पूज्य गुरुदेव कहते हैं —
ज्ञान एवं बौद्धिकता मनुष्य की अमूर्त सम्पदा है ।
ज्ञान मनुष्य की वास्तविक शक्ति है । वास्तविक वस्तु वह है जो सदैव रहने वाली हो। संसार में हर वस्तु नष्ट हो जाती है। धन नष्ट हो जाता है,शरीर जर्जर हो जाता है, साथी और सहयोगी छूट जाते हैं । केवल ज्ञान ही एक ऐसा अक्षय तत्व है, जो कहीं भी किसी अवस्था और काल में मनुष्य का साथ नहीं छोड़ता ।
वास्तविक ज्ञान स्थिर बुद्धि और उसका निर्देशन है, जिसे पाकर मनुष्य अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमृत की ओर, असत्य से सत्य की ओर, अशांति से शांति की ओर और स्वार्थ से परमार्थ की ओर उन्मुख होता है । सच्चे ज्ञान में असंतोष नहीं होता और न किसी प्रकार का लालच होता है ।ज्ञान की प्राप्ति तो आत्मज्ञता, आत्म-प्रतिष्ठा और आत्म-विश्वास का ही हेतु होता है । जिस ज्ञान से ये तीनों नहीं मिलते उसे ज्ञान कहना भूल है ।
वास्तविक ज्ञान के बिना के बिना जीवन में न शांति मिलती है और न उसको पर-कल्याण मिलता है ।
सद्ज्ञान अपने दोषों और अपने गुणों को जानने के लिए तथा अपने दोषों को हटाने और गुणों को प्रकट करने के लिए है ।आज अधिकांश लोगों को तत्वों का ज्ञान नहीं है । जो शिक्षित हैं, वे भी अपने ज्ञान का उपयोग दूसरों के दोषों को ढूँढने में करते हैं, अपने दोषों को देखने के लिए नहीं ।
अपने दोषों को देखने का मन नहीं होता और दूसरों के दोषों को देखने का मन हो जाए । इसे क्या माना जाए?
शिक्षित _ या _अशिक्षित
‘स्व ‘ में देखें ‘पर ‘ में नहीं
ज्ञान स्वयं को, स्वयं के स्वरूप को जानने के लिए ही होता है । स्वयं के दोषों को जानकर उनके निस्तार का प्रयास कर ,आत्मा को उज्ज्वल बनाने के लिए ज्ञान होता है ।
आत्मा और प्रकृति के रहस्य जानकर ,अपने सच्चे स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर परमात्मा के शरण में जाना ही सच्चा ज्ञान है