[05]”श्रीचैतन्य–चरितावली”

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*।। श्रीहरि:।।*               

[भज] निताई-गौर राधेश्याम [जप] हरेकृष्ण हरेराम

*व्यासोपदेश*

व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।

नमो वै ब्रह्मविधये वासिष्ठाय नमो नमः ।।

संसार का यावत ज्ञान है, सभी व्यासोच्छिष्ट कहा जाता है। भगवान व्यास साक्षत विष्णु  हैं। बस, इतना ही अन्तर है कि इनके चार की जगह दो ही भुजा हैं, ये अचतुर्मुख ब्रह्मा हैं और दो नेत्र वाले शिव हैं। चौबीस अवतारों में भगवान व्यासदेव जी भी एक अवतार हैं, ये प्रत्येक द्वापर के अन्त में प्रकट होकर लोककल्याण के निमित्त एक वेद को चार भागों में विभक्त करते हैं। इस युग में महर्षि पराशर के वीर्य से तथा सत्यवती के गर्भ से भगवान व्यासदेव का जन्म हुआ है। इन्होंने एक वेद को चार भागों में विभक्त किया, इसीलिये इन्हें वेदव्यास भी कहते हैं। जब देखा कि कलियुग के जीव इतने पर भी ज्ञान से वंचित रहेंगे तो इन्होंने सम्पूर्ण जीवों के कल्याण के निमित्त महाभारत की रचना की और अठारह पुराणों का प्रचार किया।

भगवान व्यासकृत इन सभी ग्रन्थों में ऐसा कोई भी इहलौकिक तथा पारलौकिक विषय नहीं रहा है जिसका वर्णन भगवान व्यासदेव ने न किया हो। राजधर्म नीतिधर्म, वृत्तिधर्म, वर्णाश्रमधर्म, मोक्षधर्म, सृष्टि, स्थिति, प्रलय, शौच, सदाचार, गति, अगति, कर्तव्य, अकर्तव्य सभी विषयों का वर्णन भगवान व्यासदेव ने किया है। संसार में कोई भी ऐसी बात जिसका कोई कभी भी अनुभव कर सकता है, उसका सूत्ररूप से वर्णन भगवान व्यासदेव पहले ही कर चुके हैं। भगवान व्यासदेव ने बताया है कि काल की गति अव्याहत और एकरस है। जो पैदा हुआ है, उसका कभी-न-कभी अन्त अवश्य ही होगा। दिन-रात्रि सबके लिये समानरूप से आते-जाते हैं। बुद्धिमान अपने समय का उपयोग काव्यशास्त्रों के अध्ययन और मनन में करते हैं, जो मूर्ख हैं वे सोने में, खाने-पीने या दूसरों की निन्दा-स्तुति में अपने समय का दुरुपयोग करते हैं इसलिये व्यासदेव जी  उपदेश करते हैं कि मूर्खों की भाँति समय बिताना ठीक नहीं है। अपने समय का दुरुपयोग कभी भी मत करो, उसका सदा सदुपयोग ही करते रहो। सदुपयोग कैसे हो? इसके लिये वे उपदेश करते हैं-

इतिहासपुराणनि तथाख्यानानि यानि च।

महात्मनां च चरितं श्रोतव्यं नित्यमेव च।।

मनुष्यों को इतिहास, पुराण, दूसरी सुन्दर कहानियाँ और महात्माओं के जीवन-चरित्र इनका नित्यप्रति श्रवण करना चाहिये। अब आइये, इस बात पर थोड़ा विचार करें कि इन उपर्युक्त विषयों के श्रवण से क्या लाभ और इनमें यथार्थ वस्तु क्या है?

