यह शरीर ही कोठरी हैं कोठरी को बाहर
से नहीं अन्तर्मन से सजाना है।
कोठरी में हर समय झाङु लगती रहेगी।
तभी कोठरी पवित्र होगा। हमे कोठर
में समर्पण भाव की झाङु लगानी है।
काया कोठरी परब्रह्म परमेश्वर के प्रकाश
से उजागर होगी। बाहर बाहर कितने ही
घुम ले कितनी धुप बत्ती जलाए
कोठरी पर धुप बत्ती का धुआं ही जमेगा। कोठरी को पवित्र करने के लिए नाम धन
और पुकार में तङफ की जरूरत है।
नाम धन से पुकार से आन्नद प्रकट होने
लगता है। हम समझते हैं कि मै बहुत
ज्ञानवान और बहुत बड़ा भक्त हूं ।
और हम सब कुछ करते हुए भी आगे
नहीं बढ़ पाते हैं। उस आनंद के मार्ग का भी
हम त्याग करते जाए। अपने आपको हमे पढना है कि मै भगवान को भजता हूं
मैं भगवान को किसलिए भज रहा हूं,
मैं भगवान का सिमरण कथा पाठ
कीर्तन किसलिए करता हूं
मै भगवान से क्या चाहता हूं।
मैं भगवान को मान बढाई प्रसिद्धि के
लिए तो नहीं भज रहा हूं। मेरे अंदर कोई
संसारिक सुख की भावना तो नहीं छुपी
हुई है। मै भगवान को भज कर
सिद्धी और संकल्प शक्ति तो नहीं चाहता हूं।
हमे यह अच्छी तरह से जानलेना चाहिए
कि संकल्प शक्ति और सिद्धि मृत्यु के समय काम नहीं आती है।
मै भगवान को इसलिए भजता हूं
चिन्तन मनन करता हूं कि भगवान ने ये
झोपड़ी दी है। हम देखते रहे हमारे अन्दर की सोच क्या है। अपने मन को पढे बैगर कोई भी बडे विचार का धनी नही हो सकता है
।
कर्म करने के लिए इन्द्रिया
दी है। इस झोपड़ी को पवित्र
रखने के लिए भक्त भगवान को भजता हूं ।
हम भगवान को भजते हुए इतने
लचीले बन जाए कि हर परिस्थिति में
हम समान रूप से रहे। हमे ये शरीर गोण
लगने लग जाएं। परब्रह्म परमेश्वर
स्वामी भगवान नाथ के प्रकाश से जड़
चेतन सब प्रभु रुप बन जाए ।
कभी भगवान भी विश्राम करना चाहे
तब इस कोठरी में विश्राम कर सके।
यह शरीर भगवान का मन्दिर बन जाए ।
जय श्री राम अनीता गर्ग