ज्ञानी जब उस तत्व ज्ञान को पा लेता है तो उसकी ब्रह्माकार वृत्तिया हो जाती है उसको ऐसा लगता है जैसे कि वही हर जगह उसी रूप में बनकर बैठा है और उसी की सत्ता से सब हो रहा है आदि आदि..!
ज्ञानी को लगता है कि वही सूर्य बनकर प्रकाश फैला रहा है वही चांद ओर तारे बनकर टिम टमा रहा है वही वर्षा बनकर बरस रहा है वही बिजली बनकर चमक रहा है वही पक्षी बनकर चैह चैह कर रहा है वही शेर बनकर धहड़ रहा है वही मूर्ति में भगवान बनकर बैठा है वही आकाश बनकर सबको छाहो दे रहा है ..!
ज्ञानी को ऐसा लगता है कि सब उसकी की ही सत्ता से हो रहा है और सब वही का वही बनकर बैठा है उसकी ऐसी ब्रह्माकार वृत्तिया हो जाती है..!
परन्तु त्यागी में एक भिन्नता होती है त्यागी उन ब्रह्माकार वृत्तियो का भी त्याग कर देता है जो ज्ञानी ने पाल कर रखी हुई होती है ..!
त्यागी को अपने अलावा कुछ सत्य लगता ही नही है वो अपने निजस्वरूप में मगन रहता है उसको अपना आपा ही सच्चा लगता है ओर जिसको अपना आपा ही सच्चा लगता है उसके लिए वृत्तिया कोई महत्व नही रखती है क्योंकि वृत्तिया नश्वर वस्तुओं की पाली जाती है शाश्वत की नही इसलिए त्यागी उन सब वृत्तिया का त्याग कर देता है जो ज्ञानी ने पाल कर रखी हुई होती है..! हरि ॐ
When the Gnani attains that Tattva Gyan, then he becomes Brahmakar Vritya, he feels as if he is sitting in the same form everywhere and everything is happening due to his being etc..!
The Gnani feels that he is spreading light as the sun, the same moon and stars, the same rain is raining, the same lightning, the same bird is frolicking, the same lion is roaring in the same idol. He is sitting in the form of God, he is giving the sky to everyone..! It seems to the wise that everything is happening from his own being and everything is sitting as his own, his such brahmakar attitudes happen..!
But there is a difference in Tyagi, the Tyagi also renounces those Brahmakar attitudes which are maintained by the Gnani..!
Tyagi does not feel any truth other than himself, he remains engrossed in his own nature, he finds his own self to be true, and for the one who finds his own self true, attitude is of no importance to him because instincts are nurtured by mortal things. No, that’s why a tyagi renounces all those attitudes which are maintained by the wise..! Hari