{ॐ}
आगे-कभी कभी नाद दिन रात मे अचानक खुल जाता है कभी आपके नियमित समस पर जैसे नित्य रात्रि के ११ बजेआप साधना कर ते हो एवं ११ बजे किसी दिन यात्रा मे हो या कही वार्त्ता मे बैठे है
तो आपका सुक्ष्मशरीर नाद श्रवण एवं स्थुल शरीर संसारिक क्रिया– कलापो मे व्यस्त रहेगा
अतः सदैव अपने सुक्ष्म व कारणशरीर के माध्यम से ईश्वर साधना मे लिप्त रहें एवं स्थुल शरीर अपना कार्य करता रहें
ऐसा सतत् प्रयन्न करते रहना चाहिये ।
श्वांस साधारण व्यक्ति के१ मिनिट मे १२–१३ बार आता है उनके श्वांस की गति करीबन ५ एवं नाडी़ की गति१७० से२२० तथा ह्रदय की धडकन१ मिनिट मे ५० के करीब रहती है
सतत् व उच्च साधना से आप सदैव संकट मुक्त रहेगे यह जरूरी नही है
आप साधारण मनुष्यों से भी अधिक संकट आना ग्रस्त समय भोगने को भी मजबूर हो सकते है
अनेक संकट आना अनेक शत्रु होना विशेष अपमान होना ये बातें भी हो सकती है एवं व्यक्ति को साधना के उच्च केन्द्रों से नीचा गिरा देती है ।
परन्तु सतत् अभ्यास जारी रखें आप भोगवाद के समाप्त होते ही पुनः पुर्व अवस्था मे आ जायेगें अतः सुख दुखः को प्रभु का प्रसाद मानकर भोगना चाहिये
अपने ईष्ट के प्रति अश्रध्दाभाव प्रकट नही होने चाहे ।
इस परम सत्ता (परब्रह्म) से ही व्यक्ति गत ईश्वर का उद् भव होता है यही ईश्वर एक से दो और दो से तीन को प्राप्त होता है जिसे त्रिमुर्ति कहा जाता है । वह ईश्वर ही शब्दब्रह्म है।
ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इसके तीन रूप है । आत्मा की भी इसी के अनुसार तीन उपाधियॉ है स्थूल, सूक्ष्म, व कारणशरीर, इसकी चौथी अवस्था शान्त अद्वैत शिव की है ।
इसी त्रिमुर्ति से देवताओं की उत्पत्ति होती है जो सृष्टि के व्यवस्थापक है यह ईश्वर उस अव्यक्त स्वरूप है।
मनुष्य इस व्यक्त ईश्वर का प्रितिबिम्ब है उसकी अन्तरात्मा अनादि और ईश्वर रूप है।
उस परब्रह्म मे असंख्य सृष्टियॉ और प्रत्येक मे असंख्य सुर्यमण्डल है प्रत्येक सूर्यमण्डल का अधिपति उसका ईश्वर है प्रत्येक ईश्वर अपनी सृष्टि की रचना करता है ।
ये कल्पारम्भ मे जब योग निद्रा से जागते है।
तो सृष्टि का सम्पुर्ण चित्र उनके मन मे आ जाता है ।उनके,,एको हं बहुस्या ,,(मै एक हुँ अनेक हो जाऊँ) के संकल्प से ब्रह्मा उत्पन्न होते है ।
दुसरे देव ऋषि भी ईश्वरेच्छा से आते है व उसी चित्र के अनुसार सृष्टि का विकास करने लगते है।
इस विकास वरम्परा का आदि या अन्त हम नही जान सकते किन्तु इस सम्पुर्ण विकास का एक ही नियम है ।द्विय दृष्टि से महात्मागण इस सम्पुर्ण सृष्टि का पुरा विकास क्रम फिल्म री भॉति शिष्य को दिखा देते है ।
{ॐ} Further, sometimes the sound opens suddenly in the day and night, sometimes on your regular problem like at 11 o’clock in the night, you do sadhana and at 11 o’clock some day you are traveling or sitting in a conversation. So your subtle body will be engaged in hearing sounds and gross body in worldly activities. Therefore, through your subtle and causal body, always indulge in the spiritual practice of God and the gross body should continue to do its work. You should keep on trying like this. Breathing comes 12-13 times in 1 minute of ordinary person, their breathing rate is about 5 and pulse rate is 170 to 220 and heart beat is around 50 in 1 minute. It is not necessary that you will always be trouble free with continuous and high spiritual practice. You may also be forced to suffer more trouble than ordinary humans. Having many troubles, having many enemies, being special humiliation, these things can also happen and bring down a person from the higher centers of spiritual practice. But keep practicing continuously, you will come back to the old state as soon as the enjoyment ends, so happiness and sorrow should be enjoyed as God’s prasad. Do not want to show distrust towards your deity. It is from this supreme being (ParBrahm) that the individual God emerges, this God is attained by one to two and two to three, which is called Trimurti. That God is the word brahman. Brahma, Vishnu, Mahesh, it has three forms. According to this, the soul has three titles, gross, subtle, and causal body, its fourth state is that of the peaceful Advaita Shiva. From this Trimurti, the gods are born, who is the administrator of the universe, this God is that avyakt form. Man is the image of this manifest God, his soul is eternal and God form. In that Parabrahm there are innumerable creations and in each there are innumerable solar systems, the ruler of each solar system is its God, each God creates his own creation. When he wakes up from yoga nidra in Kalparambh. So the whole picture of the universe comes in his mind. Brahma is born out of his resolution of Ekko hum bahusya (I am one and many). Other god sages also come with the will of God and start developing the world according to the same picture. We cannot know the beginning or the end of this development, but there is only one rule for this entire development. From the second point of view, the Mahatmas show the entire development sequence of this entire creation to the disciple like a film.