तुम शरीर नहीं हो

तुम शरीर नहीं हो,शरीर को जानने वाले हो!तुम कर्मेन्द्रियाँ नहीं हो,कर्मेन्द्रियों को जानने वाले हो!तुम ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं हो,ज्ञानेन्द्रियों को जानने वाले हो!

तुम ज्ञानेन्द्रियों के विषय नहीं हो,विषयों को जानने वाले हो!तुम मन नहीं हो,मन को जानने वाले हो!तुम बुद्धी नहीं हो,बुद्धी को जानने वाले हो!

तुम चित्त नहीं हो,चित्त को जानने वाले हो!तुम अहँकार नहीं हो,अहँकार को जानने वाले हो!

पर एैसा क्युँ?क्योंकि तुम दृष्य नहीं हो, दृष्य को देखने वाले दृष्टा हो!तुम साक्ष्य नहीं हो,वरन साक्ष्य के समक्ष उपस्थित साक्षी हो!

तुम क्षेत्र नहीं हो!क्षेत्रज्ञ हो!तुम प्रकृति नहीं,पुरुष हो!तुम शरीर नहीं,शरीरी हो,तुम विकारी,और साकार आकार वाले,जीव मात्र नहीं हो,निर्विकारी,और निराकार आत्मा हो!

तुम शरीर के आधार पर आधारित नहीं हो,वरन शरीर तुम्हारे आधार पर आधारित है,क्योंकि समस्त ब्रह्माँण्डी़य स्थूल और सूक्ष्म शरीरों का जो एकमात्र आधार है,वह तुम ही हो!

तुम शरीर,कर्मेन्द्रियों,ज्ञानेन्द्रियों,उनके विषयों,मन,बुद्धी,चित्त और अहँकार के समान जड़ नहीं,सच्चिदानन्दघन ब्रह्मँ के समान चेतन हो!तुम एकदेशीय नहीं,सर्वदेशीय,सर्वव्यापक विष्णु हो!

तुम सत्वगुण नहीं,सत्वगुण के आधार हो!तुम रजोगुण नहीं,रजोगुण के आधार हो!तुम तमोगुण नहीं,तमोगुण के आधार हो!

तुम माया नहीं,माया को जानने वाले हो!तुम पदार्थ नहीं पदार्थों को जानने वाले हो!तुम लोकपाल,दिग्पाल,भूत, पितर,देव,दानव,मानव,यक्ष,नाग,
किन्नर,पशु,पक्षी,कीट,पतंग,वृक्ष गुल्म,लता पता आदि नहीं,

तुम इन सबको अपने ही संकल्प के आधार पर आधारित व स्थित रखने वाले परमतत्व,परमब्रह्म परमात्मा हो!

तुम चन्द्रमण्डल,सौरमण्डल,ग्रहमण्डल, वायु मण्डल,नक्षत्र मण्डल,सप्तर्षी मण्डल,ध्रूव मण्डल,तारामण्डल आदि सभी मण्डलों के परमआधार हो, परमेश्वर हो!

पर संसार की माया ने तुम्हें यह समझा रखा के तुम स्थूल जन्मने मरने वाले, स्थूल शरीर मात्र हो,तुम सुख दु:ख के भोक्ता अहँकार मात्र हो,

तुम विद्या अविद्या के ज्ञाता बुद्धी मात्र हो!तुम संकल्प विकल्प के कर्ता मन मात्र हो,तुम शुद्ध अशुद्ध होने वाले चित्त मात्र हो!

तुम देशी,विदेशी या परदेशी मात्र हो!
तुम जाति वर्ण,कूजाति या वर्णशंकर जाति वाले मात्र हो!

तुम निर्धन धनिक,निर्बल बलवान आदि हो!तुम यवन म्लेक्ष,ह्रूँण अर्थात मुसलमान,ईशाई,यहूदी मात्र हो!

तुम सुन्दर असुन्दर,पापी या पुण्यात्मा मात्र हो!तुम कामी,क्रोधी,लोभी,मोही आदि मात्र हो!

किन्तु यह सब तुमने अविद्यावश मान लिया है,स्वयं के विषय में,पर अब जो हम तुम्हें बता रहे हैं उसे जानकर,विद्या के वश में हो जाओ,

और फिर स्वयं अनुभव करके देखो,तो जो यहाँ कहा है,स्वयं अनुभव करने पर यदि उसे वैसा ही न पाओ तो कहना!!

!!सादर प्रणाम प्रिय आत्मीयजनों!!
हरि:ऊँ तत् सत् जय सच्चिदानन्द जी
ऊँ नमो नारायणाय!

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