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बाह्य पूजा को कई गुना अधिक फलदायी बनाने के लिए शास्त्रों में एक उपाय बतलाया गया है, वह है–मानसी-पूजा। वस्तुत: भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं है, वे तो भाव के भूखे हैं, इसलिए पुराणों में मानसी-पूजा का विशेष महत्व माना गया है। मानसी-पूजा में भक्त अपने इष्टदेव को मुक्तामणियों से मण्डितकर स्वर्णसिंहासन पर विराजमान कराता है। स्वर्गलोक की मन्दाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान कराता है, कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करता है। वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। मानसी चंदन, धूप, दीप, नैवेद्य भी भगवान को हजारगुना अधिक संतोष देते हैं। आराधक अपने आराध्य के लिए कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्णकमल के पुष्पों व पारिजात पुष्पों का चयन करता है। इन सब चीजों को जुटाने के लिए उसे इन्द्रलोक से ब्रह्मलोक, साकेत से गोलोक आदि तक मानसिक दौड़ लगानी पड़ती है।
“मानसी-पूजा का महत्व”
1. इस तरह मानसी-पूजा में मन को दौड़ने की और कल्पनाओं की उड़ान भरने की पूरी छूट होती है और इस दौड़ का दायरा ब्रह्माण्ड से भी आगे वैकुण्ठ और गोलोक तक पहुंच जाता है। इतनी दौड़-धूप से लाई गई उत्तमोत्तम वस्तुओं, पारिजात-पुष्पों की मालाओं को आराधक जब अपने भगवान को पहनाता है, तब उन पुष्पों की सुगन्ध व इष्ट का स्पर्श मिलकर उसकी नस-नस में मादकता भर देता है, उसका चित्त भगवान में समरस हो जाता है, और इष्ट से बना मधुर सम्बन्ध गाढ़ से गाढ़तर हो जाता है, तब उसे कितना संतोष मिलता होगा? उसका रोम-रोम पुलकित व प्रमुदित हो जाता होगा।
2. इन मानसिक पूजा सामग्रियों को जुटाने व भगवान को अर्पित करने में आराधक को जितना समय लगता है, उतना समय वह अन्तर्जगत में बिताता है। इस तरह मानस-पूजा साधक को समाधि की ओर अग्रसर करती है।
3. मानस-पूजा करने वाले के मन में नये-नये भाव जाग्रत होते हैं। अत: कलिकाल में भी मनुष्य मानस-पूजा द्वारा अपने आराध्य को एक-से-बढ़कर एक उपचार अर्पित कर सकता है और बाह्य पूजा से कई गुना अधिक फल प्राप्त कर सकता है।
4. आज के भाग-दौड़ भरे जीवन में और मंहगाई के दौर में हर किसी के लिए भगवान की विधिवत् षोडशोपचार पूजा के लिए न तो समय है और न ही साधन। अत: मानसी-पूजा का बहुत महत्व है।
‘मानसी-पूजा के नियम”
1. मानसी-पूजा में मन की धारा खंडित नहीं होनी चाहिए। सांसारिक-लौकिक विचार मन में नहीं आने चाहिए अन्यथा सेवा खंडित हो जाती है।
2. मानसी-पूजा करते समय मन व आंखें भगवान में लीन रहें–ऐसी तन्मयता से की गयी मानसी-पूजा ही सफल होती है और साधक को अलौकिक आनन्द प्रदान करती है।
“मानसी-पूजा की रोचक कथा”
एक धनवान कंजूस व्यक्ति गुंसाईजी के पास गया। उसने गुंसाईंजी से कहा–महाराज! बालकृष्ण की कोई ऐसी सेवा बतलाइए जिसमें एक पैसे का भी खर्च न हो। गुंसाईंजी ने कहा–तुम अपने इष्टदेव बालकृष्ण की मानसी सेवा करो। इसमें तुम्हें एक पैसा भी खर्च नहीं करना पड़ेगा। भगवान को स्नान कराना, वस्त्र पहनाना, माला अर्पण कर भोग लगाना। सेवा मन से ही करनी है, अत: कंजूसी से नहीं; दिल खोलकर पूरे वैभव के साथ करना।
गुंसाईंजी के बताये अनुसार कंजूस व्यक्ति हर रोज सुबह चार बजे उठकर मानसी सेवा करने लगा। इस तरह बारह वर्ष व्यतीत हो गए। अब उसे सेवा में बड़ा आनन्द आने लगा। अब तो सभी वस्तुएं उसे प्रत्यक्ष दिखाई देने लगीं–बालकृष्ण हँसते हुए मुझे देखते हैं। ठाकुरजी प्रत्यक्ष होकर भोग अरोग रहे हैं–ऐसा अनुभव भी उसे होने लगा।
एक बार ठाकुरजी की सेवा करते समय वह मन से ही दूध लेकर आया, गर्म किया और दूध में शक्कर डाली–शक्कर ज्यादा पड़ गई। उस व्यक्ति की कंजूस प्रकृति थी। सेवा में तन्मयता तो हुई पर दूध में शक्कर ज्यादा पड़ गई है–ऐसा सोचकर दूध में पड़ी अधिक शक्कर निकाल लूं, दूसरे दिन काम में आ जायेगी, वह शक्कर निकालने को तत्पर हुआ। वहां न दूध है, न शक्कर, न ही कटोरा। पर मानसी सेवा में तन्मय होने के कारण उसे सब कुछ का आभास हो रहा है। भगवान को भी मजाक करने का मन हुआ। उन्होंने देखा–यह व्यक्ति मानसी सेवा कर रहा है, एक पैसे का भी खर्च नहीं कर रहा है, फिर भी अधिक शक्कर पड़ी है तो उसे निकालने जा रहा है। बालकृष्ण घुटनों के बल चलते हुए आए और उसका हाथ पकड़ लिया–’अरे! शक्कर ज्यादा पड़ गई है तो तुम्हारा क्या जाता है? तूने कहां पैसे खर्च किए हैं जो इतनी माथापच्ची करता है! तुम तो मानसी सेवा कर रहे हो। एक पैसे का भी खर्च नहीं है।’ श्रीकृष्ण का स्पर्श हुआ और उसकी गति ही बदल गई और वह सच्चा वैष्णव बन गया।