इतिहास -आर्यशास्त्रों में दो ही इतिहास या महाकाव्य माने गये हैं। एक तो भगवान् व्यासकृत महाभारत और दूसरा भगवान वाल्मीकिकृत आदिकाव्य रामायण। इन दो ही महाग्रन्थों में सम्पूर्ण जगत् का इतिहास भरा पड़ा है। सभी रस, सभी विषय, जितनी भी कथाओं की कल्पना हो सकती है वे सब इन दोनों ग्रन्थों में संक्षेप और विस्ताररूप से वर्णन की गयी हैं। इन महाग्रन्थों में आर्यजाति के महापुरुषों का ही इतिहास नहीं है, किन्तु सम्पूर्ण जगत् का इतिहास भरा पड़ा है। जिस प्रकार गंगा, चमुना, समुद्र, पर्वत, ग्रह, नक्षत्र- ये सृष्टिके अंग हैं उसी प्रकार ये ग्रन्थ भी नित्य और सनातन हैं। जैसे पृथ्वी पर जन्म धारण करने वाला इच्छा से अथवा अनिच्छा से बिना श्वास लिये रह नहीं सकता, उसी प्रकार सभ्य सभ्य जाति के ज्ञानपिपासु पुरुष इन महाकाव्यों के ज्ञानोपार्जन के बिना रह ही नहीं सकते, फिर चाहे वे प्रत्यक्षरूप से इन ग्रन्थों का अध्ययन करें अथवा इनके आधार पर बनाये हुए अन्य भाषा के ग्रन्थों से। वे इस ज्ञान से वंचित रह ही नहीं सकते, क्योंकि नित्य सनातन ज्ञान तो एक ही है और उसका व्याख्यान युग के अन्त में व्यासरूप से भगवान् ही कर सकते हैं। इसलिये भगवान् व्यासदेव प्रतिज्ञा करके कहते हैं- ‘जो मैंने महाभारत में वर्णन किया है वही सर्वत्र है, जिसका यहाँ वर्णन नहीं हुआ, उसका कहीं वर्णन हो ही नहीं सकता।’ हिन्दूजाति आदिकाल से इन प्राचीन आख्यानों को सुनती आयी है। ये आख्यान अनादिकाल से ऐसे ही चले आये हैं और अन्त तक इसी तरह चले जायँगे, इसलिये इनका श्रवण सदा करते रहना चाहिये।

पुराण-पुराण अनादि हैं और असंख्य हैं, किन्तु भगवान् व्यासदेव ने उन्हें अठारह भागों में संग्रह कर दिया है। इनमें छोटे-से-छोटे पुरुषार्थ का तथा परम-से-परम पुरुषार्थ का वर्णन है। शौच कैसे जाना चाहिये, शौच के अनन्तर कितनी बार बायें हाथ को, कितनी बार दायें हाथ को तथा दोनों हाथों को मिलाकर धोना चाहिये, कुल्ला कितनी बार कहना चाहिये, दाँतुन कितनी अंगुल का हो इत्यादि छोटे-से-छोटे विषयों से लेकर मोक्ष तक का वर्णन पुराणों में किया गया है। पुराण ही आर्यजाति के असली प्राण हैं। प्राणों के बिना प्राणियों का जीना सम्भव हो भी सकता है, किन्तु पुराणों के बिना आर्यजाति जीवित नहीं रह सकती। पुराणों का श्रवण आदिकाल से होता आया है। इस सम्पूर्ण जगत् के उत्पन्नकर्ता भगवान् ब्रह्मदेव ने ही ऋषियों को पुराणों का उपदेश किया। इसलिये पुराण सम्पूर्ण ज्ञान के भण्डार हैं। कल्याण की इच्छा रखने वाले पुरूशों को पुराणों का श्रवण नियमित रूप से करना चाहिये।

आख्यान- महाभारत तथा पुराणों में असंख्यों आख्यान हैं। उन्हीं के आधार पर सत्कवि सुन्दर-सुन्दर काव्यों की रचना करते हैं। बीजरूप से तो सभी आख्यान भारत तथा पुराणों में ही विद्यमान हैं। कोई भी, किसी जाति का कवि कभी भी ऐसे आख्यान की कल्पना नहीं कर सकता जिसका बीज (प्लाँट) पुराणों में न हो। फिर भी जो कवि उनका विस्तार करते हैं, उन्हें मनोहर कविता में लिखते हैं, उन ऐसे काव्यों का भी अध्ययन सदा करना चाहिये।

