नाम में नामी समाया हुआ है। नाम भगवान जितना हृदय में बैठता है नामी हृदय में दस्तक देता है। भगवान राम कृष्ण के सिमरन स्मरण के बैगर तङफ जागृत हो नहीं सकती हैं। स्मरण वह है जिसमें भक्त भगवान को अपने भाव में याद करता है प्रार्थना करता है विनती स्तुति करते करते चरणों में नतमस्तक हो जाता है एक बार जो शिश नतमस्तक होता है वह उठता नहीं है वह मस्तक भगवान श्री हरि के चरणों में समर्पित हो जाता है। समर्पित शिश अपने अन्तर्मन से अपने बोल में पल पल पुकार लगाता है।
हे भगवान राम क्या तुम्हारे मै दर्शन कर पाऊंगी। हे राम क्या तुम मेरे हृदय में विराजमान होंगे। मै तुम्हे देखना चाहती हूं। हे भगवान राम तुम बाबा हनुमान जी के हृदय में विराजमान हो क्या मेरे हृदय में दर्शन दोंगे ऐसे प्रार्थना अपने भाव मे करते हुए कब हृदय भगवान राम को पुकार बैठा। यही मेरे जीवन का लक्ष्य रहा है।
तङफ वह है जिसमें भक्त भगवान से एक पल भी अलग नहीं होना चाहता है सांस सांस से राम राम राम राम राम श्री राम श्री राम प्रत्येक कार्य करते हुए नाम लेता कभी प्रणाम करता है कब हरी से मिलन होगा आज भी प्रभु से मिलन नहीं हुआ। प्रभु के भाव मे कभी भजन गाता है कभी नमन करते हुए नैनो में नीर छलक जाता है। भक्त भगवान के भाव मे इतना गहरा उतर जाता है।
कार्य करते हुए भी वह नहीं कर रहा है। उस समय भी भक्त के हृदय में भगवान समाये हुए भाव मे प्रभु प्राण नाथ का अनुनय विनय कर रहा है। कभी हृदय में सिहरन पैदा हो जाती है अहो प्रभु प्राण नाथ कब आयेंगे। भोग बना रहा है भाव में है फिर कहता आज ऋषि मुनि आ रहे हैं।भक्त कार्य करते हुए गहरे ध्यान में है। प्रभु तुम कब आओगे ।अन्दर प्रभु प्रेम के भाव तङफ को जाग्रत करते हैं।
भगवान मे प्रेम की उत्पत्ति कैसे हो हम भगवान को अपना कैसे बनाये यह सब विचार भक्ति करते हुए बनने लगते है कोई ऐसा गुरु मिले दर्श भगवान राम के करा दे मुझे। भगवान की भक्ति की दृढ़ता भगवान से मिलन की तडफ पैदा हो। मै भगवान मे खो जाऊं ।मुझे पंच भौतिक शरीर से ऊपर उठना है। मै परमात्मा का बनना चाहता हूं।
भक्त के हृदय में तडफ की लहर पैदा हो जाती है। एक बार तङफ पैदा हो गई फिर मिटती नहीं है। मै लहर मे ढुब जाना चाहती हूँ। भक्त कथा करता है अनेक नियम बनाता है भक्ति के नाम पर अपने आप को चोला धारण कर रंग जाता है। यह सब व्यापार सा दिखता है। अन्दर के दीपक के बैगर क्या रंग चढता है। हम भगवान के रूप को निहारे। निहारते निहारते रूप में खो जाये रूप हमारे हृदय पर दस्तक देता है। रूप में रूपवान समाये हुए हैं।
भक्त प्रभु की खोज में जिस दिन लग जाता है मै भगवान को देखना चाहता हूँ। उस दिन से भक्त भगवान को नाम जप में खोजते है राम नाम कृष्ण नाम की पुकार लगाते हुए भक्त शरीर को भुल जाता है भगवान आकर सहायक बन जाते हैं भक्त भगवान को पहचान नहीं पाता है। भगवान आये का अहसास जब होता है नैन नीर बहाते है। दरश तडफ को गहराती है। भक्त को भगवान का चिन्तन करते हुए जितने प्रभु के अहसास होंगे भक्त के नैन बरसते है।
नैनो की बरसात भक्त की भक्ति में प्रेम रस का संचार करती है। भक्त का नया जीवन होता है। भक्त अपने हदय की तडफ को अन्य के सामने नहीं दिखाता है। भक्त का संसार सागर भगवान हैं। भक्त का उत्सव भी तभी है जब प्रभु प्राण नाथ के दर्शन का अहसास हो। एक एक पल परमात्मा के भाव मे ढुबता जाता है अहो प्रभु प्राण नाथ हे नाथ आज आंखों की ओट भी नहीं हुए। हे नाथ मुझ से क्या भुल हुई मेरे प्रभु तुम कंहा छुप गए हो।
