सत्संग का सच्चा अर्थ है जब हम भाव विभोर हो स्तुति करते हैं तब हमारा अन्तर्मन परमात्मा के साथ सम्बन्ध बना ले। सत्संग में प्रभु प्राण नाथ के साथ सम्बन्ध बन जाये। सत्संग में शरीर का नाचना प्रभु मे खोना दो अलग अलग बातें हैं।भगवान् के भजन कीर्तन में अपार सम्पति समाई हुई है। भगवान् का चिन्तन करते रहे एक दिन भगवान अन्तर्मन में लीला जागृत कर देंगे। भगवान् के ध्यान में लीन भगवान् आकर अन्तर्मन से खेल जाएगे। भक्त भगवान् से बार बार अन्तर्मन से पुछेगा।हे प्रभु प्राण नाथ क्या मैं तुम्हारे योग्य हूं। भक्त फिर भगवान् से कहेगा हे नाथ मुझमें ऐसे तो बहुत सी बुराई छिपी है। पर मैं हूँ तो तुम्हारा ही। हे नाथ ये आपकी मुझ दासी पर कृपा है कि कुछ समय ही सही इस झोपड़ी में आकर तुमने लीला की ऐसे में दिल की दशा को बयान करने में शब्द नहीं हैं। जय श्री राम अनीता गर्ग
The true meaning of satsang is that when we are full of emotion and praise, then our inner soul should make a relationship with the Supreme Soul. Establish a relationship with Prabhu Pran Nath in satsang. Losing the body’s dancing in satsang in GOD are two different things. Immense wealth is contained in the chanting of bhajans of the Lord. Contemplating on the Lord, one day the Lord will awaken the Leela in the heart. The Lord, absorbed in the attention of the Lord, will come and play with the conscience. The devotee will ask the Lord again and again from within. O Lord Pran Nath, am I worthy of you. The devotee will then say to the Lord, Oh Nath, so many evils are hidden in me like this. But I am yours. Oh Nath, it is a blessing to my maidservant that after coming to this hut for some time, you did Leela, in such a situation there are no words to describe the condition of the heart. Jai Shri Ram Anita Garg