महात्माओं के चरित्र- जिस प्रकार गंगा जी का प्रवाह निरन्तर बहता रहता है, उसी प्रकार इस पृथ्वी पर महापुरुषों का भी जन्म सदा होता ही रहता है। यदि ऐसा न हो तो इस पृथ्वी पर धर्म का तो फिर लेश भी न रहे। धर्म के बिना यह संसार एक क्षण भी नहीं रह सकता। धर्म के ही आधार पर यह जगत स्थित है। अब भी असंख्य सिद्ध महात्मा पहाड़ों की कन्दराओं में जनसंसदि से पृथक रहकर योगसाधन द्वारा संसार का कल्याण कर रहे हैं। अनेकों सिद्ध पुरुष भेष बदले पृथ्वी पर पर्यटन कर रहे हैं, लोग उन्हें पहचानते नहीं, किन्तु उनकी सभी चेष्टाएँ लोक-कल्याण के ही निमित्त होती हैं। वे अपने को अपनी शक्ति द्वारा प्रकट नहीं होने देते, अप्रकटरूप से लोक-कल्याण करने में ही उन्हें आनन्द आता है। किसी भाग्यवान पुरुष को ऐसे महापुरुषों का साक्षात दर्शन हो जाय, यह दूसरी बात है। नहीं तो वे छद्म-वेष में ही घूमा करते हैं।

कुछ नित्यजीव या मुक्तजीव लोक-कल्याण के निमित्त भौतिक शरीर भी धारण करते हैं और लोगों को जन्म लेते तथा मरते हुए-से भी प्रतीत होते हैं। वास्तव में वे जन्म-मृत्यु से रहित होते हैं, केवल लोक-कल्याण के ही निमित्त उनका प्रादुर्भाव होता है और जब वे अपना काम कर चुकते हैं तब तिरोहित हो जाते हैं। उनके कार्य गुप्त नहीं होते। वे अधिकारियों को उपदेश करते हैं, शिक्षार्थियों को शिक्षा देते हैं और स्वयं आचरण करके लोगों में नवजीवन का संचार करते हैं, उनका जीवन अलौकिक होता है, उनके कार्य अचिन्त्य होते हैं। क्षुद्रबुद्धि के पुरुष उन्हें भी साधारण जीव समझकर उनके कार्यों की समालोचना करते हैं। इससे उनके काम में बहुत सहायता मिलती है, वे इसी बहाने लोगों के सामने आदर्श उपस्थित करते हैं कि ऐसी स्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिये। उनका वह व्यवहार अन्य लोगों के लिये प्रमाणीभूत बन जाता है। इस प्रकार वे संसारी लोगों की निन्दा-स्तुति के बीच में रहते हुए भी अपने जीवन को आदर्श जीवन बनाकर लोगों के उत्साह को बढ़ाते हैं, ऐसे महापुरुष सदा से उत्पन्न होते आये हैं, अब भी हैं और आगे भी होंगे।

किसी के जीवन का प्रभाव व्यापक होता है, उनके आचरणों के द्वारा अधिक लोगों का कल्याण होता है और किसी के जीवन का प्रभाव अल्प होता है, उनके थोड़े ही पुरुष लाभ उठा सकते हैं। इस प्रकार सब जातियों में, सब काल में किसी-न-किसी रूप में महात्मा उत्पन्न होते ही रहते हैं। बहुत-से ऐसे महापुरुष होते हैं जिनकी टक्कर का शताब्दियों तक कोई महापुरुष व्यक्तरूप से प्रकट नहीं होता है। किंतु इसका निर्णय होता है अपने-अपने भावों के अनुसार भिन्न-भिन्न रीति से। इस बात को आज तक न तो किसी ने पूर्णरूप से निर्णय किया है और न आगे भी कोई कर सकेगा कि अमुक महापुरुष किस कोटि के हैं और इनके बाद इनकी कोटिका कोई महापुरुष उत्पन्न हुआ या नहीं।