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To make external worship manifold more fruitful, a remedy has been told in the scriptures, that is – Mansi-worship. In fact, God does not need anything, he is hungry for emotion, so Mansi-worship is considered to be of special importance in the Puranas. In Mansi-worship, the devotee worships his presiding deity with Muktamanis and makes him sit on the golden throne. Mandakini of heaven bathes her idol with the water of the Ganges, Kamdhenu prepares Panchamrita from cow’s milk. The clothes are also divine and supernatural. Mansi sandalwood, incense, lamp, naivedya also give thousand times more satisfaction to God. The worshiper selects Swarnkamal flowers and Parijat flowers from Kuber’s flowerpot for his worship. To collect all these things, he has to make a mental race from Indraloka to Brahmaloka, from Saket to Goloka etc.
“Importance of Mansi-worship”
1. In this way, in Manasi-worship, the mind has full freedom to run and the imaginations take flight and the scope of this race reaches beyond the universe to Vaikuntha and Goloka. When the worshiper wears garlands of the best things, Parijat-flowers brought with so much rush, then the fragrance of those flowers and the touch of Ishta fills his nerves and veins, his mind is in harmony with God. goes, and the sweet relationship made with the Ishta gets thicker and thicker, then how much satisfaction would he get? His hair will be blown and merry.
2. The amount of time the worshiper takes to collect these mental worship materials and offer them to God, he spends that much time in the inner world. In this way, Manas-worship leads the seeker towards Samadhi.
3. New feelings arise in the mind of the person who worships Manas. Therefore, even in Kalikal, a person can offer more than one treatment to his deity through Manas-worship and can get many times more results than external worship.
4. In today’s run-of-the-mill life and in the era of inflation, there is neither time nor means for everyone to worship God systematically. Therefore, Mansi-worship is very important.
“Rules of Mansi-worship”
1. The stream of the mind should not be broken in Mansi-worship. Worldly-temporal thoughts should not come in the mind, otherwise the service gets fragmented.
2. While doing Mansi-worship, the mind and eyes should be absorbed in God – only Mansi-worship done with such diligence is successful and provides supernatural bliss to the seeker.
“Interesting story of Mansi-worship”
A rich miser went to Gunsaiji. He said to the grunt – Your Majesty! Tell any such service of Balakrishna in which not a single penny is spent. Gunsainji said – You should do mental service of your presiding deity, Balakrishna. You will not have to spend a single penny on this. Bathing the Lord, dressing up, offering a garland and offering it as bhog. Service has to be done from the heart, so not with miserliness; Do it with open heart and with full splendor. According to Gunsainji, the miser got up every morning at four o’clock in the morning and started doing Mansi service. Twelve years passed like this. Now he began to take great pleasure in the service. Now everything is visible to him – Balakrishna looks at me with a laugh. Thakurji has become physically and physically healthy – he also started having such an experience. Once, while serving Thakurji, he brought milk from his heart, heated it and added sugar to the milk – the sugar became excessive. The man had a miserly nature. There was tension in the service, but the sugar has become more in the milk – thinking that I should take out more sugar lying in the milk, it will come in handy the next day, he was ready to take out the sugar. There is no milk, no sugar, no bowl. But because of being devoted to Mansi service, he is getting a sense of everything. God also felt like joking. He saw that this person is doing Mansi service, not spending even a single penny, yet if there is too much sugar, he is going to take it out. Balakrishna came walking on his knees and took hold of his hand – ‘Hey! If you’ve got too much sugar, what happens to you? Where have you spent the money that makes you so squeamish! You are doing Mansi service. Not a single penny is spent.