- परिभाषाएं :
सकाम साधना 👉 इस प्रकार की साधना सांसारिक लाभ प्राप्ति की अपेक्षा से की जाती है । उदाहरण के लिए : प्रार्थना करना, प्रसाद अर्पण करना, उपवास अथवा कोई अन्य विधि करना – धनप्राप्ति के लिए नौकरी हेतु खोई वस्तु प्राप्त करने के लिए गर्भाधारण हेतु, बीमारी दूर करना
प्रियजनों की सुरक्षा इत्यादि के उद्देश्य से।
निष्काम साधना👉 यह साधना आध्यात्मिक उन्नति के एकमेव उद्देश्य से की जाती है। अतः इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए, साधक जीवन की प्रत्येक घटना का अपनी आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयोग करते हैं। यदि उनके जीवन में कठिन परिस्थितियां भी आएं तो अहं निर्मूलन करके वह उस परिस्थिति का उपयोग आध्यात्मिक उन्नति के लिए करते हैं और परिस्थिति के परिणाम को ईश्वरेच्छा मानकर स्वीकार करते हैं।
- सकाम और निष्काम साधना का तुलनात्मक अभ्यास
जब हम साधना करते हैं तो कुछ मात्रा में आध्यात्मिक उर्जा उत्पन्न होती है। जब यह आध्यात्मिक ऊर्जा सांसारिक लाभ प्राप्ति के लिए उपयोग की जाती है, जैसे कि सकाम साधना, तो इच्छाओं की पूर्ति होती है, परंतु आध्यात्मिक उन्नति नहीं होती। यह एक टूटे हुए पात्र को भरने जैसा है जहां पात्र कभी भरता नही हैं। जब हम निष्काम साधना करते हैं तो साधना द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक ऊर्जा आध्यात्मिक उन्नति के लिए प्रयोग होती है। जब साधक निष्काम साधना करता है तो इससे न केवल उसकी आध्यात्मिक प्रगति होती है अपितु उसकी सांसारिक और भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी होती है। सकाम साधना से सांसारिक सुख की प्राप्ति होती है जबकि निष्काम साधना से आनंद की अनुभूति होती है।
परिणाम:👉 ईश्वर का मारक रूप साधक को कष्ट देने वाली शक्तियों का नाश करता है।
सकाम साधना से हम ईश्वर के तारक रूप को जागृत करते हैं । हमारी प्रार्थना अथवा इच्छा का अंतिम परिणाम हमारी साधना और प्रारब्ध की तीव्रता पर निर्भर करता है । निष्काम साधना से हम गुरु तत्व को जागृत करते हैं जो हमारी साधना का पोषण करता है । इसके साथ साथ हम ईश्वर के तारक रूप को भी जागृत करते हैं । यदि निष्काम साधक की साधना में कोई बाधा आती है अथवा कोई उसे कष्ट पहुंचाता है तो ईश्वर का मारक रूप जागृत होकर कष्ट देने वाले का बकाया चुकाता है।
सकाम साधना स्थायित्व प्रदान नहीं करती। उदाहरण के लिए यदि धन के लिए सकाम साधना करने वाले व्यक्ति को अत्याधिक धनप्राप्ति हो जाती है तो उसकी इच्छाएं यहीं समाप्त नही हो जातीं । अब वह अच्छे स्वास्थय, अच्छे जीवनसाथी, अच्छी संतान की कामना करने लगता है । इस प्रकार वह अपनी अनेक कामनाओं की पूर्ति के चक्रव्यूह में फंस जाता है । इन कामनाओं का कभी अंत नहीं होता क्योंकि कोई न कोई इच्छा सदा अपूर्ण रहती है ।
अतः इस प्रकार से व्यक्ति कभी भी पूर्ण संतुष्टि का अनुभव नहीं कर सकता परंतु निष्काम साधना द्वारा एक बार आध्यात्मिक उन्नति का उद्देश्य पूर्ण हो जाने पर व्यक्ति को स्व की आत्मानुभूति हो जाती है और उसे ईश्वर प्राप्ति हो जाती है ।
आध्यात्मिक उन्नति के इस स्तर पर उसे स्थायी और निरंतर आनंद की अनुभूति होती है । सकाम साधना सृष्टि अथवा सृष्टि का अनुभव करने के विषय में है जबकि निष्काम साधना सृष्टिकर्ता के विषय में है । सकाम साधना माया के पदार्थो की प्राप्ति के विषय में है जबकि निष्काम साधना पूर्ण सत्य अर्थात् ईश्वर प्राप्ति और ईश्वरानुभूति के विषय में है।