मनुष्यों के पृथ्वीतत्त्व प्रधान शरीरों की अपेक्षा देवताओं के शरीर तेजस्तत्त्व प्रधान, दिव्य और शुद्ध होते हैं।
देवताओं के शरीरों से सुगन्ध आती है। उनके शरीरों की छाया नहीं पड़ती। उनकी पलकें नहीं गिरतीं। वे एक क्षण में बहुत दूर जा सकते हैं और जहाँ चाहें, वहाँ प्रकट हो सकते हैं। इस दिव्यता के कारण ही उनको देवता कहते हैं।
बारह आदित्य, आठ वसु, ग्यारह रुद्र और दो अश्विनीकुमार- ये तैंतीस कोटि (तैंतीस प्रकार के) देवता सम्पूर्ण देवताओं में मुख्य माने जाते हैं। उनके सिवाय मरुद्गण, गन्धर्व, अप्सराएँ आदि भी देवलोक वासी होने से देवता कहलाते हैं।
देवता तीन तरह के होते हैं-
१- आजानदेवता-
जो महासर्ग से महाप्रलय तक (एक कल्प तक) देवलोक में रहते हैं, वे ‘आजानदेवता’ कहलाते हैं। ये देवलोक के बड़े अधिकारी होते हैं। उनके भी दो भेद होते हैं-
ईश्वरकोटि के देवता-
शिव, शक्ति, गणेश, सूर्य और विष्णु- यें पाँचों ईश्वर भी हैं और देवता भी। इन पाँचों के अलग-अलग सम्प्रदाय चलते हैं। शिवजी के शैव, शक्ति के शाक्त, गणपति के गाणपत, सूर्य के सौर और विष्णु के वैष्णव कहलाते हैं। इन पाँचों में एक ईश्वर होता है तो अन्य चार देवता होते हैं। वास्तव में ये पाँचों ईश्वरकोटि के ही हैं।
साधारण देवता-
इन्द्र, वरुण, मरुत्, रुद्र, आदित्य, वसु आदि सब साधारण देवता हैं।
२- मर्त्यदेवता-
जो मनुष्य मृत्युलोक में यज्ञ आदि करके स्वर्गादि लोकों को प्राप्त करते हैं, वे ‘मर्त्यदेवता’ कहलाते हैं। ये अपने पुण्यों के बल पर वहाँ रहते हैं और पुण्य क्षीण होने पर फिर मृत्युलोक में लौट आते हैं-
‘ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोक विशालं
क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति।’
(श्रीमद्भगवद्गीता- ९ / २१)
३- अधिष्ठातृदेवता-
सृष्टि की प्रत्येक वस्तु का एक मालिक होता है, जिसे ‘अधिष्ठातृदेवता’ कहते हैं। नक्षत्र, तिथि, वार, महीना, वर्ष, युग, चन्द्र, सूर्य, समुद्र, पृथ्वी, जल, वायु, तेज, आकाश, शरीर, इन्द्रियाँ, मन, बुद्धि आदि सृष्टि की मुख्य-मुख्य वस्तुओं के अधिष्ठातृदेवता ‘आजानदेवता’ बनते हैं। और कुआँ, वृक्ष आदि साधारण वस्तुओं के अधिष्ठातृदेवता ‘मर्त्यदेवता’ (जीव) बनते हैं।
।। ॐ नमो भगवते कृष्णाय ।।
The bodies of the deities are Teja-tattva predominant, divine and pure as compared to the earth-principled bodies of human beings.
Fragrance emanates from the bodies of the deities. There is no shadow of their bodies. His eyelids do not fall. They can go very far in an instant and appear wherever they want. It is because of this divinity that they are called deities.
Twelve Adityas, eight Vasus, eleven Rudras and two Ashwinikumars – these thirty-three crore (thirty-three types) deities are considered to be the main among all the deities. Apart from them, Marudganas, Gandharvas, Apsaras etc. are also called deities because they are residents of Devlok.
There are three types of gods-
1- Aazaandevata- Those who live in Devlok from Mahasarga to Mahapralaya (one Kalpa), they are called ‘Ajaandevata’. They are big officers of Devlok. They also have two differences-
God of Ishwarkoti- Shiva, Shakti, Ganesha, Surya and Vishnu – these five are Gods as well as deities. Different sects of these five run. Shivji’s Shaiva, Shakti’s Shakti, Ganapati’s Ganapat, Surya’s solar and Vishnu’s Vaishnav are called. In these five there is one God and the other four are gods. In fact, all these five belong to God’s category.
Ordinary deity- Indra, Varuna, Marut, Rudra, Aditya, Vasu etc. are all ordinary deities.
2- Death god- Those people who attain the heavenly worlds by performing Yagya etc. in the land of death, they are called ‘Deity of Death’. They live there on the strength of their virtues and when their virtues wane, they return to the land of death.
‘They ate him and the heavenly world was vast When their merit is exhausted, they enter the world of mortals. (Srimad Bhagavad Gita- 9/21)
3- Adhishtatridevata- Every object of creation has a master, called the ‘Adhishtatridevata’ The constellations, dates, wars, months, years, ages, moon, sun, sea, earth, water, air, light, sky, body, senses, mind, intelligence etc. become the ‘Azandevata’ And the overlord deities of ordinary objects like wells, trees etc. become ‘mortal deities’ (jivas).
।। Om Namo Bhagavate Krishnaaya.