अध्यात्मवाद पढने और लिखने की चीज नहीं है। तोते की तरह ग्रंथ और ज्ञान को रटने की चीज नहीं है। अध्यात्म को तब तक शब्द रूप नहीं दे सकते हैं।
जब तक अन्तर्मन से परम पिता परमात्मा के नहीं बनते हैं। हर क्षण परमात्मा को ध्याते हुए कब ज्ञान मार्ग आ जाता है भक्त को ज्ञान ही नहीं है भक्त प्रभु की विनती स्तुति और चिंतन में गहरा डुब जाता है।
जीवन भक्ति मय बन जाता है। भक्त के जीवन का एक ही लक्ष्य मुझमें अभी बहुत खोट है मैंने अभी सच्चे मन से भगवान पुरणतः ध्याया भी नहीं है।
हे मेरे स्वामी भगवान नाथ तुम बहुत भोले हो बहुत जल्दी रीझ जाते हो। मुझमे अभी बहुत पाप भरे हुए हैं। हे मेरे स्वामी भगवान् नाथ मेरा ह्दय में शुद्धता नहीं समाई है।
मेरे भगवान राम मै तुम्हारे दर्शन के योग्य भी नहीं हूं। एक अध्यात्मिक एक एक शब्द को जो वह बोलता है लिखता है उन सब भावो के साथ हजारों बार जीवन में देख कर बोलता है।
एक अध्यात्मिक के पास बाहरी ग्रंथ की बात नहीं जो उसने भगवान को ध्याते हुए भगवान ने दिखाया वही उसके पास होता है।ये उठने और गिरने का सौदा है यहां पत्थर पर मन को रगङना पङता है। ये राम नाम के मोती हैं चुग सके तो चुगले रे मुसाफिर फिर पाछ पछताएगा।अध्यात्म जीवन है। अध्यात्म हमे गुरु के पास जाने मात्र से नहीं मिलता है।
जीवन की सत्यता नम्रता विस्वास प्रेम भक्ति नाम सिमरण और समर्पण भाव में अध्यात्मवाद छुपा हुआ है।
भगवान् से मिलन की तङफ में पल पल भगवान को ध्याते है ।हमारे जीवन का एक ही उद्देश्य हो कि मेरे प्रभु प्राण प्यारे को केही विधि ध्याऊ ।
अध्यात्मवाद में बाहर की खोज का कोई काम नहीं है। खोज तो हमें अन्तर्मन से करनी है। खोज वह है जिसमें हम हर क्षण सतर्क रहते हैं। हमे सोचना है तो परमात्मा के बारे में सोचना है।
अध्यात्मवाद किसी अन्य व्यक्ति से जानने की चीज नहीं है। प्रभु प्रेम एक ऐसी अनुभूति होती है कि जंहा से व्यक्ति विशेष जाता है वहीं अपने भावो को बिखेर कर जाता है।अनजाने में लाखों डुबकी लगाते हैं। अध्यात्मवाद अन्तर्मन का दृष्टिकोण हैं। भक्ति बहुत करते हैं। अध्ययन भी चलता रहता है।
पर अध्यात्मवाद की शुद्धता परमात्मा की कृपा दृष्टि पर निर्भर है। अधयन करते हुए हम कितने परम पिता परमात्मा के बनते हैं। एक अध्यात्मिक अपने को ठोक ठोक कर देखता है कि कहीं तुझमे नीज स्वारथ तो नहीं है। जब तक परम पिता परमात्मा का चिन्तन मन्न और ध्यान नहीं करते हैं तब तक अध्यात्मवादी नहीं बन सकते हैं। अध्यात्मवाद दो प्रकार का है। एक हमने ग्रंथों का अध्ययन करके सुनाते हैं उस में कुछ भाव अपने प्रकट करके सुनाते हैं। और दुसरा ग्रंथों के अधिन नहीं है।करत करत अभ्यास से मोती चुनकर लाते हैं। वह तन मन से समर्पित है
उसकी अन्तरात्मा की पुकार ईश्वर से प्रार्थना है। जैसे मीराबाई ने भगवान को पल पल ध्याया है। वे भक्त भगवान को दिल में बिठाकर हर क्षण प्रभु प्रेम के अमृत का रसपान करते और कराते हैं।जय श्री राम अनीता गर्ग