मुझमें गोपी का भाव नहीं है फिर भी मै पगली तुम्हारे दरश की चाह हृदय में बिठा बैठी। प्रभु तुम मुझे क्यों भुल गये। मै तुम्हारे हाथों की कठपुतली हूँ। चाहे जैसे नचा लो
जिस भक्त के ह्रदय में भगवान के लिए प्रेम और भाव हिलोरे मारता रहता है। उसका स्वभाव कुछ अटपटा सा हो जाया करता है। उसके मन में हर समय प्रभु से मिलन की चटपटी सी लगी रहती है। लेकिन यदि भगवान उसके सन्मुख आ जाए तो वह भक्त दृष्टि भरकर प्रभु को देखने से भी कतराता है। इस भाव दशा को शब्दो में न कोई समझा सकता है न ही कोई शब्दो के माध्यम से समझ सकता है। प्रेम बिहायी अंखियां निसदिन रहे बिलसाई। देखत बने न देखते, और बिन देखे अकुलाई
चिंतन कर ले रे मना
तुम बिन कोई नहीं है मेरा तुम्ही प्राण हो तुम्ही सांस हो हदय मंदिर है तुमने सजाया फिर क्यों भुल गये प्रभु।
भगवान से मिलन की तडफ हमारे विकारों को जला कर भक्त को पवित्र मन बनाती है भगवान भक्त को पहले घडते है
नाम में नामी समाया हुआ है। नाम भगवान जितना सांसो में बसता नामी हृदय में प्रकट होता है। यही प्रेम की रीत है भक्त परमात्मा को हृदय में बिठाकर संसार को भुल जाता है अपने होने का अहसास भी नहीं रहता चारो ओर प्रभु तुम ही तुम दिखाई देते फिर भी मिलन अधुरा रह जाता है
लक्ष्य के बैगर भक्ति मार्ग आ नहीं सकता है एक दिन भक्त भगवान राम लक्ष्मण सीता जी और चरणों में हनुमान जी विराजमान हैं को देखता है देखता ही जाता है हदय में घटित हो जाता है। भक्त का देखना देखना नहीं रहता एक ही अरमान एक ही लक्ष्य प्रभु भगवान नाथ श्री हरि के मै दर्शन करना चाहती हूं।लक्ष्य को साधने के लिए हमे हर क्षण तत्पर रहना मेरे जीवन का लक्ष्य क्या है जितना आप चिन्तन करोगे मै परमात्मा का बनना चाहता हूं मै परमात्मा के दर्शन करना चाहता हूं मार्ग मिल जायेगा
नाम जप भीतर से चल जाता है नाम जप करते परमात्मा की पुकार लगाते लगाते तडफ प्रकट होने लगती है। अभी इसी समय मुझे परमात्मा के दर्शन हो जाये। भीतर ही भीतर भक्त दस दस दिन तक तडफता है। तब कहीं थोड़ा सा प्रभु का अहसास होता है।
जितने हम भीतर से जुड़ेगे उतने ही मोती चुनकर लाएगे। लक्ष्य एक ही प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार ।भक्त यह भी नहीं जानता है भगवान की कैसे वन्दना करनी है वह बस अपने ही भाव में भगवान को निहारते हुए भगवान को याद कर लेती। प्रभु क्या तुम मुझे दर्शन दोगे। भगवान को याद करते हुए सबकुछ भुल जाती हूँ। मिट जाना ही प्रेम है भक्ती करते हुए भक्त भगवान मे समा जाना चाहता है
भजन कीर्तन कथा हमारे अन्दर आनंद प्रकट करते हैं।कथा करो तब ऐसी कथा हो कथा हमारे अंदर उतर जाए।
कथा कर के कथा के आंनद में हम डुबते है आनंद के अधीन होते जाते हैं जंहा आनंद वंहा विरह नहीं है। भक्त आनंद मार्ग को मार्ग की रूकावट समझता है जब तक प्रभु प्राण नाथ से मिलन नही होता है हृदय जलता है कब प्रभु प्राण नाथ से मिलन होगा या ये जीवन ऐसे ही बीत जायेगा। फिर प्रार्थना करता है हे नाथ हे दीनदयाल हे दीनबंधु कृपासिंधु इस जीवन की बागडोर तुम्हारे हाथ में मुझ दासी से मुह क्यों फेर लिया नाथ तुम्ह हमारे स्वामी तुम्ही प्राण प्यारे