इसलिये शालग्राम की बटिया के समान हमारे लिए तो तभी महात्मा पूजनीय तथा वंदनीय हैं। संसार में असंख्य सम्प्रदाय विद्यमान हैं और उन सबका सम्बन्ध किसी-न-किसी महापुरुष से हैं और उन सभी सम्प्रदायों के अनुयायी उन्हें ईश्वर या ईश्वरतुल्य मानते और कहते है। हमें उनकी मान्यता के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं कहना है। एक महापुरुष को ही सर्वस्व मानने वाले पुरुषों कों प्राय: देखा गया है कि वे अपने से भिन्न सम्प्रदाय वाले महापुरुषों की अपेक्षा करते हैं और बहुत-से तो निंदा भी करते हैं। हम ऐसा नहीं कह सकते। हमारे लिये तो सभी महापुरुष- जिनका वास्तव में किसी भी सम्प्रदाय से सम्बंध नहीं है, किंतु तो भी लोग उन्हें अपने सम्प्रदायका आचार्य या आदिपुरुष मानते हैं, समानरूप से पूजनीय और वंदनीय हैं। इसलिए हम अपने प्रेमी पाठकों से यही प्रार्थना करते हैं कि जिनका सम्बन्ध परमार्थ से है ऐसे सभी महात्माओं के चरित्रों का श्रद्धाके साथ श्रवण करना चाहिये। महात्माओं का चरित्र जीवन को महान बनाता है, हमें कर्तव्य और सहिष्णुता सिखाता है तथा हमें अपने असली लक्ष्य तक पहुँचाता है, इसलिये यथार्थ उन्नति का एकमात्र साधन महात्माओं के चरित्रों का श्रवण तथा सत्पुरुषों का सत्संग ही सर्वत्र बताया गया है।

इस युग के महापुरुषों में महाप्रभु चैतन्यदेवका स्थान सर्वोच्च कहा जाता है। वे भक्ति के मूर्तिमान अवतार थे, प्रेम की सजीव मूर्ति थे। उनके जीवन में परम वैराग्य, महान त्याग, अलौकिक प्रेम, अभूतपूर्व उत्कण्ठा और भगवान के लिये विलक्षण छटपटाहट थी। उनका अवतार संसार के कल्याण के ही निमित्त हुआ था। उन महापुरुष के जीवन से अब तक असंख्या जीवों का कल्याण हुआ है और आगे भी होगा। ऐसे महापुरुष का जीवन कल्याण की इच्छा रखने वाले जीवों के लिये निर्भ्रान्त पथ-प्रदर्शन बन सकता है। चैतन्य-चरित्र अगाध है और दुर्ज्ञेय है। साधारण जीवों के समझ में न तो वह आ ही सकता है, न दुष्कृति पुरुष उसे श्रवण ही कर सकते हैं। सौभाग्य से ऐसे चरित्रों के श्रवण का सुयोग मिलता है, सुनकर उसे यथावत समझने वाले तो विरले ही पुरुष होते हैं, जिनके ऊपर उनकी कृपा होती है वे ही समझ सकते हैं। फिर उन चरित्रों का कथन करना तो बहुत ही कठिन काम है।

मुझमें न भक्ति है, न बुद्धि। शास्त्रों का ज्ञान भी यथावत नहीं। चैतन्य के दुर्ज्ञेय चरित्र को भला मैं क्या समझ सकता हूँ। किंतु जितना भी कुछ समझ सका हूँ, उसका ही जैसा बन सकेगा, कथन करूँगा। मुझे पूर्ण आशा है कि कल्याण-मार्ग के पथिकों की मेरी इस टूटी-फूटी भाषा से अपने साधन में बहुत कुछ सहायता मिल सकेगी, क्योंकि चैतन्य-चरित्र इतना मधुर है कि वह चाहे कैसी भी भाषा में लिखा जाय, उसकी माधुरी कम नहीं होने की।

*क्रमशः अगला पोस्ट*  [06]

[ गीताप्रेस,गोरखपुर द्वारा प्रकाशित श्री प्रभुदत्त ब्रह्मचारी कृत पुस्तक *श्रीचैतन्य-चरितावली* से ]

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, Srihari:..*

[Bhaj] Nitai-Gaur Radheshyam [Chant] Harekrishna Hareram

*Vyasopadesh*

O Vyasa in the form of Vishnu, O Vishnu in the form of Vyasa.

