भगवती पार्वती जी ने भगवान शंकर जी से पूछा…भगवान श्री कृष्ण के मनोहारी रूप की प्राप्ति कैसे हो सकती है:-
भगवान शंकर श्री कृष्ण के अंगो का वर्णन करते है तथा उनके नख-शिख-शोभा श्रृंगार का वर्णन करते हुए उनके महत्व का विवेचन करते हुए कहते है !
जिस समय वे टेढ़ी गर्दन करके खड़े होते हैं उस समय अंनत कोटि कामदेवों से भी अधिक सुंदर दीखते है ! वे अपनी तिरछी चितवन तथा मुधर, मंद मुस्कान द्वारा करोड़ों कामदेवों के समान सुंदरता धारण कर अपने सिकोड़े हुए अधरों पर वंशी रखकर बजा रहे है; और उसी मुरली की मुधर स्वर लहरी से त्रिभुवन को मोहित करते हुए सबको प्रेम सुधा सागर में निमगन कर रहे हैं!
देवी ! जिनके नखचन्द्र किरँणो की महिमा का भी अंत नहीं है, उन्हीं भगवान श्री कृष्ण की महिमा के संबंध में कुछ और बता रहा हूँ ! त्रिगुणमय अंनतकोटि ब्रहमाण्डों के जितने ब्रह्मा विष्णु महेश्वर है, सब इन श्री कृष्ण की कला के करोड़वें-करोड़वें अंश से उत्पन्न है ! सृष्टि स्थिति प्रलय की शक्ति से युक्त वे ब्रह्मादि देवता उन्हीं श्री कृष्ण के वैभव है!
उन श्री कृष्ण के अंश का जो करोड़वां उसके भी करोड़ अंश करने पर एक एक अंश कला से ऐसे असंख्य कामदेवों की उत्पति होती है जो इस ब्रहमाण्ड में सिथ्त होकर जगत के जीवों को मोह में डालते है !
श्री कृष्ण की शोभा कांति के करोड़वें अंश से जो किरणें निकलती है, वे अनेकों सूर्य के रूप में प्रकट होती है, वे परमानंद रसामृत से परिपूर्ण है! वे परमानंद और चैतन्यमयी है, उन्हीं से इस विश्व के ज्योतिर्मय जीव जीवन धारण किए हुए हैं !
जो भगवान के ही कोटि कोटि अंश है !
उनके चरणयुगल के नख रूपी चंद्रकांति से निकलने वाली प्रभा को ही पूर्ण ब्रह्म बताया गया है, जो सबका कारण है और वेदों के लिए भी दुर्गम है ! विश्व को मोहित करने वाला जो नाना प्रकार के पुष्पादि का सौरभ है वह सब उनके श्री विग्रह की दिव्य सुगंध का करोड़वां हिस्सा है !
इन श्री कृष्ण की प्रिया, प्राणवल्लभा श्री राधा है ! इन्हीं श्री राधिका के करोड़वें अंश से त्रिगुण दुर्गादि देवियों की उत्पत्ति हुई है! इन श्री राधिका के पद रजस्पर्श से करोड़ों विष्णु उत्पन्न होते है !
श्री राधा!
(भक्त शिरोमणि श्री राधा बाबा जी)