जय दुख देवता तु मुझे रूलाने आया है। मै तेरी क्या सेवा कर सकती हूँ। तु मन को रूला सकता है, तु तन को तोड़ सकता है, तु बुद्धि को विचलित कर सकता है, तु आत्मा का कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। आत्मा शान्त चेतन हैं । अ दुख तु आया है तब मन के भीतर की कामनाओं विचारों को मार डाल मन को निर्विकल्प कर दे। शुद्ध मन से ही शुद्ध चिन्तन होता है। अ दुख तु मुझे परमात्मा की शरण में ले चल। अ दुख तु ऊपर से दुख रूप हो सकता है अध्यात्मवाद के लिए तु आनंद का स्त्रोत है। तु आता है, तब अभिमान आ नहीं सकता है, तु भक्ति मार्ग को दृढ करता है तु जीवन जीने की कला सिखाता है। हम संसारिक सुख की अधीनता से ऊपर उठ जाते हैं। तब भक्त भगवान के सबसे नजदीक होता है सच्चे मन से वह भक्ती में लीन हो जाता है बार बार भगवान की पुकार लगाता है प्रार्थना करता है नाम सिमरण करता है। भगवान् को भजते हुए सब कामनाएँ मोह छुट जाता है। जब प्राणी कामनाओं और मोह को छोड़ता है तब वह सत्य के मार्ग पर चलता है अन्तर्मन मे विश्वास जागृत होता है। कठिन परिस्थितियों इन्सान को बना कर जाती है।दुख भक्ति और अध्यात्मवाद का मार्ग है। जंहा भक्त भगवान की भक्ति से जागृत हो जाता है। यह सब स्टेज भगवान के गहरे चिन्तन पर दिखाई देती है भगवान को भजते हुए कोई भी परिस्थिति हमें तोड़ नहीं सकती है ।
भगवान् का नाम चिंतन करते करते भक्त दुख में आन्नद खोज लेता हैं। अध्यात्म में दुख आनंद का सबसे बड़ा स्रोत है। भक्त कहता है कि हे परमात्मा जी तुम मुझे चाहे कष्ट ही दे देना। क्योंकि कष्ट के समय मैं तुम्हारे साथ बहुत घहरे से तुम्हारी वन्दना करता हूं। वन्दना करते करते आनंद विभोर हो जाता हूँ। हे प्रभु प्राण नाथ भगवान् के चरणों में नतमस्तक होने पर सुख दुख दोनों गोण है। भक्त कहता है कि दुख के बादल जब घिर आते हैं। अहंकार काम क्रोध लोभ मोह माया सब छुप जाते हैं। मतलबी यार किनारा कर लेते हैं। भक्त भगवान् में लिन होकर प्रार्थना करता है। नैनो में नीर घिर आता है दरश की चाहत बढ जाती है।जय श्री राम अनीता गर्ग
Jai sorrow god, you have come to make me cry. What service can I do for you? You can make the mind cry, you can break the body, you can disturb the intellect, you cannot harm the soul. Souls are silent conscious. A sorrow has come to you, then kill the desires and thoughts within the mind and make the mind nirvikalpa. Pure mind leads to pure thinking. O sorrow, take me in the shelter of God. A misery can be a form of misery from above, you are the source of joy for spiritualism. You come, then pride cannot come, you strengthen the path of devotion, you teach the art of living. We rise above the subjection of worldly pleasures. Then the devotee is closest to God, with a sincere heart, he gets absorbed in devotion, repeatedly calls on God, prays, does name simran. While worshiping the Lord, all desires get rid of attachment. When a being leaves desires and attachments, then he walks on the path of truth, faith in the inner self is awakened. Difficult situations make a person go away. Suffering is the path of devotion and spiritualism. Where the devotee gets awakened by the devotion of God. All this stage is visible on the deep contemplation of God, no circumstance can break us while worshiping God.
While contemplating the name of the Lord, the devotee finds joy in sorrow. Suffering is the biggest source of joy in spirituality. The devotee says that O God, you want to give me trouble. Because in times of trouble I deeply worship you with you. I become happy while worshiping. O Lord Pran Nath, being bowed down at the feet of the Lord, both happiness and sorrow are got. The devotee says that when the clouds of sorrow come around. Ego, lust, anger, greed, attachment, delusion, all are hidden. Mean dude gets away. The devotee prays by being absorbed in the Lord. Neer comes in the nano, the desire of Darsh increases.Jai Shri Ram Anita Garg