I offer my respectful obeisances unto Vasishta, the master of the Vedic rituals.

There is Yavat knowledge of the world, all are called Vyasochisht. Lord Vyasa is the real Vishnu. The only difference is that he has only two arms instead of four, he is four-faced Brahma and the two-eyed Shiva. Lord Vyasdev ji is also an incarnation among twenty-four incarnations, he appears at the end of each Dwapar and divides one Veda into four parts for the welfare of the people. In this era, Lord Vyasdev was born from the semen of Maharishi Parashar and from the womb of Satyavati. He divided one Veda into four parts, that is why he is also called Vedvyas. When he saw that the creatures of Kaliyug would remain deprived of knowledge even after this, he composed Mahabharata and propagated eighteen Puranas for the welfare of all the living beings.

In all these texts written by Lord Vyaskrit, there is no such worldly and otherworldly subject which has not been described by Lord Vyasdev. Rajdharma, Nitidharma, Vrittidharma, Varnashramadharma, Mokshadharma, creation, situation, holocaust, defecation, virtue, speed, progress, duty, duty, all subjects have been described by Lord Vyasdev. Everything in the world that one can experience at any time has already been described by Lord Vyasadeva in a formulaic form. Lord Vyasdev has told that the movement of time is uninterrupted and monotonous. Whatever is born will definitely come to an end sooner or later. Day and night come and go equally for everyone. The wise use their time in the study and meditation of poetic scriptures, those who are fools misuse their time in sleeping, eating and drinking or criticizing others, therefore Vyasdev ji preaches that it is better to spend time like fools. Not there. Never misuse your time, always make good use of it. How to be of good use? For this they preach-

History, Puranas and legends.

And the characters of great men should be heard daily.

Humans should listen to history, Puranas, other beautiful stories and life-characters of Mahatmas daily. Now let’s think a little about what is the benefit of listening to these above mentioned topics and what is the real thing in them?

History – Only two history or epics have been considered in Arya Shastras. One is the Mahabharata written by Lord Vyas and the other epic Ramayana written by Lord Valmiki. The history of the whole world is filled in these two epics. All the rasas, all the subjects, all the stories that can be imagined are all described in brief and in detail in these two books. In these epics, there is not only the history of the great men of Arya caste, but the history of the whole world is full. Just as Ganga, Chamuna, ocean, mountains, planets, constellations – these are the parts of the universe, in the same way these texts are also eternal and eternal. Just as a person born on earth cannot live without breathing, willingly or unwillingly, in the same way the knowledge-seeking men of a civilized race cannot live without acquiring the knowledge of these epics, even if they directly study these texts or listen to them. Based on other language texts. They cannot be deprived of this knowledge, because there is only one eternal eternal knowledge and only God can explain it in the form of Vyas at the end of the age. That’s why Lord Vyasadeva vows – ‘What I have described in Mahabharata is everywhere, what has not been described here, it cannot be described anywhere.’ The Hindu community has been listening to these ancient stories from the beginning. These stories have continued like this since time immemorial and will continue like this till the end, that’s why they should always be heard.

Puranas are eternal and are innumerable, but Lord Vyasadeva has collected them in eighteen parts. In these there is a description of the smallest effort and the ultimate effort. How to defecate, after defecation how many times the left hand, how many times the right hand and both the hands together should be washed, how many times should the rinse be said, how long should the teeth be, etc. It is described in the Puranas. Puranas are the real life of Arya caste. It may be possible for living beings to live without life, but the Aryan race cannot survive without Puranas. Puranas have been heard since ancient times. Lord Brahma, the creator of this entire world, preached the Puranas to the sages. That’s why Puranas are the storehouse of complete knowledge. Men desirous of welfare should listen to Puranas regularly.

