‘चोरजारशिखामणि:’ इसका अर्थ है कि भगवान् के समान चोर और जार दूसरा कोई है ही नहीं, हो सकता ही नहीं | दूसरे चोर और जार तो केवल अपना ही सुख चाहते हैं, पर भगवान् केवल दूसरे के सुख के लिये चोर और जार की लीला करते हैं | उनकी ये दोनों ही लीलाएँ दिव्य, विलक्षण, अलौकिक हैं – ‘जन्म कर्म च में दिव्यम’ (गीता ४/९) | संसारी चोर तो केवल वस्तुओं की ही चोरी करते हैं, पर भगवान् वस्तुओं के साथ-साथ उन वस्तुओं के राग, आसक्ति, प्रियता आदि को भी चुरा लेते हैं | भगवान् ने गोपियों के मक्खन के साथ-साथ उनके रागरूप बन्धन को भी खा लिया था | वे जार बनते है तो सुख के भोक्ता के साथ-साथ सुखासकती, सुखबुध्दि का भी हरण कर लेते हैं, जिससे सम्बन्धजन्य आकर्षण (काम) न रहकर केवल भगवान् का आकर्षण (विशुध्द प्रेम) रह जाता है, अन्य की सता न रहकर केवल भगवान् की सता रह जाती है | तात्पर्य है की भगवान् अपने भक्तों में किसी को चोर और जार रहने ही नहीं देते, उनके चोर-जार पने को ही हर लेते हैं | ‘कनक’ (धन) और ‘कामिनी’ (स्त्री) – की आसक्ति से ही मनुष्य ‘चोर’ और ‘जार’ होता है | अत: कनक-कामिनी की आसक्ति का सर्वथा अभाव करने वाले होने से भगवान् चोर और जार के भी शिखामणि हैं |
‘Chorjaarshikhamani:’ It means that there is no other thief and jar like God, there cannot be. Other thieves and jars only want their own happiness, but the Lord only plays thieves and jars for the happiness of others. Both of his pastimes are divine, singular, supernatural – ‘Janma Karma Cha Mein Divyam’ (Gita 4/9). Worldly thieves steal only things, but God steals things as well as the attachment, attachment, love etc. of those things. The Lord had eaten the butter of the gopis as well as the bondage of their love. When they become a jar, they take away the pleasures of pleasure as well as the intellect, from which the attraction (pure love) of the Lord remains, not the attraction (kama) of the relation, but not the nuisance of others, but only of the Divine. The haunting remains It means that the Lord does not allow anyone among His devotees to be thieves and jars, only their thieves and jars take away the money. It is because of the attachment of ‘Kanak’ (wealth) and ‘Kamini’ (woman) – that man becomes ‘thief’ and ‘jar’. Therefore, being the one who completely lacks the attachment of Kanaka-Kamini, the Lord is also the crown jewel of a thief and a jar.