नित्य किरया कर्म ज्ञान योग भक्ति मार्ग का निचोड़ एवं प्रभु प्रेम का भाव है। हम कितनी ही बैठे बैठे पुजा करले स्तुति गाऐ कुछ समय मन टिकता है भाव की गहराई पुरणतः नही बन पाती है। गोपीयो , माता शबरी , तुकाराम जी, रविदास जी और अनेक सन्तों ने भगवान को कर्म करते हुए शरीर रूप से गोण होकर प्रभु प्राण नाथ के प्रेम में भगवान की भाव से सेवा की है। भगवान भी वहीं भाव से लीला करने आये हैं। प्रभु प्रेमी ग्रंथों और धर्म के अधीन नहीं है। उसकी वाणी ही ग्रंथ है। प्रभु प्रेमी की हर किरया में उसका परम पिता परमात्मा समाया हुआ है। हर क्षण भक्त भगवान के प्रेम में खोया हुआ है। उसे बाहरी स्तुति से अपने स्वामी भगवान् नाथ को रिझाने की जरूरत नहीं है। भक्त भोजन करने में लेट हो जाता है। तब भक्त की भगवान को चिन्ता होती है कि मेरा भक्त भोजन कब करेंगा ।
‘मै’ जब breakfast किए बगैर स्तुति लिखने लगती हूं ।तब कुछ भाव लिखते हुए अन्तर्मन से अवाज आने लगेगी तु पहले breakfast बना ले बार ऐसा लगेगा जैसे कोई तुझे कह रहा हैं। मै भोजन बनाने लगती हूं। अन्तर्मन से भाव विभोर हो मेरे स्वामी भगवान् नाथ की स्तुति और गहरे भाव से करती ऐसे में हाथ चलते अन्तर्मन तो भगवान से वैसे ही जुड़ा हुआ है जैसे बैठकर स्तुति भाव लिखते हुए था। ऐसे में भक्त भोजन नहीं बना रहा है उसका मालिक ही करने और कराने वाला है प्रेम की रीत में बिछङन नहीं है।बिछङन जब होगा तब भगवान और भक्त दो होंगे । यंहा दोनों ने एक दूसरे को पकड़ा हुआ है। भक्त शरीर रूप से नहीं है तो भगवान भी भगवान रूप से न होकर प्रेमी का रूप धारण कर के आये हैं। भगवान पृथ्वी जल वायु अग्नि और आकाश में भक्त के साथ लीला कर रहे हैं। बैठ कर भगवान को भजते हुए में प्रेम कहां है। प्रभु प्रेम ऐसी अनुभूति है जिसमें एक बार डुबकी लगाने पर जन्म जन्मानतर का जीवन बह जाता है।। जय श्री राम अनीता गर्ग
Nitya Kirya Karma Gyan Yoga is the essence of the path of devotion and the feeling of love for the Lord. No matter how many times we sit and worship and sing praises, the mind stays for some time and the depth of the feeling is not fully formed. Gopios, Mata Shabari, Tukaram ji, Ravidas ji and many other saints have served God in the spirit of love in the love of Prabhu Pran Nath, while doing the work of God. God has also come there to perform Leela with the same spirit. The Lord is not subject to loving scriptures and religion. His voice is a book. In every act of the lover of the Lord, his Supreme Father, the Supreme Soul, is absorbed. Every moment the devotee is lost in the love of the Lord. He does not need to woo his master Lord Nath with external praise. The devotee gets late to eat. Then the devotee worries to the Lord that when will my devotee have food. When ‘I’ start writing praises without having breakfast. Then while writing some expressions, voices will start coming from your heart, after making breakfast first, it will feel as if someone is telling you. I start cooking. Be filled with emotion and praise my lord Bhagwan Nath with a deep feeling, in such a way that while moving hands, the inner being is connected to God in the same way as it was sitting while writing praises. In such a situation, the devotee is not preparing the food, its owner is the one to do it and get it done, there is no separation in the way of love. When the separation happens, then God and the devotee will be two. Here both of them are holding each other. If the devotee is not in the form of a body, then God has also come in the form of a lover, not in the form of God. Lord is doing Leela with the devotee in earth water air fire and sky. Where is the love in sitting and worshiping God? God’s love is such a feeling in which once you take a dip, life after birth is washed away. Jai Shri Ram Anita Garg