शून्यता को प्राप्त

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शून्यता को प्राप्त करने के लिए हमे त्याग के मार्ग पर चलना है। सब भावो को हम त्याग दे।भक्त के हृदय में भाव बनते हैं तब भक्त जानता है कि इस कोठरी मे एक ही तत्व रह सकता है भक्त सोचता है कोठारी को जितना ज्ञान से खाली कर देगी उतने ही भगवान के नजदीक होगी। भक्त अन्तर्मन से सम्भल जाता है आनंद और भाव दोनों को देखता है।यह दोनों मार्ग भी एक समय के बाद बाहर के लगते हैं एक दिन समझ जाताअपने अन्तर्मन से बात करे मै जो साधना करता हूँ उस साधना से मंत्र जप से मेरे अन्दर क्या भाव बनते हैं। मंत्र जप संकल्प शक्ति को पुरण कर देता है आप के सोचने भर से इच्छा पुरी हो जाती है। हम सोचते हैं भक्ती बहुत अच्छी हो रही है। हमे संकल्प शक्ति को हटा देना चाहिए। शक्ति में शांति नहीं है ंमै रूक तो नहीं रहा। कई बार हमारे मन में ये भाव रहते हैं मै पुजा करता हूं मत्रं जप करता हूं अब भगवान मुझे सबकुछ दे देंगे। मैने अभी तक भगवान को भजा भी नहीं है मै किस प्रकार भगवान को भजु दिल में तङफ मच जाती है बाहरी रूप से तो सब रिलेशन निभाते हैं ये अन्तर्मन की स्वयं से स्वयं की बात है जब तक मैं करता हूं हैं तब तक कुछ भी नहीं है। मानव जीवन का मेरा उद्देश्य आत्मा का परम पिता परमात्मा से आत्मसाक्षात्कार का है कही मैं शक्ति के अधीन तो नहीं हो रहा है।कहीं मुझे बाहरी ओज की प्राप्ति तो नहीं हो रही है मुझे पुराने पर ही टिके नहीं रहना है मेरा मार्ग अभी पुरण नहीं आन्नद है परमात्मा मुझे आन्नद से तृप्त करना चाहते हैं परमात्मा का ये आनंद आनंद हैं आत्मानंद परमानन्द नही है आनंद का प्रकट होना और छिपना पुरण आन्नद नहीं है मुझे तो शुद्ध आनंद के मार्ग पर चलना है जिस परमानन्द को प्राप्त करने पर कुछ भी शेष नहीं रहता है। शुन्यता के मार्ग पर चलना है जंहा शरीर नही है मै नहीं है तु भी नहीं है। प्रार्थना भी नहीं है। सब कुछ गौण है। जब तक शरीर का भान है तब तक दो है शरीर का भान खत्म होने पर शुन्यता है।आत्म  चिन्तन पर हम इस मार्ग पर आ जाते हैं। आत्म  चिन्तन के लिए हमें स्वयं ही स्वयं का गुरू बनना होता है हर क्षण यह देखना अन्तर्मन में आत्मचिंतन हो रहा है। जय श्री राम
अनीता गर्ग



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