अब आप कहेंगे भुल जाना क्या है। संसार को भुलना ही भुलना। मन के अन्दर प्रभु को बिठा लेते हैं तब मन से संसार अपने आप निकल जाता है। प्रभु भगवान कहते हैं कि तु मुझे अपना मन देदे। मन के अन्दर से संसार का निकलना ही परमात्मा को मन देना। गोपियाँ सब कुछ करते हुए भी भगवान कृष्ण के भाव मे रहती थी मीराबाई की पुकार हृदय में उतरती जाती है
भक्त के हदय की तडप भक्ति मार्ग को दृड करती है भक्त जानता है भक्ती में आनंद की अपेक्षा तडफ परमात्मा के द्वार पर दस्तक देती है। तडफ मे भक्ति प्रेम श्रद्धा की उत्पत्ति है। तडफ ऐसे पल है जिसमें भक्त सबकुछ त्याग देना चाहता है परमात्मा का बन जाता है। तडफ विरह वेदना में आनंद की अनुभूति है।
कष्ट मनुष्य को घङता है कई बार ऐसी परिस्थिति होती है भक्त परमात्मा का सांस से सिमरन करता है ऐसा समय भक्ति को दृढ करता है अध्यात्म की गहराई को छु जाता है। मनुष्य को अपने लक्ष्य पर हर दिन चिन्तन करना चाहिए मै क्या चाहता हूँ।
आनंद मे संसार है तडफ में भक्त शरीर से ऊपर उठ जाता है। हम सुख को ही आनंद समझते हैं। कठिन परिस्थितियों को हम तकलीफ दुख के रूप में देखते हैं। वास्तव में वे सब मनुष्य जीवन को शक्ति शाली, सहनशील मजबूत बनाने के साधन है। जैसे सोने को तपाने निखरता है वैसे ही मनुष्य जीवन भी तप कर रूप लेता है भगवान राम 14 वर्ष वनवास के बाद ही मर्यादा पुरुषोत्तम बने वैसे ही मनुष्य का जीवन है कठोर मेहनत से चमकता है हम जितने मेहनत करते वास्तव में मेहनत प्रभु का द्वार खटकाती है।
परमात्मा का चिन्तन मनन करते हुए जितना मिलन का अहसास होगा उतनी ही हृदय की तडफ बढती जाती है। नैन नीर बहाते है। हे नाथ मुझमे मीरा बाई जैसा समर्पण भाव भी नहीं है द्रोपदी जैसी पुकार भी नहीं है फिर भी मै तुम्हारे द्वार पर दर्शन की भीख मांगती हूं
भक्त फिर मन में सोचता है तु सच मे प्रभु प्राण नाथ से सत्य रूप में समर्पित है या फिर ऐसे ही डोल बजा रही है फिर प्रभु प्राण नाथ में खो जाता है।
एक क्षण भी अपने स्वामी के बैगर रहना नहीं चाहता है रोम रोम में नाम ध्वनि उजागर हो जाती है। हर रूप में ईश्वर दिखाई देते वो प्रकट होते हैं छुप जाते मै बावली खोज रही हूं। प्रभु तुम अभी आये नैन तुम्हे निहारते तुम चले गये दिल की किसे सुनाऊं तुम्ही हमारे प्रियतम तुम्ही प्राण प्यारे हृदय एक ही था वह स्वामी के चरणों में समर्पित हो गया।
दुसरा हृदय कंहा से लाऊँ
परमात्मा का चिन्तन मनन करते हुए आनन्द मार्ग आ जाता है। भक्त अपने आप से प्रश्न करता क्या यह भक्ति की पुरणता है भीतर से आवाज आती अभी मिलन पुरणता नहीं है आत्मसाक्षात्कार के बैगर चिन्तन मार्ग पुरण हो नहीं सकता है।भक्त भगवान के ध्यान में गहरी ढुबकी लगाता है नैनो के आंसू सुख जाते हैं। मौन हो जाता है साधक भीतर का द्वार खटकाता है।।
आत्म चिन्तन के बैगर परमात्म चिन्तन पुरण हो नहीं सकता है आत्म चिन्तन में हमे महसूस होता है आत्मचिंतन हमें दर्शाता है परमात्मा की कृपा दृष्टि पर ही आत्मचिंतन कर सकते हैं। हमारे भीतर परमात्मा के भाव बनते वह भी परमात्मा की कृपा है। परमात्मा हृदय में बैठे तभी भाव की उत्पत्ति है। जय श्री राम अनीता गर्ग