capacity, we again get tied in the bondage of karma. We should do work only to free ourselves from the bondage of karma. To be free from the bondage of karma is salvation. Only when man becomes free from the bondage of karma, he is able to free himself from the cycle of birth and death and attain God as the ultimate goal. We all want happiness but get only sorrow in life. In such a situation, it is not certain to get supreme and eternal happiness in the next birth and future life, only spiritual progress and unity with God can give us continuous and lasting happiness, hence we should expect spiritual happiness and accordingly plan our next life. Must be decorated.

The seeds sown in our previous lives do not leave us. Whatever we sow today, we will reap tomorrow. One has to suffer the consequences of the good or inauspicious deeds done. Whoever has come into this world, his departure is also certain. Nothing is eternal here, everything is transitory, changeable. Therefore understand its impermanence. This world is like the twinkling morning star, it gets destroyed in no time. This is the condition of human life also. If humans understand death in the form of time and become engaged in the means of attaining God, then I believe that our afterlife will definitely improve. We will definitely be able to become worthy of God’s grace.

, Jai Shri Ram !! I pray to God for the pain of the green injury. May Ram be merciful and Pawansut be brave. , Hail Lord Rama !!

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