भगवान राम के दर्शन कर पांऊ

भगवान राम के दर्शन कैसे हो। इस दिल में भी भगवान राम के दर्शन कर पाऊं, यह आत्मा की आवाज थी। अन्तर आत्मा की एक ही पुकार राम दर्शन इसमे शरीर को रंगना नहीं था। जो नजर भगवान मे समा जाती है वो नजर उठती नहीं है। मै नहीं जानती थी भगवान की भक्ति के लिए यह सब किया जाता है।  सब बाहर के नियम है। आपके अन्तर्मन मे एक इससे बड़ा नियम है। वह है विचार को दिल में बिठाना। अपने जीवन को प्रभु चरणों में समर्पित करना है। हम समझते हैं घर त्याग कर, गेरूआ वस्त्र धारण कर संसार को छोड़कर भगवान को प्राप्त करेंगे। उस मार्ग में भी हम साथी बनाते हैं। वह भी एक समय के बाद घर जैसा बन जाता है। फिर हम घर में भी अन्तर्मन से प्रभु प्राण नाथ के चरणों में समर्पित हो सकते हैं। आपके अन्तर्मन मे एक इससे बड़ा नियम है। वह है विचार को दिल में बिठाना।आपका शरीर मन कुछ भी करता हो दिल के अन्दर बैठे विचार को भगवान पुरण करते हैं। ऐसे में शरीर जीवित होते हुए भी शरीर निर्जीव है। मन और शरीर की बहुत सी इच्छाएँ नहीं है। कर्तव्य  जीवन का धर्म रहा है।
इस भाव का घर में किसी को पता नहीं था। मेरे पास इतना समय नहीं था कि मै किसी को बता पाती। दिल क्या चाहता है।
अनीता कंही बाहर नहीं गई किसी गुरु की शरण ग्रहण नहीं की है। मेरे घर में एक बाबा हनुमानजी की संजीवनी धारण किए हुए का पत्थर मे रूप था। बाबा हनुमानजी के हृदय में भगवान राम की मोहक छवी दिल में बैठ गई। बाबा हनुमान जी मेरे गुरुदेव हैं। बाबा हनुमान जी के चरणों में दिल समर्पित हो गया तब उठने की मुझको फुर्सत नहीं थी। दिल बाबा हनुमान जी से प्रार्थना करता क्या मेरे हृदय में भी भगवान राम आएंगे क्या कभी भगवान राम को दिल मे बिठा पाऊँगी । अन्तर्मन की कभी न खत्म होने वाली विनती और स्तुति अन्तर्मन से मै करती रहती। मुझे कुछ भी मालूम नहीं कि यह घटना सत्य का रूप लेगी। हाथ कार्य करते दिल चरणो में नतमस्तक रहता। यह भाव अनजाने में कई वर्षों तक बना रहा। सुबह शाम दोपहर अन्तर्मन से भगवान श्री राम  हृदय में बिठाने प्रार्थना होती था। मुझे यह भी मालुम नहीं था कि प्रार्थना किसे कहते हैं प्रार्थना क्या होती है। भगवान की प्रार्थना कैसे करनी चाहिए। दिल से निकले शब्द ही विनती और स्तुति होती। मेरे बाबा हनुमान जी महाराज मेरे दिल के स्वामी बन गए। दिल में कोई बैठ जाता है तब नज़र उठती नहीं है। जब भी समय मिलता भगवान राम को निहारती।
रामचरितमानस में आया भगवान  राम हनुमान जी के ह्दय मे बैठे हैं। बस यह पद दिल में बैठ गया।
राम लीला में सुतीक्ष्ण जी के ह्दय मे भगवान  राम बैठे हैं।  दिल करता हृदय में भगवान राम को विराजमान कर लु ।
हमारी  दृष्टि में यदि कोई सीन कोई रूप या चित्र बैठ जाता है। नेत्र रूप पर दृष्टि टिका देते हैं। तब वह रूप हमारे अन्दर समा जाता है। नेत्र  रूप को निहारते दिल में रूप समा जाता है। दिल की धड़कन रूप में समा जाती है। दृष्टि का दिल से घनिष्ठ सम्बन्ध है। रूप के दिल में समाने पर नेत्रों को  कुछ नहीं चाहिए। दृष्टि और दिल दोनों की एक ही प्यास कैसे नेत्र रूप को निहारते हुए दिल  तृप्ति हो। मै अनजाने में संसार से ऊपर उठ चुकी थी। मुझे इस संसार के भले बुरे सुख दुख से कोई सरोकार नहीं रहा। दिल की एक ही पुकार भगवान राम को निहारते हुए दिल आनंदित हो जाता नैनों में नीर समा जाता था। मै भगवान राम बाबा हनुमान जी को घण्टों खङी खङी निहारती। मुझे नहीं मालूम था भगवान को निहारना साधना मार्ग का सबसे श्रेष्ठ मार्ग है। निहारने में बहुत गहराई छुपी हुई है। हम निहारते है वैसे ही दिल के नजदीक पहुंच जाते हैं। एक भक्त भगवान को जितनी गहराई से निहारता है उतना ही भगवान भक्त के दिल में समाते जाते हैं। भगवान भक्त के दिल के जितने पास होगें संसार उसके पास आ नहीं सकता है।  एक बार अन्तर्मन से आन्नद और प्रभु प्रेम का स्वाद चख लेने पर संसारिक पदार्थ के रस फीके है। मै दिन दिन भगवान राम के भाव मे ढुबती जाती। प्रेम की एक सबसे बड़ी विशेषता है प्रेम कभी भी किसी के आगे उजागर नहीं होना चाहता है। प्रभु प्राण नाथ भगवान नाथ के प्रेम में शरीर का कोई रोल नहीं रहा। मेरे पास शरीर के लिए उस समय भी समय नहीं था आज भी समय नहीं है। दिल में जब सपने सज जाते हैं तब होश किसको रहता है। प्रेम में दिल तृप्त हो जाता है तब शरीर ने भोजन किया और नही किया एक समान हैं। प्रेम में बाहरी शरीर का सम्बन्ध नहीं है प्रेम का सम्बन्ध हृदय से हृदय का है। रूप को निहारने पर रूप ने दिल पर ऐसा जादू किया दिल रूप का बन गया। दिल भगवान राम का बन जाता है तब भगवान इस दिल के स्वामी बन गए। प्रेम सब बन्धनों को तोड़ देता है। प्रेम में प्रेमी समा जाता है। रूप जितना दिल में उतरता है उतना ही मै मौन भगवान के भाव मे रहती। प्रभु प्राण नाथ के प्रेम की एक ही पहचान है प्रभु प्रेमी अपने अन्तर्मन मे भगवान को बिठाकर स्वयं न्योछावर हो जाती हूँ।  भगवान राम के चरणो में समर्पित होना ही भक्ति की पराकाष्ठा है। प्रेम का पंथ नियम से ऊपर का है। निहारते हुए यदि रूप दिल में बैठ गया तब सब साधना उसी क्षण हो जाती है। एक प्रभु प्रेमी के भगवान ही गुरु बनते हैं। गुरु नियम से हमें करना सिखाता है। पर मेरा दिल मेरे बस का नही था दिल तो घङी घङी रूप रूप में बैठें  भगवान राम को निहारता था निहारते हुए कब भगवान अपना बना लेते हैं भक्त नहीं जानता है। प्रेम में दिल प्रेम का सागर है।जय श्री राम अनीता गर्ग

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