जय श्री राम भगवान को भजते हुए भगवान हमे आनन्द बहुत देते है। हृदय आनंद से भरा रहता है। मन में प्रेम जाग्रत होने लगता है हम अपने भाव अन्य को सुनाने लगते हैं लेकिन एक दिन मै सोचती हूँ अभी मै पुरण नहीं हूं। फिर मै अपने अन्तर्मन से पुछती हूँ कही मैं इस आन्नद के अधीन तो नहीं हो रही हूँ। बार बार मन में प्रशन उठता है। क्या तेरी यात्रा यही तक है। अरी पगली यह तो प्रथम सीढ़ी है तुझे आगे चलना है ये तो मार्ग के पङाव है। इस आनंद से आगे चल रास्ता कटीला है लेकिन धीरे धीरे कदम बढ़ाते हुए चल इस मार्ग पर आगे चलने पर ही आत्माराम मिलेगे।
मार्ग में रुकावटें आती ही रहेगी उन रुकावटों से घबरा नही अपने अन्तर्मन में हिम्मत जगा अपने अन्तर्मन मे झांक कर देख कोन लुटेरा मार्ग में बाधक बना है। उस लुटेरे के अधिन नहीं हो। परिस्थितियों से ऊपर उठ और आगे बढ शांतचित हो जा।
एक दृढ निश्चय के साथ आगे बढ तेरे जीवन का लक्ष्य आत्मतत्व को जानना है शरीर से ऊपर उठ आत्मा का चिन्तन कर सुख दुख हानि लाभ राग द्वेष ये सब शरीर के कार्य है। आत्मा इन सबके अधीन नहीं आत्मा चेतन हैं आत्मा अजर अमर हैं आत्मा प्रकाश स्वरुप है। आत्म तत्व में अद्भुत शांति है यही परमात्मा का निराकार स्वरूप है।
अरी पगली आत्मानंद का चिन्तन करेगी तभी सब वृत्तियां समाप्त होती है। वृत्तियों के समाप्त होने पर ही आत्मज्ञान का मार्ग है।अ प्राणी मानव जीवन का लक्ष्य यही परमानन्द के मार्ग पर चलना है।जय श्री राम अनीता गर्ग