जीवन लक्ष

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हम धन कमाने और संपत्ति एकत्रित करने में इतने व्यस्त हो गए हैं कि जीवन के अन्य पहलुओं की उपेक्षा कर रहे हैं? हम यह समझने लगे हैं कि धन से ही जीवन है। मै धन कमा रहा हूं इसलिए मै सबसे श्रेष्ठ हूं। ये सुख के साधन ही हमारे दुख के कारण बन गए हैं। हम मेहनत हाथ से करते थे तब हमारे होंसले बुलन्द थे। आज हम भय और negativity के अधिन हो रहे हैं। हमारी अन्तर्मन की मुस्कान को चोट लगी है। हमारी सहनशीलता कमजोर हो रही है। हम पृकृतिक सोंदर्य से पीछङ रहे हैं। हम अपना ही सुख चाहते हैं। हम जीवन के सोंदर्य से पीछङ गए हैं। क्योंकि भोतिक सुख के कारण प्रकृति से हम दूर होते जा रहे हैं हमने इस दौरान हजारों खूबसूरत सूर्योदय और सूर्यास्त, सैकड़ों आकर्षक इंद्रधनुष, मनमोहक पेड़-पौधे, सुंदर नीला आकाश और पास से गुजरते लोगों की मुस्कानें गंवा दीं। हम जीवन की उस संपूर्ण सुंदरता कोअनुभव नहीं कर पाते हैं।

इससे न केवल हम प्रकृति की सुंदरता और दूसरों के साथ अपने रिश्तों की मिठास से वंचित रह जाते हैं, बल्कि स्वयं को उपलब्ध सबसे बड़े खजाने-अपनी आध्यात्मिक संपत्ति को भी खो बैठते हैं।

आजीविका कमाने में कुछ गलत नहीं है। लेकिन जब पैसा कमाना हमारे लिए इतना अधिक महत्वपूर्ण हो जाए कि हमारे स्वास्थ्य, हमारे परिवार और हमारी आध्यात्मिक तरक्की की उपेक्षा होने लगे, तो हमारा जीवन असंतुलित हो जाता है। हमें अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के साथ-साथ अपनी आध्यात्मिक प्रगति की ओर भी ध्यान देना चाहिए। हमें शायद लगता है कि आध्यात्मिक मार्ग पर चलने का मतलब है सारा समय ध्यानाभ्यास करते रहना नहीं है। कर्तव्य और कर्म पर दृष्टि आध्यात्मिक उन्नति है।

अपनी प्राथमिकताएं तय करते समय हमें रोजाना कुछ समय आध्यात्मिक क्रिया को, कुछ समय निष्काम सेवा को, कुछ समय अपने परिवार को और कुछ समय अपनी नौकरी या व्यवसाय को देना चाहिए। ऐसा करने से हम देखेंगे कि हम इन सभी क्षेत्रों में उत्तम प्रदर्शन करेंगे और एक संतुष्टिपूर्ण जीवन जीते हुए अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त कर लेंगे। समय-समय पर यह देखना चाहिए कि हम अपना लक्ष्य प्राप्त करने में सफल हो भी रहे हैं अथवा नहीं। हो सकता है कि हमें पता चले कि हम अपने करियर या अपने जीवन के आर्थिक पहलुओं की ओर इतना ज्यादा ध्यान दे रहे हैं कि परिवार, व्यक्तिगत विकास और आध्यात्मिक प्रगति की उपेक्षा हो रही है।हम 55, 60 की उम्र में हमे महसुस होता है कि अध्यात्मिक हमारी अपनी विचार शैली हैं। अध्यात्मवाद हमारा असली धन है। धन भोजन परिवार हमारे अन्दर शांति और खुशी स्थापित नहीं कर सकता है हम शान्त अपने अन्तर्मन के अध्यात्मवाद से होगे। जय श्री राम अनीता गर्ग



We have become so busy in earning money and accumulating wealth that we are neglecting other aspects of life? We are beginning to understand that money is life. I am earning money so I am the best. These instruments of happiness have become the cause of our misery. We used to do hard work with our hands, then our spirits were high. Today we are being subjected to fear and negativity. Our inner smile has been hurt. Our tolerance is getting weaker. We are lagging behind the natural beauty. We want our own happiness. We have lost sight of the beauty of life. Because we are getting away from nature due to material happiness, we have lost thousands of beautiful sunrises and sunsets, hundreds of attractive rainbows, beautiful trees, beautiful blue sky and smiles of people passing by. We are not able to experience the full beauty of life.

This not only deprives us of the beauty of nature and the sweetness of our relationships with others, but also the greatest treasure available to ourselves – our spiritual wealth.

There is nothing wrong in earning a living. But when earning money becomes so important to us that our health, our family and our spiritual progress are neglected, our life becomes unbalanced. We should pay attention to our spiritual progress along with fulfilling our worldly responsibilities. We may think that walking the spiritual path means not having to meditate all the time. The focus on duty and action is spiritual advancement.

While setting our priorities, we should give some time daily to spiritual activity, some time to selfless service, some time to our family and some time to our job or business. By doing this we will see that we will perform well in all these areas and achieve all our goals while leading a fulfilling life. From time to time it should be seen whether we are successful in achieving our goal or not. We may find that we are focusing so much on our careers or the economic aspects of our lives that family, personal growth and spiritual progress are neglected. We feel as we age 55, 60 That spirituality is our own style of thought. Spiritualism is our real wealth. Wealth food family cannot establish peace and happiness in us, we will be peaceful with the spiritualism of our inner self. Jai Shri Ram Anita Garg

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