परिपक्वता क्या है


बहुत अच्छे से समझाया गया है ,कृपया अवश्य पढ़िए :—

1. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को बदलने का प्रयास करना बंद कर दे, इसके बजाय स्वयं को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करें।

2. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों को, जैसे हैं,वैसा ही स्वीकार करें।

3. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझें कि प्रत्येक व्यक्ति उसकी सोच अनुसार सही हैं।

4. परिपक्वता वह है – जब आप “जाने दो” वाले सिद्धांत को सीख लें।

5. परिपक्वता वह है – जब आप रिश्तों से लेने की उम्मीदों को अलग कर दें और केवल देने की सोच रखें।

6. परिपक्वता वह है – जब आप यह समझ लें कि आप जो भी करते हैं, वह आपकी स्वयं की शांति के लिए है।

7. परिपक्वता वह है – जब आप संसार को यह सिद्ध करना बंद कर दें कि आप कितने अधिक बुद्धिमान है।

8. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से उनकी स्वीकृति लेना बंद कर दे।

9. परिपक्वता वह है – जब आप दूसरों से अपनी तुलना करना बंद कर दें।

10. परिपक्वता वह है – जब आप स्वयं में शांत हैं।

11. परिपक्वता वह है – जब आप जरूरतों और चाहतों के बीच का अंतर करने में सक्षम हो जाए और अपनी चाहतों को छोड़ने को तैयार हों।

12. आप तब परिपक्वता प्राप्त करते हैं – जब आप अपनी ख़ुशी को सांसारिक वस्तुओं से जोड़ना बंद कर दें।आप सभी को सुखी एव्ं परिपक्व जीवन की शुभकामना..।।चिन्तन *चिन्तन*

बड़ा वही जो हृदय से बड़ा है..

भगवान् के भक्त बड़े-से-बड़े होने पर भी अपने को छोटा ही मानते हैं। सेवा के कार्य में भी जितनी नीची सेवा होती है, वह उतनी ही उत्तम मानी जाती है। भगवान् श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ में ब्राह्मणों के चरण धोने का तथा लोगों की जूठी पत्तलें उठाने का काम किया तो यज्ञ में सबसे पहले उन्हीं का पूजन किया गया। शिशुपाल को बड़प्पन का अभिमान था, इसलिये भगवान् श्रीकृष्ण की अग्रपूजा उससे सही नहीं गयी; क्योंकि वह उन्हें नीची दृष्टि से देखता था और उन्हें एक साधारण ग्वाला समझता था। पर अन्त में शिशुपाल की क्या दशा हुई!

_बड़ों का बड़प्पन छोटों का पालन करने के लिये ही है, उनका तिरस्कार करने के लिये कदापि नहीं। जो छोटों के भोजन-वस्त्रादि का ध्यान न रखे, वह बड़ा कैसा? घरों में भी छोटे प्यार के पात्र होते हैं; उनकी रक्षा का भार बड़ों पर होता है। बड़प्पन का अभिमान आते ही मनुष्य छोटा हो जाता है। आप हृदय से बड़े बनें। बड़ा वही है, जो हृदय से बड़ा है। हृदय से बड़े होने का तात्पर्य है- भगवान् का आश्रय लें और अपने को छोटा मानें।

हर हर महादेवज्ञान ज्ञान दर्पण



It has been explained very well, please read:—

1. Maturity is when you stop trying to change others, instead focus on changing yourself.

2. Maturity is when you accept others as they are.

3. Maturity is when you understand that every person is right according to his thinking.

4. Maturity is when you learn the principle of “letting go”.

5. Maturity is when you put aside expectations of taking from relationships and only think of giving.

6. Maturity is – when you understand that whatever you do is for your own peace.

7. Maturity is when you stop proving to the world how intelligent you are.

8. Maturity is when you stop seeking approval from others.

9. Maturity is when you stop comparing yourself with others.

10. Maturity is when you are at peace with yourself.

11. Maturity is when you are able to differentiate between needs and wants and are ready to give up your wants.

12. You attain maturity when you stop linking your happiness with worldly things. Best wishes to all of you for a happy and mature life….Contemplation *Contemplation*

Only that which is greater than the heart is greater.

Devotees of God, despite being the biggest, still consider themselves small. Even in the work of service, the lesser the service, the better it is considered. Lord Shri Krishna did the work of washing the feet of Brahmins and picking up the false leaves of people in Rajsuya Yagya, so he was worshiped first in the Yagya. Shishupala was proud of his nobility, hence the worship of Lord Krishna did not go well with him; Because he looked down on him and considered him an ordinary cowherd. But what was the condition of Shishupala in the end?

_The greatness of the elders is only for obeying the younger ones, never for disrespecting them. What kind of elder is he who doesn’t take care of the food and clothing of the younger ones? There are little love objects in homes too; The responsibility of protecting them rests on the elders. A man becomes small as soon as he becomes proud of his greatness. May you be big at heart. Only that which is greater than the heart is greater. Being big at heart means taking refuge in God and considering yourself small.

Har Har Mahadevgyan Gyan Darpan

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