Narratives – There are innumerable narratives in Mahabharata and Puranas. Satkavi composes beautiful poems on the basis of them only. In seed form, all the stories are present in India and Puranas only. No poet of any caste can ever imagine such a narrative whose seed (plant) does not lie in the Puranas. Nevertheless, the poets who elaborate them, write them in beautiful poetry, such poems should also be studied always.

Characters of Mahatmas- Just as the flow of Ganga ji keeps flowing continuously, in the same way great men are also born on this earth all the time. If this does not happen then there will be no trace of religion on this earth. This world cannot live without religion even for a moment. This world is established on the basis of religion. Even now, innumerable Siddha Mahatmas are doing welfare of the world by Yog Sadhan, staying away from the public in the caves of the mountains. Many Siddha men are roaming the earth in disguise, people do not recognize them, but all their efforts are for public welfare only. They do not allow themselves to be revealed by their power, they take pleasure only in doing public welfare in an unmanifested manner. If some lucky person gets to see such great men in person, it is another matter. Otherwise they go around in disguise.

Some nityajivas or free-living beings also assume physical bodies for the welfare of the people and appear to people while taking birth and dying. In fact, they are free from birth and death, they appear only for the welfare of the people, and when they have done their work, they disappear. His actions are not secret. He preaches to the officers, teaches the students and conducts himself to communicate new life to the people, his life is supernatural, his works are unimaginable. People of small mind criticize their works considering them as ordinary creatures. This helps a lot in their work, they present ideals in front of people on this pretext that how to behave in such a situation. That behavior of his becomes authentic for other people. In this way, despite being in the midst of praise and condemnation of the worldly people, they increase the enthusiasm of the people by making their life an ideal life, such great men have always been born, are still there and will be in the future.

The effect of someone’s life is widespread, more people are benefited by their conduct and the effect of someone’s life is small, only a few men can take advantage of them. In this way, in all castes, in all times, in one form or the other, Mahatmas keep on being born. There are many great men whose competition does not appear in person for centuries. But it is decided in different ways according to their respective feelings. No one has decided this matter completely till date and no one will be able to do so in the future as to what category of such and such great men are and whether any great men of their rank were born after them or not.

That’s why Mahatma is worshipable and worshipable for us like the daughters of Shaalgram. There are innumerable sects in the world and all of them are related to one or the other great man and the followers of all those sects consider and call him as God or God-like. We have nothing to say about their recognition. Men who consider only one great man as everything, it has often been seen that they expect great men from different sects and many even condemn them. We cannot say so. For us, all the great men – who do not really belong to any sect, but still people consider them as Acharya or Adipurush of their sect, are equally worshipable and venerable. That’s why we request our loving readers that they should listen to the stories of all the great souls who are related to God with devotion. The character of Mahatmas makes life great, teaches us duty and tolerance and leads us to our real goal, therefore, listening to the characters of Mahatmas and satsang of good men is the only means of real progress.

Mahaprabhu Chaitanyadev’s place is said to be the highest among the great men of this age. He was an embodiment of devotion, a living embodiment of love. His life was marked by supreme asceticism, great renunciation, supernatural love, unprecedented yearning and extraordinary yearning for God. His incarnation was for the welfare of the world only. The life of that great man has benefited innumerable living beings till now and will continue to happen in the future as well. The life of such a great man can become a foolproof guide for the souls desirous of welfare. Chaitanya-character is unfathomable and formidable. It can neither be understood by ordinary creatures, nor can evil men hear it. Fortunately, we get the opportunity to listen to such characters, there are very few men who understand them as they are, only those who are blessed by them can understand. Then to narrate those characters is a very difficult task.

I have neither devotion nor intelligence. The knowledge of the scriptures is also not the same. How can I understand the deplorable character of Chaitanya. But whatever I have understood, I will narrate as best I can. I have full hope that this broken language of mine will be of great help to the pilgrims on the path of welfare, because Chaitanya’s character is so sweet that no matter what language it is written in, its sweetness does not diminish. .

*next post respectively* [06]

[From the book *Sri Chaitanya-Charitavali* by Shri Prabhudatta Brahmachari, published by Geetapress, Gorakhpur]

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