परमात्मा को हम सुख में दुख में दोनों समय याद रखे।हम भगवान को दुख में तो बहुत भजते है। सुख आने पर हम सुख के अधिन हो जाते हैं सुख दुंखं में समान रूप से भगवान को भजते रहे ।एक भक्त के लिए दुख की परिस्थिति में परम पिता परमात्मा के निकट आने का सबसे उत्तम साधन है। दुख में ये संसार सगे संबंधी सब मुह मोङ लेते है ऐसे समय में भक्त भगवान को एकनिष्ठ भाव से सुबह शाम दोपहर भजता है नाम सिमरण और स्मरण करता है। भक्त जानता है कि यह दुख नहीं प्रतिकूल परिस्थिति परिणाम अनुकूल देने वाली है। भगवान से कर जोङकर प्रार्थना करता है। हे नाथ मै आपको प्रणाम करता रहु तुम्हारे ध्यान में लगाए रखना मेरे स्वामी तुम प्राण के प्राण हो। तुम से ही ये दिल उजागर है।
जिस समय आपको दुख की परिस्थिति को पढना आ जाता है। कि परमात्मा ने मुझे ये दुख नहीं दिया है। परमात्मा तुझे इस परिस्थिति के माध्यम से जागृत कर रहे हैं कि कहीं तु मोह के अधिन न हो जाए। जब हम अधिक भक्ति करते हैं तब परमपिता परमात्मा हमें संसार में अधिक लीन होने नहीं देते हैं। हम संसार के सुख को ही सच्चा सुख समझते हैं।वह मन का सुख है आत्मा का नहीं ।अध्यात्म वाद में वह दुख का रूप है। एक भक्त विकट समय में कभी भी घबराता नहीं है। वह जानता है दुख भी चला जाएगा तु थोड़ा धीरज धर भगवान तेरे साथ है तेरा कार्य भगवान को भजना है। भक्त के दिल में भगवान को भजते भजते आनंद की उत्पत्ति होने लगती है। परमात्मा का चिन्तन करते करते एक दिन आत्मा दुख में सुख का अनुभव करने लग जाती है।परम पिता परमात्मा को जो भजता है भगवान उसे धीरे धीरे सत्य के मार्ग पर ले आते हैं। हम तो यह भी नहीं जानते हैं कि भगवान ने मुझ पर क्या कृपा की है। जय श्री राम
अनीता गर्ग
We should remember God both in happiness and sorrow. We worship God a lot in sorrow. When happiness comes, we are subjected to happiness. We keep on worshiping God equally in happiness and sorrow. For a devotee, in the situation of sorrow, the best means to come near the Supreme Father, the Supreme Soul. In sorrow, this world takes all the relatives, at such a time, the devotee worships God with sincerity in the morning and afternoon, remembers and remembers the name. The devotee knows that this unfavorable circumstance, not sorrow, is going to give favorable results. He prays to God by adding taxes. O Nath, I keep on bowing to you, keep your attention, my lord, you are the soul of life. This heart is exposed only from you.
When you come to read the situation of sorrow. That God has not given me this sorrow. God is awakening you through this situation so that you may not be under attachment. When we do more devotion, then the Supreme Father Supreme Soul does not allow us to become more absorbed in the world. We consider the happiness of the world to be the true happiness. It is the happiness of the mind and not of the soul. In spiritualism it is the form of sorrow. A devotee never panics in difficult times. He knows that sorrow will also go away, you have a little patience, God is with you, your task is to worship God. Bliss begins to arise in the heart of the devotee while worshiping God. While contemplating on God, one day the soul starts experiencing happiness in misery. The one who worships the Supreme Father, the Supreme Soul, gradually brings him on the path of truth. We don’t even know what kind of grace God has bestowed on me. Long live Rama Anita Garg