हम भगवान् के नाम की माला फेरे, भागवत गीता, रामायण पढे मन्दिर में जाये और साथ में हमे जब भी समय मिले दिल ही दिल में राधे कृष्ण, राम का नाम ले, भगवान नाथ स्वामी, मेरे प्रभु परम पिता परमात्मा का नाम लेते रहे। हम मन ही मन में भगवान् के नाम को लेने लग जाएंगे। हमे जब भी समय मिलेगा हम कभी राम राधे कृष्ण बोलेगे ये नाम हमारा मन कान आंखै और दिल सुनेंगा। हम माला फेरकर श्री हरि का नाम लेते हैं तब किसी से भी मिलते हैं तो कहते हैं। मै प्रतिदिन इतनी भगवान की माला फेरता हूं। दिल ही दिल में लिया हुआ नाम हम किसी को नहीं कहते हैं कि मैंने भगवान् को कब और कैसे याद किया। अपने प्रियतम को दिल में बिठाया जाता है। नैनो में समाकर नैन बन्द कर लु। भगवान् ने हमे बनाया तब आंखै दी तब यह नहीं कहा कि आंखों से तुम्हें इतने घन्टे देखना है। भगवान् ने आंख कान जिव्हा दिल दे दीए तो दे दीए। हमे परमात्मा के चिन्तन मनन और वन्दन दिल की गहराई से करना है। हम जीवन में जीतनी लग्न से काम करते हैं उतनी ही सफलता मिलती है। वो सफलता वो उमंग कितने दिनों की हमे सच्ची उमंग की तरफ कदम बढ़ाने है।परमात्मा के नाम को धीरे धीरे लेने की कोशिश करे कोई काम कर रहे हैं। काम करते हुए नाम ले कोई स्तुति गाएं। भगवान् का नाम लेते हुए मन में यह धारण करे। राम का नाम लेते हैं तो राम को भगवान माने राम मेरे भगवान् है। कृष्ण नाम लेते हैं तब कृष्ण को भगवान माने। हम जब तक भगवान को भगवान नहीं मानेंगे तब तक हम बाहर ही घुंमते रहेंगे। हम कहते हैं ये मेरा परिवार है। परिवार की खुब सेवा करके भी हम पार नहीं पाते क्यों कि एक समय के बाद घर में भरे भण्डार, संसारिक सुखों से हमारे दिल में तृप्ति और शान्ति नहीं मिलती है। दिल अपने प्रियतम का बन जाना चाहता है।हमने अपने स्वामी को दिल मे बिठाने की बजाय मन्दिर मुर्ति माला में बांध दिया है। दिल में बिठाया ही नहीं तो शान्ति कहा से आये। भगवान् का नाम हमे संसार के सब सुख देता है। हम इतने से ही खुश हो जाते हैं। और सोचते हैं कि देखो मै भगवान का नाम लेता हूँ। भगवान मेरी सब इच्छा पूरी करते हैं। इच्छा पुरती किसकी मन की या आत्मा की मन की इच्छा पुरती शरीर के सुख पर अधारित है। हमे आत्मा की शांति के लिए प्रभु प्राण नाथ को ध्याना है। परम प्रभु को ध्याते हुए हम ध्वनि में नाम सुनने लगेगा । कपड़े धोते हुए बरूस से, चल रहे हैं चलते हुए, भोजन करते हुए हमें राम राम, परमात्मा परमात्मा सुनाई देने लगे। परमात्मा से हमे आत्मा की शांति के लिए प्रेम का समर्पण भाव का सम्बन्ध बनाना है। हम जब दिल ही दिल से भगवान् को ध्याएगे तब एक दिन हमारे अन्तर्मन में भाव जगेगा मेरा परम पिता परमात्मा मुझमें समाया हुआ है। हम हाथ की उंगली हिलाएंगे और महसूस करेंगे कि ये मेरा भगवान् ही हिला रहा है। मेरा भगवान् मुझमें समाया है। भगवान् को सांस से ध्याने के दो अर्थ है। एक हम परमात्मा के नाम की माला इतनी जल्दी जल्दी माला जपे एक सांस में पुरी माला जप ले। मै जब घर में तकलीफ आ जाती थी। तब श्री राम के नाम की माला जपती और सोचती राम भगवान् है मेरे राम अपने आप सब ठीक कर देगें। इस विस्वास के साथ माला जपते जपते एक दिन मैं एक सांस से माला जपने लगी एक सांस में 90 मोती मुझसे जपे जाते। मेरे दिल की इच्छा पूरी माला एक सांस में जपने की हुई। मैंने एक सांस में माला जपी। तब मेरी आंखों से आंसू बहने लगे।नैनो से बहा नीर मेरे दिल को उजागर कर गया। मैं उस परिस्थिति को शब्द रूप नहीं दे सकती।
जब मैं भगवान का नाम जपता हूं तब मै नहीं हूं। तब मै देखती हूं कि अन्तर्मन से जब नाम जप की ध्वनि आती है। तब ध्वनि में वीणाए बज रही है। मै अपने आप से पुछती हूं। तुने वीणा नहीं बजायी ये इतनी सुमधुर धुन परमात्मा अन्दर प्रकट कर रहे हैं। परमात्मा अन्दर बैठा सब कुछ कर रहा है। हम ऐसे सोचते हैं कि मै नाम जप कर रहा हूं। करने और कराने वाला इश्वर है ।जय श्री राम अनीता गर्ग