कोई भक्त,रसिक जब लम्बी गहरी सांस लेकर..आँखों में प्रेमाश्रु भर कर..आह कृष्ण…हे गोविन्द !..मेरे माधव कह कर पुकारता है
तो वह कैसे असीम आनन्द में खो जाता है उस आनन्द के स्वरूपको शब्दों के द्वारा लिख कर या बोल कर प्रकट नहीं किया जा सकता ।ये तो अनुभूति का विषय है।
हाँ अगर शास्त्र या संतजन से जैसा सुना है उस अनुसार आनन्द के स्वरूपकी चर्चा करे तो…भगवान् और आनन्द पर्यावाची शब्द हैं।
आत्मा की परमात्मा की एकता है और दोनों में अपनापन होने पर जीव स्वाभाविक रूप से आनन्दित हो जाता है।
क्यों कि अंश अपने अंशी से मिलकर ही आनन्द पा सकता है और वह आनन्द नित्य ,नवीन शाश्वत रहता है।
आत्मा को अपना निजानन्द मिल जाने के बाद छिनता नहीं बल्कि यह आनन्द हमेशा रहता है और दिन प्रति दिन बढ़ता रहता है। फिर जीव मायातीत हो जाता है।
आत्मा का सुख उसका अपना सहज स्वरूपहै और वह नित्य है। हम मन को श्री कृष्ण में लगाकर जितना दृढ़ता से अपनापन करेंगे,उतना ही आनन्द हमें मिलेगा।
लेकिन हम ने माया के वशीभूत हो कर मन को भोग पूर्ण आहार विहार में लगा दिया और संसार में आनन्द खोजने लगे।
आनन्द तो हमें मिला नहीं पर दुःखी जरूर हो गए। हमारा शरीर और संसार एकही तत्व से बना है इस लिए जड़ एवं नश्वर वस्तु या व्यक्ति में सुख खोजना हमारा स्वभाव बन गया है
यह हमारा अज्ञान ही है कि जिस में सुख है ही नहीं वो हमें सुख कहाँ से देगा। हम जन्म-जन्मान्तर से संसार में सुख खोजते आ रहे हैं
किन्तु हमारी सुख की चाह आज तक अपूर्ण ही है। सुख चाहने की यह मान्यता इतनी मजबूती से हमारे मानने में आ गईहै कि अब इसको मिटाना इतना आसान काम नहीं रह गया है।
श्री कृष्ण प्रेम और शरणागति ही एक साधन है।…पूर्ण शरणागत हुए बिना इस अज्ञान को दूर नहीं किया जा सकता कि आनन्द संसार में नहीं केवल श्री कृष्ण में है।
श्री कृष्ण हमारे माता-पिता एवं सर्वस्य हैं। इस लिए हमें एक श्री कृष्ण को अपना मान कर पुकार लगानी चाहिए
कि …हे गोविन्द ! हमें अपनी शरण प्रदान करने की कृपा करें जिस से हम शाश्वत आनन्द की अनुभूति कर सके..!!
🙏🏿जय श्री कृष्ण🙏🏼
When a devotee, a fan takes a long deep breath..with tears of love in his eyes..Ah Krishna…O Govind!…calls out saying my Madhav.
So how he gets lost in infinite joy, the form of that joy cannot be expressed by writing or speaking through words. This is a matter of experience.
Yes, if we discuss the form of Anand according to what we have heard from the scriptures or saints, then… God and Anand are synonymous words.
There is unity of the soul with the divine and when there is affinity between the two, the creature naturally becomes happy.
Because a part can get joy only by meeting its part and that joy remains eternal, new and eternal.
After the soul has got its own bliss, it is not snatched away, but this bliss always remains and increases day by day. Then the soul becomes beyond Maya.
The happiness of the soul is its own innate nature and it is eternal. The more strongly we do attachment by keeping our mind in Shri Krishna, the more joy we will get.
But being under the influence of Maya, we engaged our mind in indulgent diet and started searching for happiness in the world.
We did not get joy, but we definitely became sad. Our body and the world are made of the same element, therefore it has become our nature to seek happiness in inert and mortal objects or persons.
It is our ignorance that the one who does not have happiness, from where will he give us happiness. We have been searching for happiness in the world since birth after birth.
But our desire for happiness remains unfulfilled till date. This belief of seeking happiness has become so firmly in our belief that it is no longer such an easy task to eradicate it.
Love and surrender to Shri Krishna is the only means.… Without complete surrender, this ignorance cannot be removed that happiness is not in the world but only in Shri Krishna.
Shri Krishna is our parent and all. That’s why we should call one Shri Krishna as our own.
That… Hey Govind! Please give us your shelter so that we can experience eternal bliss..!! 🙏🏿 Jai Shri Krishna🙏