कर्म का प्रभाव जीव पे पड़ती है आत्मा किसी भी कर्म और भोग के प्रभाव से प्रभावित नही होती है
परमात्मा के स्पंदन से गुणों और तत्वों की उत्पति है परंतु ईश्वर कभी उस गुणों और तत्वों के प्रभाव में नही आता है अपितु सभी गुण, तत्व इससे प्रकट होकर अपनी माया रचती है और अंततः इसी में सम्माहित हो जाति हैं
मृत्यु उपरांत जो ब्राह्मण तुम्हे ऐसी कथा सुनाते है की इसकी आत्मा की मुक्ति अथवा शांति नही हुई है उनसे केवल एक सवाल करना आत्मा स्वयं मुक्ति प्रदान करने वाला परमतत्व है उनसे जायदा आनंदित, शांत, चैतन्य इस सृष्टि में दूसरा कौन है
बंधन,और अशांति जीव की भौतिक शरीर छुटने के पश्चात उसका भोग शरीर करता है ना की आत्मा जिस प्रकार भौतिक शरीर का अस्तित्व जब तक शेष रहती है तो आत्मा उसी भौतिकता में निहित होकर अपने एक रूप में उससे सदैव परे रहता है तभी तो उसके शाश्वत स्वरूप के दर्शन अर्थात आत्मा ज्ञान आत्मा साक्षात्कार को अद्वैत और समस्त साधन की चरमोत्कर्ष की रूप में योग सिद्धि अथवा तंत्र सिद्धि के रूप में वर्णित किया है
जागो सनातनियों जागो उस सनातन सत्ता से एकाकार होने का निरंतर प्रयत्न करो सनातन का साक्षात्कार ही आत्मा साक्षात्कार अथवा ईश्वर साक्षात्कार की अवस्था होती है
यहां जीव का विलय उसी आत्मा में हो जाति हैं और जहां जाकर जीव स्वय को उस अनंत विराट सत्ता से पूर्ण रूपेण एकाकार हो जाता है वहां न तो कर्म प्रभाव शेष रह जाति है ना गुण अवगुण का और न ही किसी तत्व का