सुक्ष्म तत्व में परमात्मा के चिन्तन के अलावा कुछ भी नहीं है। भगवान को हम शरीर रूप से भजते भगवान को आत्म रूप में भजते हैं। आत्म रूप के चिन्तन में चाहे बाहर नगाड़े बज रहे हो तब भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। बाहरी शरीर संसार के सब कार्य निभाते हुए भी भगवान को भजते हुए गौण हैं।
हम मन्दिर में बैठे घण्टों भगवान को निहारते भजन तो गाते ही साथ में दिल ही दिल में सौ सौ बार प्रणाम करती।भजन गाते गाते भाव गहरा हो जाता प्रभु से वन्दना में खो जाती और भजन की तर्ज टुट जाती सभी समझते भजन अच्छा नहीं गाया। वे यह नहीं समझ पाती प्रभु प्राण नाथ के लिए गाया हुआ भाव प्रभु ने स्वीकार कर लिया। भगवान रिझाने आये हैं शिश झुकाकर वन्दना करते ।भगवान भी अन्तर्मन में आकर लीला कर जाते है जिस दिन भगवान लीला करते उस दिन वो नजर फिर उठती नहीं है । मौन मन्दिर से चल पङती। कभी आनंद सागर में गोते लगते तो कभी भगवान से फिर मिलन की तङफ में नैन नीर बहाते है ।
मन्दिर जाती तब अन्तर्मन पुछता कहां जा रही है क्या करने जा रही है। अन्तर्मन से आवाज आती प्रभु प्राण नाथ से साक्षात्कार करने जा रही हूं परमात्मा से मिलने जा रही हूं।कुछ अपने दिल की कहुंगा कुछ प्राण नाथ की सुनूगी नैनो से नैन मिलेगे प्रभु प्राण नाथ के नैनो में खो जाऊंगी जय श्री राम अनीता गर्ग
There is nothing in the subtle element except the contemplation of God. We worship God in our body form and worship God in our soul form. In contemplating the Self, even if drums are being played outside, there is no effect. The outer body is secondary in worshiping the Lord even after performing all the functions of the world.
We used to sit in the temple for hours admiring God and singing hymns, we would bow our hearts a hundred times in our hearts. While singing hymns, the feeling would get deepened, I would get lost in veneration with the Lord and the lines of the hymn would get broken. She could not understand that the sentiment sung for Prabhu Pran Nath was accepted by the Lord. God has come to woo and worship him by bowing his head. God also comes into his inner soul and goes to Leela, on the day when God performs Leela, that day does not arise again. Silence would walk from the temple. Sometimes diving in the ocean of joy and sometimes in the direction of meeting with God again, they shed neer neer.
When she goes to the temple, her conscience asks where she is going and what she is going to do. I am going to have an interview with Prabhu Pran Nath, I am going to meet God. Some will say from my heart, some will listen to Pran Nath, I will get Nain from Nano, I will get lost in the Nano of Prabhu Pran Nath