जब हम पैदा हुए तब फुल की तरह खिले हुए थे मात पिता ने प्रेम की लोरी से पालन किया। कुछ बङे हुए तब मात पिता हमारे अन्दर बीज रोप देते हैं । बीज को रोपकर वे पानी देते रहे । बीज क्या है धर्म ग्रंथ और मुर्ति बीज है। फिर आरती कथा करनी सिखाई। आरती कथा रूपी पानी से वे सींचते रहे। ग्रथं का पठन पाठन खाद है। हमे सब चीज समय समय पर सुचारु रूप से मात पिता देते रहे । मात पिता गुरु है वे सोचते हैं। यह फल फुलकर वृक्ष बनेगा। वृक्ष क्या है अध्यात्म का ज्ञान ही वृक्ष हैं। भगवान मे रम जाना हृदय की शुद्धता ही भक्ति है। हमारी उम्र बीत जाती है हम अभी first second में ही रह जाते हैं क्यों क्योंकि जल और खाद जङ तक नहीं पहुंचती है। जङ को कुछ मिले तभी वृक्ष फले। जङ क्या है जङ अन्तर्मन मे भाव को बिठाकर भाव में रमना ही जङ हैं। हम बाहर का मार्ग त्याग कर जितने अन्तर्मन से भगवान का चिन्तन करेंगे उतनी जङ strong होगी जङ के strong होने पर वृक्ष फल दायी होगा। वृक्ष जितना हरा भरा होगा उतने ही फल लगेगें, विचार की पवित्रता शुद्धता सत्यता प्रेम समर्पित भाव वृक्ष के फल है। अन्तर्मन से बात करना भक्ति का उच्च स्तर है। बाहर का पठन पाठन छोड़ोगे तभी अन्दर का मार्ग खुलेगा। बाहर का ज्ञान रेत के समान है जो पानी के बहाव में बह जाता है बाहरी पठन पाठन से अन्तर्मन दृढ नहीं हो सकता है अन्तर्मन को बनाने के लिए ओखली में सिर देना पड़ता है ओखली मन को अन्दर ले जाना ओखली है। जय श्री राम अनीता गर्ग
When we were born, we were in bloom like a flower, the mother father followed with the lullaby of love. When some are grown up, the mother father sows the seeds in us. By planting the seeds, he kept giving water. What is a seed, religious texts and idols are seeds. Then taught me to do the aarti story. He kept irrigating with water in the form of aarti story. The reading of the book is the fertilizer. We were given everything smoothly from time to time. They think that the Mother Father is the Guru. This fruit will grow into a tree. What is a tree, the knowledge of spirituality is the tree. To be engrossed in God Om, purity of heart is devotion. Our age passes, we are still left in the first second, because water and fertilizer do not reach till the ground. When the tree got something, then the tree flourished. What is it, it is only necessary to stay in the feeling by setting the feeling in the conscience. The more we contemplate God with the innermost heart, leaving the outside path, the stronger the tree will be when the tree is strong. The more green the tree is, the more fruit it will bear, the purity of thought, purity, truthfulness, love, devotion are the fruits of the tree. Talking to the inner soul is the highest level of devotion. If you stop studying the outside, then only the inner path will open. External knowledge is like sand which gets washed away in the flow of water. The inner mind cannot be strengthened by external reading, to make the inner mind, it is open to take the open mind inside. Jai Shri Ram Anita Garg