निष्काम कर्मयोग

मनुष्य शरीर कर्म करने के लिए बना है।

कर्म करना और फल की इच्छा न करना ही
निष्काम कर्म-योग यानि भक्ति-योग है, बिनाभक्ति-योग के भगवान की प्राप्ति असंभव है।भगवान कृष्ण कहते हैं हे अर्जुन कर्म कर फल की आशा त्याग दे। मेरा स्मरण करते हुए कर्म करेगा तब तु कल्याण के पथ पर अग्रसर होगा जन्म हुआ है मृत्यु निश्चित है यह धर्म युद्ध है। तेरे और मेरे अनेक जन्म हुए हैं तु नहीं जानता है।

कर्म को शुद्ध रूप से किये जाने पर ही आत्मसात होगें। हमे कर्मो के भाव पढते हुए प्रण कर लेना चाहिए। कि मैं जो भी पढ रहा हूँ बडे बडे विचार रख रहा हूं वह मै अपने जीवन में अपनाऊगा। उन विचारो पर आधारित मेरा जीवन होगा नहीं तो सभी कुछ हम मन बहलाव के लिए कर रहे हैं। सत्य से दुर जा रहे हैं वाणी वही मधुर है जो जीवन में उतरती है। कर्म मे भगवान छुपे बैठे हैं ।कर्म उत्सव है कर्म ज्ञान का मार्ग खोलता है। कर्म मे ढुब कर देखो जीवन की वास्तविकता को समझ पाओगे । कर्म ही पूजा है कर्म शुद्धता प्रदान करता है एक गृहस्थ को शुद्धता से किये गए कर्म मे परमात्मा दरश दे जाते हैं कर्म यज्ञ है कर्म प्रकाश का पुंज है। कर्म अध्यात्म का पाठ पढाता है। जीवन की सत्यता कर्म में है जंहा कर्म करते हुए एक भक्त ध्यान में गहरा चला जाता है शरीर का भान खत्म हो जाता है। यही अध्यात्म है कर्म ग्रथ की रचना है प्रेम की परिभाषा कर्म में है कर्म समर्पण की जागृति है। एक गृहस्थ का ग्रंथ यही है इस ग्रथ पर चलकर न जाने कितने ही मुक्त हुए। कितनो का उदार हुआ। एक भक्त की भक्ति कर्म पर टिकी हुई है अनेक संत महात्मा भी इस कर्मयोग मे गहरी ढुबकी लगाना चाहते हैं भगवान कृष्ण अर्जुन को कहते हैं हे पार्थ निष्काम कर्मयोग कर फल की आशा त्याग दे।
यह भाव और विचार नहीं एक कर्मनिष्ठ का जीवन है। एक कर्म निष्ठ भगवान को भोग के लिए थाल नहीं सजाता है। थाल जब सजाए जब कर्म निष्ठ भगवान से अलग हो। भगवान ही दिखाई देते अदभुत प्रकाश चमक रहा है। बैठे बैठे भगवान आते नहीं है। बैठे हुए प्रार्थना प्रकट होती नहीं है भगवान कहते हैं मै तेरे हृदय की पुकार पर रिझता हूं। तु रटा रटाया पढे वह बासी है। तेरा हृदय पिघले कुछ बोल फुटे तब प्यास बुझे। मै कैसे आऊं। भगवान हृदय में समा कर कर्म करने आ जाते हैं कर्म निष्ठ का कर्म अपने लिए नहीं है। अपने घर परिवार मात्र के लिए भोजन नहीं बन रहा है। कर्म निष्ठ के प्रत्येक कार्य में प्रभु प्राण नाथ है। कर्म करते हुए घटना घटित हो जाती है। झंकार पैदा हो जाती है ऋषि मुनि आ जाते हैं।

जय श्री राम अनीता गर्ग

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